ख़म ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है !!
बेगूसराय! बुद्ध, महावीर की विहारस्थली, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की धरती, गंगा की कृपा से भारत की सबसे उर्वरा भूमि में से एक है। स्वतन्त्र भारत के शुरुआती दौर के औद्योगीकरण का प्रयोग क्षेत्र, वर्षा ऋतु में महीनों तक बाढ़ में डूबे दुनिया से कटे दियारे, बड़े-बड़े जमींदारों से लेकर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों का हुजूम, इंटरनेशनल स्कूल चलानेवाले धनाढ्यों से लेकर औद्योगिक कचरा उठाने वाले जीविकोपार्जियों का जमघट भी बेगूसराय ही है। गर्म मिजाज, कुटीर शस्त्र उद्योग में कुख्यात, सामंतवाद का गढ़, दबंगई, रंगदारी - यह सब मिलकर बेगूसराय है और यह असली भारत का जीवंत प्रतीक है।
इस लोकसभा चुनाव में भारत भर की नज़रें बेगूसराय पर हैं। क्योंकि बेगूसराय का चुनाव पिछले 5 साल के बीजेपी के ‘राष्ट्रद्रोही बनाम राष्ट्रप्रेमी’ के बाइनरी की जनस्वीकृति का बैरोमीटर बनेगा। एक तरफ़ कन्हैया कुमार हैं, जिनपर मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के प्रारम्भ में ही देशद्रोही का लेबल चस्पा कर दिया था तो दूसरी ओर बीजेपी की उग्रता के जीवंत प्रतीक गिरिराज सिंह हैं, जो बीजेपी की विचारधारा से सहमति नहीं रखने वाले हर व्यक्ति को पाकिस्तान भेजने के टिकट एजेंट का प्रतिरूप बन चुके हैं। इस खौलती कड़ाही को क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय जनता दल भी अपनी भरसक ऊष्मा दे रहा है।
स्वतन्त्र भारत के प्रांरभिक दौर में ही बेगूसराय को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया। बरौनी में रिफ़ाइनरी, फ़र्टिलाइजर, थर्मल पावर, डेयरी आदि के बड़े-बड़े उपक्रम बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के प्रयासों से स्थापित हुए जिसके चलते बेगूसराय बिहार की औद्योगिक राजधानी बन गया।
बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में क़रीब 17 लाख मतदाता हैं, जो 7 विधानसभा क्षेत्रों में फैले हुए हैं। कुल 250 पंचायतों में क़रीब 1200 गाँव-देहात भी आते हैं। यहाँ साक्षरता की दर 60 फ़ीसदी से नीचे है और औसत मतदान 60 फ़ीसदी होता है।
बेगूसराय भारत के घोषित पिछड़े जिलों में से एक है। यहाँ पुरुष-महिला अनुपात 875 है और प्रति व्यक्ति आय 18000 रुपये है, जो कि बिहार के 13000 रुपये से अधिक है।
बेगूसराय के कुल सात विधानसभा क्षेत्रों में दो सीट कांग्रेस, दो जेडीयू तथा 3 आरजेडी के पास हैं। 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को यहाँ 20 फ़ीसदी, जेडीयू को 15 फ़ीसदी, कांग्रेस को 14 फ़ीसदी, आरजेडी को 20 फ़ीसदी, एलजेपी को 10 फ़ीसदी तथा सीपीआई को 10 फ़ीसदी मत मिले थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी+जेडीयू को 40 फ़ीसदी, आरजेडी को 35 फ़ीसदी, सीपीआई को 18 फ़ीसदी मत मिले थे।
ध्यान रहे कि भारी औद्योगिकीकरण एवं स्थापित सामंतवाद के कारण बेगूसराय पारम्परिक रूप से सीपीआई का ठोस वोटबैंक रहा है तथा उसे 2009 के लोकसभा चुनावों में 33 फ़ीसदी वोट भी प्राप्त हुए थे। बेगूसराय को ऐसे ही लिटिल मॉस्को या लेनिनग्राद ऑफ़ इंडिया की संज्ञा नहीं प्राप्त हुई है।
