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महाराष्ट्र: सीएम पर सुई अटकी? दीवाली बाद मुंबई आयेंगे शाह!

क्या भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का पद शिवसेना को देने के लिए तैयार होगी? यह बड़ा सवाल आज मुंबई से लेकर दिल्ली तक के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। यदि मुख्यमंत्री पद नहीं तो क्या 1995 के फ़ॉर्मूले के अनुसार सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त होगा या फिर शिवसेना नए सहयोगियों के विकल्प पर आगे बढ़ेगी? ख़बर यह भी है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दीवाली के बाद मुंबई आकर इस मामले का हल निकालने का प्रयास करेंगे। 

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के आवास मातोश्री में शनिवार को पार्टी के नव निर्वाचित विधायकों की बैठक हुई। बैठक में अधिकांश विधायकों ने इस बात का समर्थन किया कि यह मौक़ा है, इसका जितना बेहतर हो सके इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। 

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बीजेपी से लें लिखित आश्वासन 

आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाये जाने की माँग को लेकर मातोश्री के बाहर शिवसेना की तरफ़ से बैनर और होर्डिंग्स भी लगाए गए थे। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि पार्टी मुख्यमंत्री के पद को लेकर कितनी गंभीर है। इस बैठक में एक बात प्रमुखता से उठी कि बीजेपी से लिखित रूप में लिया जाये कि वह 50:50 का फ़ॉर्मूला मानेगी, सत्ता में समान भागीदारी होगी और वह ढाई साल के लिए आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाएगी। 

बीजेपी से लिखित आश्वासन माँगे जाने की बात ही काफ़ी कुछ इशारा करती है। इससे पहला सवाल यह निकलता है कि क़रीब 30 साल साथ रहने वाली शिवसेना को क्या आज के बीजेपी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं रह गया है? या क्या पिछले पाँच साल में सत्ता में सहयोगी रहने के बाद भी शिवसेना के मंत्रियों और विधायकों को वह सम्मान नहीं मिला जो एक सत्ताधारी दल के नेताओं को मिलना चाहिए था? इन दोनों सवालों के जवाब किसी ना किसी रूप में पिछले दिनों शिवसेना के नेताओं के बयानों में देखने को मिले हैं। 

पार्टी के अपने मुखपत्र सामना के ताज़ा अंक में जो संपादकीय लिखा था उसमें स्पष्ट संकेत दिया गया था कि बीजेपी के नेता सत्ता के उन्माद से भरे हैं और उन्हें लोगों की भावनाओं और उनके मुद्दों की कोई परवाह नहीं है। विगत पाँच साल सरकार में रहते हुए भी अनेकों बार शिवसेना के विधायकों ने यह बात सार्वजनिक मंचों से कही है कि उनके काम नहीं किये जा रहे हैं या बीजेपी के पास जो मंत्रिमंडल हैं, वहाँ उनके कार्यों को तवज्जो नहीं मिलती। 

जिस दिन वोटों की ग़िनती हो रही थी उस दिन स्वयं उद्धव ठाकरे ने मीडिया के समक्ष आकर यह बात कही थी कि 'बहुत हो गया, अब मैं बीजेपी के नेताओं की अड़चनों को समझूं, ऐसा नहीं होगा, अब हम सत्ता का समान बंटवारा चाहेंगे, जो अमित शाह ने मातोश्री में आकर मुझे बताया था।' दरअसल, लोकसभा चुनावों में बीजेपी के साथ शिवसेना के गठबंधन का फ़ैसला अमित शाह और उद्धव ठाकरे की उसी बैठक के बाद हुआ था। उसके बाद उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस हर बार यही जवाब देते रहते थे कि 'हमने तय कर लिया है' लेकिन क्या तय कर लिया है यह उन्होंने कभी नहीं बताया। 

1995 के फ़ॉर्मूले पर बनेगी बात!

