जगदीश शेट्टार
कांग्रेस - हुबली-धारवाड़-मध्य
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कर्नाटक में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को बदले जाने की चर्चाओं के बीच कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं और लिंगायत समुदाय के संतों ने बीजेपी को चेताया है।
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री एमबी पाटिल ने कहा है कि येदियुरप्पा को हटाए जाने से लिंगायत समुदाय नाराज़ होगा। लिंगायत समुदाय से आने वाले पाटिल ने कहा कि हालांकि यह उनका निजी मत है लेकिन येदियुरप्पा की उम्र और उनके योगदान को देखते हुए मुख्यमंत्री के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए।
एक और कांग्रेस विधायक शमनूर शिवशंकरप्पा ने बीजेपी हाईकमान को चेताया और कहा है कि अगर मुख्यमंत्री को जबरन हटाया गया तो वह उनके साथ खड़े हो जाएंगे।
मंगलवार को लिंगायत संतों का एक प्रतिनिधिमंडल येदियुरप्पा से मिला। इसके बाद उन्होंने एक बयान जारी कर बीजेपी को चेताया कि अगर येदियुरप्पा को हटाया जाता है तो बीजेपी को इसके नतीजे भुगतने होंगे।
संतों ने यह भी कहा है कि येदियुरप्पा के कारण ही बीजेपी दक्षिण भारत में चुनाव जीत सकी और कर्नाटक में सरकार बना सकी। इन संतों में बालेहोन्नूर की रम्भापुरी पीठ के श्री वीर सोमेश्वर शिवाचार्य स्वामी और श्रीसैला जगद्गुरु चन्ना सिद्धराम पंडिताराध्या भी शामिल रहे।
बता दें कि कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं ने एक बार फिर जोर पकड़ा है। बीते शुक्रवार को मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की। इसके बाद येदियुरप्पा शनिवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिले।
इन मुलाक़ातों के बाद मीडिया में ऐसी चर्चा है कि येदियुरप्पा अपने पद से इस्तीफ़ा देंगे और बीजेपी हाईकमान नए मुख्यमंत्री का नाम तय करने में जुटा है। कुछ दिन पहले पार्टी ने उत्तराखंड में भी नेतृत्व परिवर्तन किया था।
इस बीच, एक ऑडियो वायरल हुआ है जिसे कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कतील का बताया जा रहा है। हालांकि कतील ने इसे फ़र्जी बताया है। ऑडियो में कतील किसी शख़्स से कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन तय होने की बात कह रहे हैं।
येदियुरप्पा को लिंगायत समुदाय का सबसे प्रभावशाली नेता माना जाता है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फ़ीसदी है। 224 सीटों वाले कर्नाटक में इस समुदाय का असर 90-100 विधानसभा सीटों पर है। कहा जाता है कि येदियुरप्पा की वजह से ही लिंगायत समुदाय के ज़्यादातर लोग बीजेपी का समर्थन करते हैं। लिंगायत समुदाय के सभी प्रमुख मठाधीश और धार्मिक-आध्यात्मिक गुरु भी येदियुरप्पा का खुलकर समर्थन करते हैं।
अगर बीजेपी येदियुरप्पा को हटाती है तो वीरशिवा-लिंगायत समुदाय से उसके पास बसनगौड़ा पाटिल यतनाल और अरविंद बेल्लाड विकल्प के तौर पर हैं।
कर्नाटक में 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं और पार्टी हाईकमान राज्य में नया नेतृत्व उभारना चाहता है क्योंकि येदियुरप्पा की उम्र 78 साल हो चुकी है लेकिन वह उन्हें जबरन हटाने का जोख़िम नहीं ले सकता क्योंकि येदियुरप्पा 2013 में अपनी ताक़त का अहसास हाईकमान को करा चुके हैं। इसके लिए येदियुरप्पा की कुछ शर्तें हैं जिन पर पार्टी हाईकमान विचार कर रहा है।
हालांकि ये कहा जा रहा है कि येदियुरप्पा उनकी शर्तों को माने जाने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे सकते हैं। इनमें पहली और बड़ी शर्त यह है कि उनके दोनों बेटों- बी.वाई. विजयेंद्र और बी.वाई. राघवेंद्र को केंद्र सरकार में बेहतर जगह दी जाए। इसके अलावा भी कुछ और शर्तें हैं।
येदियुरप्पा न सिर्फ कर्नाटक में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता हैं बल्कि पूरे राज्य में वे काफी लोकप्रिय हैं। कर्नाटक की राजनीति में वह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के सामने खड़े होते हैं। येदियुरप्पा किसान नेता भी हैं और वह किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं।
2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की थी लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उन्हें अगस्त 2011 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद येदियुरप्पा कुछ वजहों से पार्टी हाईकमान से नाराज़ हो गए थे और कर्नाटक जनता पक्ष नाम से पार्टी बनाकर बीजेपी को अपनी ताक़त का अहसास कराया था और इस वजह से 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
बीजेपी नेतृत्व को भी इस बात का डर है कि यदि येदियुरप्पा को दबाव डालकर हटाया गया और वह नाराज़ हुए तो न सिर्फ लिंगायत समुदाय के लोग बल्कि किसान भी बीजेपी से दूर हो सकते हैं। यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व येदियुरप्पा से अनुरोध ही कर सकता है, ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं।
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी आलाकमान को येदियुरप्पा के सामने झुककर उन्हें पार्टी में वापस लाना पड़ा था। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराने और बीजेपी की सरकार बनाने का श्रेय येदियुरप्पा को ही जाता है। इसलिए पार्टी हाईकमान उन्हें नाराज़ करने का जोख़िम नहीं ले सकता उन्हें उनकी मर्ज़ी के बिना हटाने से पार्टी को भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
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