जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 में बदलाव के दो महीने बाद पहली बार उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फारूक़ अब्दुल्ला को अपनी पार्टी नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेताओं से मिलने दिया गया।
जम्मू-कश्मीर में पाबंदी लगे 50 दिन से ज़्यादा हो गए, लेकिन लोगों में ख़ौफ़ कम नहीं हुआ है। आख़िर यह परिवारों को डर क्यों लगा रहता है कि कोई घर से बाहर निकले तो वह लौट भी पाएगा या नहीं?
अनुच्छेद 370 में फेरबदल के बाद से जम्मू-कश्मीर में लगाई गई पाबंदी और डेढ़ महीने बाद भी हालात बदतर रहने पर क़रीब 500 शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों ने गंभीर चिंता जताई है।
अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से हिरासत में लिए गए लोगों की याचिकाओं पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में क्या तेज़ी दिखाई दे रही है? ये याचिकाएँ हैं हैबियस कॉर्पस यानी बन्दी प्रत्यक्षीकरण की। इनमें 252 गिरफ़्तारियों को चुनौती दी गई है।
सरकार के इस दावे पर कि पाबंदी लगाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में एक गोली भी नहीं चलाई गई है, सीपीएम के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व विधायक यूसुफ़ तारीगामी ने कहा है कि कश्मीरी धीमी मौत मर रहे हैं।
क्या है पीएसए? यह सवाल इसलिए अहम है कि इसके तहत गिरफ़्तार आदमी को बग़ैर मुक़दमा चलाए दो साल तक जेल में रखा जा सकता है, गिरफ़्तारी की वजह बताना भी ज़रूरी नहीं है।
अनुच्छेद 370 में बदलाव के 42 दिन बाद भी न तो सामान्य स्थिति बहाल हुई है और न ही लोगों में गिरफ़्तारी का ख़ौफ़ कम हुआ है। गिरफ़्तारी की जानकारी क्यों नहीं दी जा रही है?