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एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।

एमपी: नौकरियों का दाँव क्या उपचुनाव में बीजेपी की वैतरणी पार लगा पायेगा?

मध्य प्रदेश सरकार का खजाना खाली है। कर्मचारियों का डीए ‘फ्रिज’ है। एरियर्स पर रोक है। पेंशनधारियों को पिछले छह महीने से मुफ्त दवाएँ नहीं मिल पा रही हैं। कई महकमे वक़्त पर कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं बाँट पा रहे हैं। बिजली के बिल लोगों को ज़बरदस्त ‘करंट’ मार रहे हैं। इन मुश्किल हालातों के बीच विधानसभा की 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बड़ा दाँव खेला है। शिवराज सिंह ने मंगलवार को घोषणा की कि मध्य प्रदेश में पैदा होने वाली सरकारी नौकरियों पर केवल और केवल राज्य के युवाओं का ही ‘हक’ होगा।

मुख्यमंत्री चौहान के एलान के ठीक बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोल दिया। पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये। अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘क्लर्क व चपरासी की नौकरी तक के लिए हज़ारों डिग्रीधारी लाइनों में लगते रहे। मज़दूरों व ग़रीबी के आँकड़े इसकी वास्तविकता ख़ुद बयाँ कर रहे हैं। अपनी पिछली 15 वर्ष की सरकार में कितने युवाओं को आपकी सरकार ने रोज़गार दिया, यह भी पहले आपको सामने लाना चाहिए।’

कमलनाथ सरकार में मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता जीतू पटवारी ने शिवराज सरकार को घेरते हुए कहा, ‘सिर्फ़ घोषणा से क्या होगा, घोषणावीर जी! बतायें कब तक सभी रिक्त 50 हज़ार शासकीय पद भरेंगे। क्योंकि अगर भर्ती नहीं होगी तो ऐसे प्रावधानों का कोई महत्व ही नहीं है। कर्मचारियों के एरियर्स और इंक्रीमेंट कब से देना शुरू कर रहे हैं?’

आरोप-प्रत्यारोप के पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपनी घोषणा में कहा, ‘मध्य प्रदेश की उनकी सरकार ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसला लिया है। मध्य प्रदेश की शासकीय नौकरियाँ अब केवल मध्य प्रदेश के बच्चों को ही दी जाएँगी। इसके लिए सरकार क़ानून में नया प्रावधान करने जा रही है। मध्य प्रदेश के संसाधन मध्य प्रदेश के बच्चों के लिए हैं।’

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दिग्विजय सिंह सरकार में था ऐसा प्रावधान

पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह की सरकार में मध्य प्रदेश में इस तरह (मध्य प्रदेश की सरकारी नौकरियाँ, मध्य प्रदेश के बच्चों को ही देने) का प्रावधान था।

हाल ही में दिग्विजय सिंह ने एक वीडियो संदेश जारी करते हुए स्वयं की सरकार के प्रावधान की याद दिलाते हुए पुरानी व्यवस्था को बहाल करने की माँग शिवराज सिंह सरकार से की थी।

दरअसल, बड़ी संख्या में प्रदेश के बेरोज़गार युवा, नौकरियों से जुड़ी अपनी समस्याओं को लेकर दिग्विजय सिंह के पास पहुँचे थे। इसी के बाद दिग्विजय सिंह ने बेरोज़गार युवाओं को अपने साथ खड़ा करके संदेश जारी किया था।

कमलनाथ सरकार में बढ़े 7 लाख बेरोज़गार

बेरोज़गारी अकेले मध्य प्रदेश नहीं, देश भर की बड़ी समस्या है। मध्य प्रदेश की पूर्ववर्ती दिग्विजय सिंह सरकार से लेकर कमलनाथ सरकार ने प्रावधान और वादे ज़रूर किये, लेकिन युवाओं को रोज़गार वह भी नहीं दे पायी। तत्कालीन कमलनाथ सरकार के एक साल के कार्यकाल में मध्य प्रदेश में 7 लाख बेरोज़गार युवाओं की नई फौज खड़ी हुई। जबकि नौकरियाँ 34 हज़ार युवाओं को ही मिल पायी। कुछ ऐसा ही हाल मध्य प्रदेश की 15 सालों की बीजेपी की सरकार में रोज़गार के मोर्चे पर रहा।

मध्य प्रदेश के 31 दिसंबर 2019 को पंजीकृत बेरोज़गारों का आँकड़ा 27 लाख 79 हज़ार 725 था। अक्टूबर 2018 (कमलनाथ सरकार के आने के पहले) को यह संख्या 20 लाख 77 हज़ार 22 थी। जो एक साल में 7 लाख के लगभग बढ़ी थी।

सत्ता में आने के पहले कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं को बेरोज़गारी भत्ता देने का एलान किया था। हर महीने 4 हज़ार रुपये का स्टाइपेंड देने का नाथ ने सरकार में आने के बाद फ़ैसला भी लिया था। मगर गिने-चुने बेरोज़गारों को ही इसका लाभ मिल पाया था। बड़ी संख्या में बेरोज़गार स्टाइपेंड से वंचित रहे थे।

मौजूदा साल में अब तक यह आँकड़ा और भी भयावह हो चुका है। प्रदेश में मार्च से शिवराज सिंह की सरकार है। पिछले चार-साढ़े चार महीने में भी बेरोज़गार काफ़ी संख्या में बढ़े हैं।

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शिवराज का निशाना 27 विधानसभा सीटें!

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की मध्य प्रदेश की सरकारी नौकरियों को राज्य के ही बच्चों को देने की घोषणा को राज्य में 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। प्रेक्षकों का कहना है, ‘भाजपा के पास जनता के सामने बताने के लिए बहुत कुछ है नहीं, कांग्रेस के विधायकों को ख़रीदकर सत्ता में तो वह आ गई थी, लेकिन अब सरकार में बने रहने के लिए ज़रूरी नंबर कैसे जुटाये जाएँ, इसके लिए वह जुगतबाज़ी कर रही है।’

कांग्रेस के हालात बीजेपी से बदतर हैं। उसमें भारी बिखराव है। नाथ के अलावा कांग्रेस के पास तुरूप के पत्ते के तौर पर दिग्विजय सिंह भर हैं। ऊपरी तौर पर तो दोनों एक-दूसरे के साथ होने का दावा करते हैं, लेकिन इनमें चल रही खींचतान किसी से छिपी हुई नहीं है।

उधर बीजेपी में कांग्रेस के पूर्व विधायकों को लेकर असंतोष है। सरकार बनाने के लिए इन्हें साथ लेना उन लोगों को क़तई रास नहीं आया है, जिनकी राजनीति सीधे-सीधे प्रभावित हो रही है। शिवराज सिंह विरोधी बीजेपी नेता और राज्यसभा के पूर्व सदस्य रघुनंदन शर्मा की अगुवाई में असंतुष्ट अपनी खिचड़ी अलग पकाने में जुटे हुए हैं। कुल मिलाकर बीजेपी के लिए भी कठिनाइयाँ कम नहीं हैं। मुश्किलों की फेहरिस्त बीजेपी खेमे में लंबी है। कैसे निपटेंगे? टीम शिवराज के लिए सबकुछ आसान नहीं है।

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संजीव श्रीवास्तव

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