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भीमा कोरेगाँव हिंसा: क्या संभाजी भिड़े पर कसेगा महाराष्ट्र सरकार का शिकंजा?

‘भीमा कोरेगाँव प्रकरण में मनोहर उर्फ़ संभाजी भिड़े से हमें कोई सहानुभूति नहीं है।’ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रदेश अध्यक्ष और उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री जयंत पाटिल का यह बयान बहुत मायने रखता है। इसी संबंध में एक बयान पिछली सरकार में विरोधी पक्ष के नेता रहे कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार का भी आया है। उन्होंने कहा है कि मनोहर भिड़े की भीमा कोरेगाँव प्रकरण में जाँच होनी चाहिए। तो क्या अब यह माना जाए कि महा विकास अघाड़ी की सरकार भीमा कोरेगाँव हिंसा प्रकरण की जाँच करवाएगी। और क्या नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में महाराष्ट्र पुलिस की जाँच का नजरिया बदलेगा? दरअसल, इन दोनों ही प्रकरणों में पिछले क़रीब दो सालों में महाराष्ट्र पुलिस की भूमिका को लेकर अदालतों ने काफी संदेह जताया है और टीका-टिप्पणी भी की है। 

पहले यहाँ हम जिक्र करेंगे भीमा कोरेगाँव प्रकरण का। भीमा कोरेगाँव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौक़े पर 31 दिसंबर 2017 को आयोजित समारोह में हिंसा भड़की थी। हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कुछ अन्य घायल हो गये थे। घटना के बाद पुणे पुलिस ने एल्गार परिषद मामले में कई कार्यकर्ताओं के आवासों और दफ्तरों पर छापे मारे थे और वेरनोन गोन्जाल्विस को गैरक़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया था। 

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पुलिस ने दावा किया था कि परिषद में 31 दिसंबर 2017 को दिये गये भड़काऊ भाषणों की वजह से अगले दिन पुणे जिले के भीमा-कोरेगाँव इलाक़े के आसपास के क्षेत्रों में जातीय हिंसा भड़की थी। बाद में पुलिस ने इसकी जाँच अर्बन नक्सल के नजरिये से करनी शुरू की और वामपंथी कार्यकर्ता के.पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फेरेरा और वेरनोन गोन्जाल्विस को गिरफ्तार कर लिया।  
शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिड़े और समस्त हिंदू अघाड़ी के नेता मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया और इस वजह से हिंसा हुई। भिड़े राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक हैं और एकबोटे बीजेपी के नेता हैं और विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं।

हिंसा के बाद दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने भिड़े और एकबोटे के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने की माँग की थी। हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वहां बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने सम्मान प्रकट करते हैं। यह विजय स्तम्भ ईस्ट इंडिया कंपनी ने भीमा कोरेगाँव में हुई लड़ाई में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था।  इस स्तम्भ पर 1818 की लड़ाई में शामिल होने वाले महार योद्दाओं के नाम अंकित हैं। ये वे योद्धा हैं जिन्हें पेशवाओ के ख़िलाफ़ जीत मिली थी। 

इसे कुछ लोग महाराष्ट्र में दलित और मराठा समाज के टकराव की तरह प्रचारित करते हैं और इसकी वजह से इन दोनों समाजों में कड़वाहट भी पैदा होती रहती है। 2018 को चूंकि इस युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी, लिहाजा बड़े पैमाने पर लोग जुटे और टकराव भी हुआ। इस मामले के एक अन्य अभियुक्त गौतम नवलखा की गिरफ्तारी को लेकर भी पुलिस की कई बार अदालत में किरकिरी हो चुकी है। 12 जून 2019 को इस मामले में सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि नागरिक स्वतंत्रता के हिमायती कार्यकर्ता गौतम नवलखा के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टया कोर्ट ने कुछ नहीं पाया है। 6 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार व पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी। 

लेकिन इस मामले का एक पक्ष और है, और यह पक्ष कभी मीडिया की चर्चाओं का केंद्र नहीं बना और ना ही इसे लेकर सवाल खड़े हुए। पक्ष यह है कि महाराष्ट्र पुलिस ने मनोहर भिड़े के मामले में क्या रुख अपनाया है? क्योंकि भिड़े भी इस प्रकरण में अभियुक्त हैं।

