कांग्रेस को भ्रष्ट बताने और 70 साल से देश और दिल्ली की जनता के साथ धोखा करने वाला बताने पर भी केजरीवाल उससे समझौता करने की जिद आख़िर क्यों कर रहे हैं।
दरअसल, अपनी राजनीति से अब तक घाघ पार्टियों को चकमा देने वाले केजरीवाल इस बार खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं। हालत यह हो गई है कि उन्हें लग रहा है कि कहीं लोकसभा में ‘आप’ जीरो न हो जाए। यही वजह है कि वह कांग्रेस के सामने कभी समझौते की पेशकश करते हैं तो कभी गिड़गिड़ाते हैं और कभी बददुआ देते हैं।
दिल्ली में ‘आप’ के वोट प्रतिशत पर नज़र डालें तो यह साफ़ हो जाएगा कि वह अकेले बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं है। यह बात केजरीवाल एंड पार्टी खुलेआम स्वीकार कर चुकी है।
पिछले लोकसभा चुनावों में दिल्ली में बीजेपी को 46 फ़ीसदी, आप को 33 फ़ीसदी और कांग्रेस को 15 फ़ीसदी वोट मिले थे। अगर आप और कांग्रेस के वोट मिला लिए जाएँ तो बीजेपी को मोदी लहर में भी हराया जा सकता था।
पिछले लोकसभा चुनावों में 7 में से 6 सीटों पर कांग्रेस और ‘आप’ के वोट मिलाकर बीजेपी को मिले वोटों से ज़्यादा थे। सिर्फ़ पश्चिमी दिल्ली सीट पर ही जीत का अंतर इन दोनों पार्टियों के वोटों से ज़्यादा था। इसी आधार पर केजरीवाल कह रहे हैं कि हम मिलकर बीजेपी को हरा सकते हैं। मगर, इसके लिए उनकी कुछ शर्तें भी हैं जो कांग्रेस को स्वीकार नहीं हैं।
हरियाणा, पंजाब में चाहिए सीट
शर्त यह है कि केजरीवाल दिल्ली की तीन सीटों के बदले पंजाब और हरियाणा में तीन सीटें माँग रहे थे। दिल्ली में कांग्रेस, ‘आप’ के सहयोग के बाद भी बीजेपी को हरा सकती है, इसमें संदेह है लेकिन पंजाब में तो कांग्रेस जीती हुई स्थिति में है। इस तरह केजरीवाल दिल्ली की संदेह वाली सीटों को देकर पंजाब में जीतने वाली सीटें हासिल करना चाहते थे।
गिर रहा ‘आप’ का वोट प्रतिशत
दिल्ली में केजरीवाल की चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि ‘आप’ का वोट प्रतिशत लगातार कम हो रहा है। लोकसभा चुनावों में ‘आप’ को 33 फ़ीसदी वोट मिले थे तो 2017 में हुए नगर निगम चुनावों में उसका वोट प्रतिशत 26 फ़ीसदी पर आ गया। दूसरी तरफ़ कांग्रेस 15 फ़ीसदी से उठकर 21 फ़ीसदी पर आ गई। इस तरह यह जाहिर हो रहा है कि कांग्रेस का वोट बैंक वापस उसकी तरफ़ जा रहा है।
केजरीवाल इसीलिए दिल्ली में कांग्रेस से समझौते के लिए छटपटा रहे हैं कि बिना कांग्रेस के उन्हें दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिलने जैसी स्थिति पैदा हो रही है और यही स्थिति उनके लिए चिंता पैदा कर रही है।
केजरीवाल को लग रहा है कि अगर दिल्ली से कोई सीट नहीं आई और पंजाब में भी सफ़ाया हो गया तो फिर ‘आप’ का तो लोकसभा में कोई नामलेवा भी नहीं होगा।
इस बार झोली खाली रहने का डर
पिछली बार 434 उम्मीदवार मैदान में उतारने के बाद पंजाब से 4 उम्मीदवार तो जीतकर आ गए थे लेकिन इस बार झोली पूरी तरह खाली हो सकती है। इसीलिए पहले वह दिल्ली पर जोर डालते रहे, फिर पंजाब की बात की और अब हरियाणा के लिए पेशकश कर रहे हैं। केजरीवाल इस आधार पर पेशकश कर रहे हैं कि हाल ही में जींद में हुए उपचुनाव में बीजेपी इसलिए 12 हजार वोट से जीत गई कि चौटाला के बाग़ी परिवार की पार्टी जननायक जनता पार्टी को 37 हज़ार और कांग्रेस को 22 हज़ार वोट मिल गए थे।
केजरीवाल के मुताबिक़, जींद में अगर विपक्षी दल इकट्ठे हो गए होते तो बीजेपी 9 हज़ार वोट से हार जाती, इसीलिए वह हरियाणा में जननायक जनता पार्टी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते हैं।
आख़िर क्यों गठबंधन करे कांग्रेस
केजरीवाल शायद यह भूल जाते हैं कि इतना ज्ञान तो कांग्रेसियों को भी है कि केजरीवाल उसी वोट बैंक के बल पर दिल्ली में आए हैं जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था। अगर कांग्रेस केजरीवाल को मजबूत करेगी तो फिर वह अपना वोट बैंक ही खोएगी। ऐसे में वह केजरीवाल की पार्टी को ऑक्सीजन क्यों दे। दिल्ली में कांग्रेस ने इसीलिए समझौता नहीं किया तो पंजाब या हरियाणा में वह कैसे समझौता कर सकती है। अगर समझौता नहीं हुआ तो केजरीवाल शून्य पर आ सकते हैं और यही स्थिति तो कांग्रेस को दिल्ली में मज़बूत कर सकती है।
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