जातीय समीकरण की दृष्टि से देखें तो बेगूसराय में सबसे अधिक मिश्रित दलित समुदाय 25 फ़ीसदी, फिर भूमिहार 21 फ़ीसदी, यादव 14 फ़ीसदी, मुसलिम 13 फ़ीसदी, सवर्ण 11 फ़ीसदी, कुशवाहा 6 फ़ीसदी और 3 फ़ीसदी निषाद मतदाता हैं।
सीपीआई ने स्थानीय युवा भूमिहार कन्हैया कुमार को चुनाव से बहुत पहले ही अपना प्रत्याशी बनाकर चुनावी समीकरण में प्रारम्भिक बढ़त हासिल कर ली थी।
कन्हैया ने शुरू कर दिया था प्रचार
2018 के उत्तरार्ध से ही सीपीआई के कैडर ने प्रतिदिन कन्हैया कुमार की गाँव-गाँव में जनसभाएँ आयोजित करनी शुरू कर दी थीं, जिसमें कन्हैया का काफ़िला दोपहर से ही उस गाँव के प्रभावशाली व्यक्ति के दालान पर गोष्ठियाँ भी करता था, भोजन आदि भी करता था और स्थानीय लोगों से संवाद भी करता था। शाम को उसी गाँव में जनसभा भी होती थी जिसमें सीपीआई का कैडर बढ़-चढ़कर मज़दूर, दलित, पिछड़ों की भीड़ भी इकट्ठा करता था जिसे कन्हैया अपनी प्रभावशाली ग्रामीण बोली में सम्बोधित करते रहे।
कन्हैया का डोर-टू-डोर का यह सिलसिला कमोबेश 6 महीनों तक चलता रहा जिसके चलते गाँव-देहात में बीजेपी द्वारा प्रचारित उनकी राष्ट्रद्रोही वाली छवि काफ़ी हद तक कुंद पड़ गई। स्थानीय तथा स्वजातीय होने की सहानुभूति भी कन्हैया को भरपूर मिली क्योंकि कन्हैया की नेगेटिव छवि के प्रचार के अलावा बीजेपी अपनी तरफ़ से कोई और प्रचार उनके ख़िलाफ़ नहीं कर पाई।
कांग्रेस के पूर्णतः नेपथ्य में चले जाने से कन्हैया के प्रचार में और अधिक वृद्धि हुई। वर्तमान ज़मीनी रुझान में बछवाड़ा, तेघरा तथा मटिहानी विधानसभा क्षेत्रों में कन्हैया कुमार बढ़त लिए हुए दिख रहे हैं।
जातीयता, साम्प्रदायिकता, राष्ट्रीयता, ग़रीबी, बेरोज़गारी, किसान व्यथा आदि मुद्दों के बीच कौन जीतकर निकलेगा, यह बेगूसराय के लिए ही नहीं पूरे भारत के वैचारिक विमर्श का दिशा सूचक होगा। क्या कांग्रेस की अनुपस्थिति में कांग्रेस का वोटर कन्हैया की तरफ़ जाएगा?
क्या एक-चौथाई भूमिहार कन्हैया को स्वजातीय एवं स्वक्षेत्रीय मानकर उसकी तरफ़ झुकेंगे? क्या सीपीआई के क़रीब 3 लाख दलित वोट एकमुश्त कन्हैया के पक्ष में पड़ेंगे? क्या 50 हज़ार यादव युवा जात-पात से ऊपर उठकर कन्हैया में अपनी छवि देखेंगे? क्या दो-तिहाई मुसलमान अपना पारम्परिक वोट आरजेडी के खे़मे से कन्हैया के खे़मे में ट्रांसफ़र करेंगे?
क्या पढ़ा-लिखा युवा वर्ग कन्हैया के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के विचारों को सहमति प्रदान करेगा? या बाहरी भूमिहार गिरिराज सिंह हर-हर मोदी के गीत गाते हुए गंगा पार करेंगे?
बेगूसराय का चुनाव सक्षिप्त में ऐसा होगा -
टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,फन शेषनाग का डोलेगा,विकराल काल मुँह खोलेगा।बेगूसराय! रण ऐसा होगा।फिर कभी नहीं जैसा होगा।भाई पर भाई टूटेंगे,विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,वायस-श्रृंगाल सुख लूटेंगे,सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।आख़िर कोई भूशायी होगा,हिंसा का पर, दायी होगा।
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