नई आतंकवादी रणनीति
हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार, पाकिस्तानी सेना के रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर्स ने अगस्त 2019 में ही लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और हिज़बुल मुजाहिदीन के कमांडरों के साथ अलग-अलग बैठकें कर सबको एक कमान में जोड़ने पर सहमति बना ली थी। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन कर कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को ख़त्म करने के फ़ैसले के तुरन्त बाद ही कर लिया गया था।आतंकवादियों का सम्मेलन
हिन्दुस्तान टाइम्स ने ख़ुफ़िया एजेन्सियों के हवाले से कहा है कि 27 दिसंबर, 2019 को जमात-उद-दावा के महासचिव अमीर हमजा ने जैश-ए-मुहम्मद के बहावलपुर स्थित मरकज़ सुभान अल्लाह में मौजूद संगठन के सरगनाओं से बात की थी। जमात-उद-दावा दरअसल लश्कर-ए-तैयबा की मातृ संस्था है जो खुले आम काम करता है और पाकिस्तान में प्रतिबंधित नहीं है।इस बातचीत का अगला दौर 3-8 जनवरी और उसके बाद 19 जनवरी को इस साल चला। इन बैठकों में जैश के वास्तविक अर्थों में प्रमुख मुफ़्ती अब्दुल रऊफ़, लश्कर-ए-तैयबा के ज़की -उर-रहमान लखवी और अमीर हमजा भी मौजूद थे।
ज़िम्मेदारियाँ तय
इन बैठकों में पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के आतंकवादियों को भी बुलाया गया था और उन्होंने शिरकत की थी। उन्हें ज़मीनी स्तर पर आतंकवादी योजनाओं को लागू करने की जि़म्मेदारी दी गई।यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर में तमाम हमले हिज़बुल मुजाहिदीन करेगा और यह काम जैश-ए-मुहम्मद के मुफ़्ती अशगर कश्मीरी की देखरेख में होगा।
समन्वय
यह भी तय हुआ कि पूरी कश्मीर घाटी में आतंकवादी हमलों का समन्वय हिज़बुल मुजाहिदीन का प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन करेगा। वह जैश-ए-मुहम्मद और जमात-उद-दावा के पाक-अधिकृत कश्मीर के अब्दुल अजीज़ अलवी के संपर्क में रहेगा। मुफ़्ती अशगर कश्मीरी ने 7 मई की बैठक के पहले ही पाक-अधिकृत कश्मीर के मुज़फ़्फ़राबाद में सैयद सलाहुद्दीन से मुलाक़ात की थी।7 मई की बैठक में आईएसआई ने औपचारिक रूप से टीआरएफ़ के गठन का एलान इन गुटों के सामने किया, पर उसका गठन वह पहले ही कर चुका था।
कुलगाम
इसके लिए पहले एक के बाद एक कई वारदातों पर नज़र डालना ज़रूरी है। संदिग्ध आतिकंवादियों ने अगस्त के पहले हफ़्ते में जम्मू-कश्मीर के कुलगाम ज़िले में बीजेपी के एक सरपंच की हत्या कर दी। अखराँ गाँव के इस सरपंच की हत्या के दो दिन बाद ही एक और सरपंच की हत्या कर दी गई।
बान्दीपोरा
इसके पहले जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में भारतीय जनता पार्टी के 3 स्थानीय नेताओं को आतंकवादियों ने 10 जुलाई को मार डाला। शेख वसीम बारी को 4 जून को पार्टी के प्रशिक्षण विभाग का कश्मीर प्रभारी नियुक्त किया गया था।
उनके पिता बशीर अहमद शेख और भाई उमर शेख की भी हत्या ताबड़तोड़ गोली मार कर की गई थी। ये तीनों एक ही दिन और एक ही समय मारे गए थे। उन्हें सुरक्षा मिली हुई थी, लेकिन हमले के समय उनके निजी सुरक्षा अधिकारी यानी पीएसओ उनके साथ नहीं थे। बशीर अहमद शेख और उमर शेख भी बीजेपी के पदाधिकारी रह चुके थे।
बारामुला
जुलाई महीने ही बारामुला के स्थानीय बीजेपी नेता और म्युनिसपल कमेटी वाटरगाम के उपाध्यक्ष मेराजुद्दीन मल्ला का अपहरण कर लिया गया था।
बांदीपोरा हत्याकांड के पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के हमले में बीजेपी के दो कार्यकर्ता मारे गए। ये दोनों हत्याएं पुलवामा-शोपियां में हुईं थीं।
अपनी राय बतायें