भिड़े के ख़िलाफ़ नहीं हुई कार्रवाई 

भीमा कोरेगाँव प्रकरण में अनीता सालवे की शिकायत पर मिलिंद एकबोटे, मनोहर भिड़े और अन्य के ख़िलाफ़ मामला दर्ज हुआ है। एकबोटे की गिरफ्तारी हुई थी और उन्हें कुछ महीने जेल में भी रखा गया था लेकिन आज तक मनोहर भिड़े के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मनोहर भिड़े पर कारवाई की जाए, इस सम्बन्ध में मुंबई हाई कोर्ट में भी याचिका दाख़िल की जा चुकी है। इस याचिका की सुनवाई कर कोर्ट ने अप्रैल, 2019 में पुणे ग्रामीण पुलिस, राज्य सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया था। नोटिस के जवाब में 16 जून, 2019 को पुणे ग्रामीण पुलिस ने जवाब दिया था कि मामले की जाँच शुरू हो चुकी है और वह इस प्रकरण में कार्रवाई करने वाली है। इस जवाब पर कोर्ट ने सवाल उठाया था कि आपको जाँच पूरी करने में कितना समय लगेगा? और आप आरोप पत्र कब पेश करने वाले हैं? इस पर पुलिस ने अदालत को बताया था कि वह तीन महीने में आरोप पत्र पेश कर देगी। लेकिन तीन महीने बीत जाने के बावजूद पुलिस आरोप पत्र पेश करने में असमर्थ रही तो अदालत ने एक बार फिर अपनी नाराजगी जतायी है। 

वैसे, भीमा कोरेगाँव हिंसा प्रकरण में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फरवरी, 2018 में कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे. एन. पटेल की अध्यक्षता में दो सदस्यीय जाँच आयोग भी बिठाया था लेकिन अभी तक उसकी रिपोर्ट भी नहीं आयी है। इस आयोग का कार्यकाल 8 नवम्बर, 2019 को ख़त्म हो गया था। प्रदेश में उस समय सरकार बनाने को लेकर संघर्ष चल रहा था और गृह विभाग ने इसका कार्यकाल 8 फरवरी, 2020 तक बढ़ा दिया था। पिछले दिनों 25 से 28 नवंबर के बीच आयोग ने मुंबई स्थित अपने कार्यालय में कुछ गवाहों के बयान भी दर्ज किये हैं। 

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प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार में शामिल दलों ने मनोहर भिड़े की भूमिका को लेकर सवाल उठाने शुरू किये हैं, उससे इस मामले के नया मोड़ लेने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं। 

Maharashtra: Will Thackeray government screw up Sambhaji clash now? - Satya Hindi
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मनोहर भिड़े उर्फ़ संभाजी गुरुजी।

मनोहर भिड़े महाराष्ट्र में संभाजी गुरुजी के नाम से जाने जाते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी सार्वजनिक रूप से तारीफ़ की है। भिड़े को हिंदुत्ववादी विचारधारा का प्रखर नेता माना जाता है। पिछले दिनों जब महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर बीजेपी-शिवसेना में टकराव बढ़ा था, तब भी भिड़े ने दोनों दलों में मेल कराने का प्रयास किया था और वह शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलने उनके आवास मातोश्री गए थे। लेकिन ठाकरे ने उनसे मुलाक़ात नहीं की थी। भिड़े पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का सन्देश लेकर मातोश्री पर गए थे। 

अब जबकि महाराष्ट्र में विगत दो-तीन सालों में हुए आन्दोलनों में दर्ज हुए मामलों की समीक्षा की जा रही है और राजनीतिक द्वेष के तहत कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ दर्ज हुए मामलों को हटाने के आदेश दिए जा रहे हैं, ऐसे में भीमा कोरेगाँव का मामला भी फिर से गरम हो गया है। नई सरकार में कांग्रेस के कोटे से मंत्री बने नितिन राउत जो कि विदर्भ क्षेत्र से आते हैं और दलित नेता हैं, उन्होंने भी मुख्यमंत्री से अपील की है कि वह सामाजिक कार्यकर्ताओं पर दर्ज मामले वापस लें तथा मनोहर भिड़े की भूमिका की जाँच कराएं। कांग्रेस सांसद हुसैन दलवई ने भी भिड़े के ख़िलाफ़ जाँच कराये जाने की माँग की है। उल्लेखनीय है कि भीमा कोरेगाँव प्रकरण से ही ‘अर्बन नक्सल’ का मुद्दा उठा था और देश भर के टेलीविजन चैनलों पर कई दिनों तक इस पर चर्चा हुई थी। 

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संजय राय

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