सिद्धारमैया
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शी जिनपिंग जब से 2013 में चीन के राष्ट्रपति बने हैं तब से भारत के साथ सीमाओं पर तनाव बढ़ाने वाली कई कार्रवाइयाँ हुई हैं। शी के कार्यकाल में चीनी सेना ने मौजूदा घुसपैठ को लेकर कुल पाँच बार भारतीय सीमाओं में अतिक्रमण किया है। आखिर क्या वजह है कि चीन रह रह कर भारतीय सीमा में घुसपैठ करता है।
इसका खुलासा सामरिक मामलों के टिप्पणीकार रंजीत कुमार ने अपनी ई-बुक 'ड्रैगन ने हाथी को क्यों डसा ( भारत- चीन रिश्तों की कहानी)' में काफी गहराई से किया है। लेखक ने करीब साढ़े तीन दशक पहले 1984-85 में चीन में रह कर चीनी लोगों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कार्यप्रणाली को निकट से देखा और समझा है।
करीब साढ़े तीन दशक पहले चीन में अपने प्रवास और इसके बाद चीन के कई दौरों के अपने निजी संस्मरणों और अनुभवों के आधार पर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में चीन की मानसिकता को समझाते हुए लेखक ने आज के दौर में चीन की न केवल भारत के ख़िलाफ़, बल्कि दुनिया भर में विस्तारवादी नीतियों के ज़रिये अपना प्रभुत्व स्थापित करने की हरक़तों की व्याख्या की है।
1962 के युद्ध के अढ़ाई दशक बाद तक भारत- चीन रिश्तों पर पर बर्फ जमी रही। लेकिन भारत- चीन के रिश्ते 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऐतिहासिक दौरे, जिसे आपसी रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने वाला दौरा कहा गया था, के बाद बेहतर होने शुरू हुए।
तब चीन के तत्कालीन राष्ट्रीय नेता और शिखर पुरुष कहे जाने वाले देंग जियाओ पिंग ने भारत के साथ रिश्तों के नये दौर की शुरुआत करने को हरी झंडी दिखाई। तब देंग जियाओ पिंग ने चीन को चहुँमुखी विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ाने के लिये चार आधुनिकीकरण की महत्वाकांक्षी योजना देशवासियों के सामने पेश की थी।
शायद यह एक बड़ी वजह रही होगी कि चीन अपने आर्थिक विकास के पहिये को तेजी से घुमाने के लिये अपने पड़ोसी देशों खासकर भारत के साथ किसी तरह का तनाव का रिश्ता नहीं बने रहना देना चाहता था, ताकि उसके राष्ट्रीय कर्णधारों का ध्यान आर्थिक विकास के ज़रिये चीन को शक्तिशाली बनाने पर लगा रहे।
पिछली सदी के अंतिम दशक से लेकर मौजूदा सदी के पहले दशक तक भारत-चीन संबंध आपसी सौहार्द और सहयोगी रिश्ता स्थापित करने की राह में तेजी से आगे बढ़ने लगे थे, लेकिन अचानक शी के सत्तारूढ़ होने के बाद 2013 से चीन के तेवर न केवल भारत बल्कि दुनिया को लेकर बदलने लगे।
देंग जियाओ पिंग के शासन काल में चीन कहता था कि शांतिपूर्ण विकास उसका लक्ष्य है और वह किसी के साथ तनाव नहीं चाहता। अब जबकि चीन ने अपने विकास के लक्ष्यों को काफी हद तक हासिल कर लिया है, वह दुनिया पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने का सपना देखने लगा है।
चीनी राष्ट्रपति शी ने कहा है कि 2049 तक वह चीन को दुनिया का सबसे विकसित देश बनाने का ‘चाइना ड्रीम’ (चीनी सपना) देख रहे हैं। ‘चाइना ड्रीम’ वास्तव में चीन में एक नया राष्ट्रीय नारा बन चुका है।
पिछले साल पाँच मई को चीन ने पूर्वी लद्दाख के कई सीमांत इलाकों में अपनी सेना भेजकर भारतीय इलाकों में घुसपैठ की थी, जिसमें से चीनी सेना केवल पैंगोंग झील के इलाके में ही पीछे हटी है।
चीनी सेना को गोगरा, हॉट स्प्रिंग और देपसांग के इलाकों से अपने जवानों को पीछे हटाना है, लेकिन चीनी सेना पीछे हटने का नाम नहीं ले रही। उलटे वह उन इलाक़ों में अपनी सेना की तैनाती को और सुविधाजनक बनाने के लिये नये ढाँचागत निर्माण करती जा रही है।
सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह है कि चीन ने भारत के साथ बेहतर होते रिश्तों को पटरी पर से उतारने वाली सैन्य कार्रवाई की है? क्या भारत ने चीन को ऐसा करने के लिये उकसाया या फिर यह चीन की विस्तारवादी मानसिकता का परिचायक है जिसकी वजह से चीन ने भारत की पीठ में एक बार फिर छुरा घोंपने का दुस्साहस किया?
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