अब जबकि मामला फंस गया है तो उद्धव ठाकरे सत्ता के समान बंटवारे के उस फ़ॉर्मूले की बात सबके सामने लाये हैं। एक जो दूसरी बात उठी है वह है 1995 का फ़ॉर्मूला। यह फ़ॉर्मूला उस दौर का है जब केंद्र में अटल-आडवाणी हुआ करते थे और महाराष्ट्र में महाजन-मुंडे। आडवाणी आज बीजेपी में हाशिये में हैं। 1995 के फ़ॉर्मूले में यह बात थी कि जिस पार्टी के ज़्यादा विधायक आयेंगे उसे मुख्यमंत्री पद मिलेगा। उस समय शिवसेना के 73 विधायक जीते थे जबकि बीजेपी के 65। उस सरकार को 45 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल था। शिवसेना को मुख्यमंत्री के साथ-साथ राजस्व, उद्योग, परिवहन, सहकारिता, सामाजिक न्याय, कृषि, पशु संवर्धन, दुग्ध विकास जैसे विभाग मिले थे जबकि बीजेपी को उप मुख्यमंत्री के साथ गृह, वित्त और योजना, सार्वजनिक निर्माण कार्य, जल संपदा, ऊर्जा, ग्राम विकास, पेयजल आपूर्ति, स्वास्थ्य, आदिवासी विकास जैसे जनता से सीधे जुड़ाव वाले विभाग मिले। 

उस समय भी यह कहा जाता था कि बीजेपी ने मंत्रालयों के बंटवारे में चतुराई दिखाई और महत्वपूर्ण विभाग ले लिए। दरअसल, शिवसेना-बीजेपी के बीच हुआ 1995 का फ़ॉर्मूला गठबंधन सरकारों के लिए एक पैमाना बन गया। 1999 में जब सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में गठबंधन हुआ, उस समय भी इसी फ़ॉर्मूले को आधार बनाकर कांग्रेस और एनसीपी ने मुख्यमंत्री-उप मुख्यमंत्री और संबंधित मंत्रालयों का वितरण किया। इस फ़ॉर्मूले को 2014 में देवेंद्र फडणवीस ने तोड़ा। 122 सीटें जीतने के बाद बीजेपी को ऐसा लगने लगा था कि वह अपने बूते पर सरकार चला लेगी, क्योंकि उसे बहुमत के लिए मात्र 23 और विधायकों की ज़रूरत थी। 8 निर्दलीय विधायकों के वह संपर्क में थी, ऊपर से एनसीपी के प्रमुख शरद पवार का खुला न्यौता कि वह बिना किसी शर्त के समर्थन देने को तैयार हैं। बीजेपी और शिवसेना ने वह चुनाव 25 सालों में पहली बार अलग-अलग लड़ा था। 

शिवसेना के विधायकों पर बनाया था दबाव!

सरकार बनने के बाद फडणवीस ने सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय बीजेपी के हिस्से में रख लिए। शिवसेना को सार्वजनिक निर्माण का आधा मंत्रालय, स्वास्थ्य, उद्योग और परिवहन के अलावा कुछ अन्य छोटे-छोटे मंत्रालयों पर संतोष करना पड़ा। इसके पीछे कुछ लोग यह भी कारण बताते हैं कि उस समय बीजेपी ने शिवसेना के कुछ विधायकों को अपने पक्ष में करके पार्टी पर दबाव बनाने का खेल भी खेला था। शायद यही कारण होगा जिसकी वजह से पाँच साल तक सरकार में रहते हुए भी बीजेपी और शिवसेना के बीच रिश्ते सहज नहीं हो सके और शिवसेना सरकार की नीतियों और योजनाओं पर खुलकर बोलती रही। 

बात लोकसभा चुनाव में गठबंधन की आयी तो उद्धव ठाकरे ने अपनी शर्तों के अनुरूप बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मातोश्री में भेंट की। कहा जाता है कि लोकसभा चुनावों में अपनी ज़रूरत के लिए अमित शाह आये और गठबंधन पर स्वीकृति भी दी लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने सीटों के बंटवारे और गठबंधन की जिम्मेदारी राज्य के नेताओं विशेषकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर ही छोड़ दी। 

अब जब पेच फंसा है तो शिवसेना ने फिर से एक शर्त यह भी रख दी है कि सरकार गठन के लिए बीजेपी के राज्य स्तर के नेताओं से चर्चा नहीं की जाएगी। शिवसेना चाहती है कि अमित शाह खुद आएं और वह लोकसभा चुनाव के गठबंधन के दौरान जो फ़ॉर्मूला तय करके गए थे, उसके अनुरूप सत्ता में समान सहभागिता की बात करें। ऐसे में एक बात तो साफ़ है कि सरकार गठन को लेकर महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी के बीच कोई बड़ा निर्णय दीवाली के बाद ही होना है। इस पूरी प्रक्रिया में राज्य स्तर के बीजेपी नेताओं की तरफ़ से कोई बयान नहीं आ रहा है। 

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एक मराठी समाचार पत्र में मुख्यमंत्री का यह बयान छपा है कि शिवसेना की तरफ़ से सरकार बनाने को लेकर कोई प्रस्ताव अभी नहीं आया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा पता चल रहा है कि शिवसेना में उप मुख्यमंत्री पद के साथ कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलने की बात चल रही है। उनका प्रस्ताव आने पर ही इस दिशा में आगे कोई बात होगी। मुख्यमंत्री ने इस बात की संभावना भी जताई है कि सरकार के गठन को तय करने के लिए अमित शाह मुंबई आ सकते हैं। 

बताया जा रहा है कि जीत की बधाई देने के लिए अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव ठाकरे को फ़ोन भी किया था। बीजेपी-शिवसेना के बीच चल रही इस जोर-आजमाइश के बीच एक और महत्वपूर्ण ख़बर बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने वाली छोटी सहयोगी पार्टियों को लेकर आ रही है। इन छोटी पार्टियों में केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले की आरपीआई, महादेव जानकर की राष्ट्रीय समाज पक्ष, शिव संग्राम पक्ष, सदाशिव खोत की रयत पार्टी शामिल है। 

बीजेपी नेताओं द्वारा अब यह बात कही जा रही है कि इस बार सरकार में इन पार्टियों को एक-एक कैबिनेट मंत्री, दो-दो राज्य मंत्री तथा एक-एक महामण्डल का अध्यक्ष पद दिया जाएगा। फडणवीस ने अपनी पहली सरकार में इनमें से अधिकांश को सिर्फ़ एक-एक राज्य मंत्री का पद ही दिया था। बीजेपी नेताओं की इस घोषणा को राजनीतिक चाल के रूप में ही देखा जा रहा है। यदि शिवसेना के साथ सत्ता का समान बंटवारा होगा तो इतने कैबिनेट मंत्री के पद कैसे दिए जायेंगे? ऐसे में क्या बीजेपी अपने खाते से इन्हें मंत्री बनाएगी? यह भी कहा जा रहा है कि यह शिवसेना पर दबाव बनाये जाने की नीति है तथा अधिक से अधिक निर्दलीयों को अपने तरफ लाने का खेल है। 

जो ख़बरें मिल रहीं हैं उनसे एक बात साफ़ समझ में आ रही है कि बीजेपी बहुत आसानी से शिवसेना को मुख्यमंत्री का पद देने को तैयार नहीं दिख रही है। इसलिए यह दंगल लम्बा चलने वाला है।
बीजेपी-शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस और एनसीपी भी निर्दलीय विधायकों को अपने तरफ लेने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ निर्दलीय ऐसे भी हैं जो पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर बाग़ी बनकर मैदान में उतरे थे और जीते हैं। मुंबई की सियासी हलचल से दूर बारामती में शनिवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात व अन्य नेताओं ने शरद पवार के साथ बैठक की। इन बैठकों का विषय आगे की रणनीति तय करना था। 

बीजेपी विधायक दल की बैठक 30 को 

सरकार कैसे बनेगी इस पर रुख अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है लेकिन बीजेपी ने इस दिशा में पहल शुरू कर दी है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा है कि 30 अक्टूबर को बीजेपी विधायक दल की बैठक होगी। पाटिल के मुताबिक़, विधान भवन में होने वाली इस बैठक में विधायक दल का नेता चुना जाएगा। जो ख़बरें निकलकर आ रही हैं उनके मुताबिक़, देवेंद्र फडणवीस को ही विधायक दल का नेता चुना जाएगा। विधायक दल की बैठक में बीजेपी के सभी 105 नवनिर्वाचित विधायक शामिल होंगे। 

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संजय राय

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