loader
फ़ोटो साभर: ट्विटर/राहुल गांधी

अजित सिंह: विपक्ष का एक चमकदार चेहरा जो संभावना बनने से पहले धुंधला हो गया

पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाकर हरित प्रदेश बनाने का उनका मुद्दा था जिसे वह अक्सर गरम करते रहते थे। इसे लेकर मेरे साथ उनकी अक्सर बहस होती थी। मैं कहता था उन्हें छोटे राज्य के चक्कर में न पड़कर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह पानी चाहिए। लेकिन वह कहते थे कि चौधरी चरण सिंह भी गंगा प्रदेश बनाने की बात करते थे...
विनोद अग्निहोत्री

क़रीब एक महीने पहले ही चौधरी अजित सिंह से फोन पर बात हुई थी और तय हुआ था कि जल्दी ही हम लोग मिलकर दोपहर का भोजन साथ करेंगे और तमाम मुद्दों पर बातचीत करेंगे। इस बातचीत में मैंने उनसे कहा कि वो अपना ख्याल रखें और अभी कुछ दिन मिलना जुलना बंद रखें। अपनी आदत के मुताबिक़ जोर से हँसते हुए अजित सिंह ने कहा कि भाई मैं अब उम्र के 83वें साल में हूँ इसलिए सावधानी तो बरत रहा हूँ लेकिन जितने दिन भी जीना है किसानों की आवाज़ तो आप जैसे दोस्तों से मिलकर उठाता रहूँगा।

इस बातचीत के कुछ ही दिनों बाद ख़बर आई कि अजित सिंह कोरोना से संक्रमित हो गए हैं और अस्पताल में भर्ती हैं। मैं और मेरे जैसे उनके तमाम मित्र और शुभचिंतक उनके जल्दी स्वस्थ होने की दुआ कर रहे थे। लेकिन अजित सिंह सबको छोड़कर इस दुनिया से तब चले गए जब उनके जैसे नेता की किसानों को बहुत ज़रूरत थी।

चौधरी अजित सिंह से मेरा परिचय और रिश्ता तब से है जब 1986 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद वह राजनीति में सक्रिय हो गए थे। संयोग से उन दिनों मैं दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक के पश्चिमी उत्तर प्रदेश संवाददाता के रूप में मेरठ में तैनात था।

ताज़ा ख़बरें

अजित सिंह जब राजनीति में आए थे तो उनके पास अपने पिता की बहुत बड़ी विरासत थी। चौधरी चरण सिंह सिर्फ़ पूर्व प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि उत्तर भारत के किसानों के एकछत्र नेता थे। किसान जातियाँ आज भी उन्हें अपना मसीहा मानती हैं। राजीव गांधी प्रचंड बहुमत से देश के प्रधानमंत्री बने थे और उनकी मिस्टर क्लीन और प्रिंस चार्मिंग वाली छवि के मुक़ाबले विपक्ष के पास कोई चेहरा नहीं था। इस दौर में जब अजित सिंह पिता की विरासत संभालने आए तो विपक्ष के तत्कालीन नेताओं के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा युवा, शिक्षित और साफ़-सुथरी छवि वाले थे। वह अमेरिका में पढ़कर और रह कर भारत आए थे। एक वैश्विक नज़रिए के साथ उन्होंने उस देसी राजनीति की कमान संभाली जो ठेठ भारतीय थी।

अजित सिंह में राष्ट्रीय स्तर पर राजीव गांधी के मुक़ाबले विपक्ष का चेहरा बनने की सारी संभावनाएँ थीं। अगर राजीव के पास नेहरू इंदिरा की विरासत थी तो अजित के पास भी चरण सिंह की किसान विरासत थी। लेकिन अजित सिंह को कांग्रेस से पहले अपनी धारा के महारथियों से ही जूझना पड़ा। उन्हें किसान विरासत के लिए देवीलाल, कर्पूरी ठाकुर और मुलायम सिंह यादव जैसे खांटी देसी नेताओं से लड़ना पड़ा। इस लड़ाई ने न सिर्फ़ अजित सिंह के प्रभाव क्षेत्र को पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित किया बल्कि चरण सिंह की किसान विरासत को भी कई टुकड़ों  में विभाजित कर दिया। देवीलाल ने हरियाणा, राजस्थान तो मुलायम सिंह यादव ने पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश, कर्पूरी ठाकुर और आगे चलकर लालू प्रसाद यादव ने बिहार में चरण सिंह की विरासत पर अधिकार कर लिया।

अजित सिंह बुनियादी तौर पर बेहद शरीफ और भले इंसान थे। सियासत की धूर्तता और राजनीति के शकुनियों ने विपक्ष के इस भले और चमकदार चेहरे को चमकने से पहले ही धूल धूसरित करके एक संभावना को सत्ता की भूलभुलैया में भटका दिया।

अजित सिंह से पहली भूल हुई या कराई गई कि उन्हें 1989 में विधानसभा चुनावों के बाद मुलायम सिंह यादव के दावे के ख़िलाफ़ विधायक दल का चुनाव लड़ने लखनऊ भेज दिया गया।
वह तब विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल के केंद्रीय नेतृत्व में थे। तब तक मुलायम सिंह यादव उन्हें चरण सिंह का बेटा मानते हुए उनका दबदबा स्वीकार करते थे। लेकिन देवीलाल, मुलायम और अजित सिंह अगर एकजुट हो गए तो कांग्रेस छोड़कर तीसरी धारा के नेता बने विश्वनाथ प्रताप सिंह की सत्ता को मज़बूत चुनौती मिल सकती थी इसलिए राजा के दरबारी रणनीतिकारों ने एक तरफ़ अजित सिंह को यह कहकर चढ़ाया कि चौधरी साहब (चरण सिंह) भी पहले सूबे के मुख्यमंत्री बने थे उसके बाद वह देश के प्रधानमंत्री बने, इसलिए अजित सिंह को भी पहले उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहिए जिससे देश के सबसे बड़े प्रदेश में उनका जनाधार मज़बूत रहेगा।
chaudhary ajit singh will be renowned as farmer leader - Satya Hindi

राजनीति की कुटिलता से अनजान अजित सिंह उनकी बातों में आ गए और मुख्यमंत्री पद का दावा करने लखनऊ पहुँच गए। इधर राजनीति के इन्हीं शकुनियों ने मुलायम सिंह यादव की पीठ पर हाथ रख दिया और अजित सिंह को लखनऊ से मुलायम सिंह यादव के मुक़ाबले हार कर लौटना पड़ा। उस दिन से चरण सिंह के इन दोनों वारिसों के बीच ऐसी दरार पड़ी जो सिर्फ़ अजित सिंह और मुलायम सिंह यादव तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उसने चौधरी चरण सिंह का जनाधार रही दो शक्तिशाली किसान जातियों जाट और यादव को भी विभाजित कर दिया।

देवीलाल और चंद्रशेखर के विद्रोह के जवाब में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल के ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया तो अजित सिंह अपने जनाधार की भावना नहीं भांप सके और जनता दल में ही बने रहे, जिसका नुक़सान उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार की नाराज़गी के रूप में उठाना पड़ा। नतीजा 1991 के विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहली बार बीजेपी को जाटों में पैठ बनाने का मौक़ा मिल गया। 1993 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन के सामने जनता दल की बुरी शिकस्त ने जहाँ मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय और तीसरी धारा की राजनीति का सबसे बड़ा नेता बना दिया, वहीं जनता दल की रोज रोज की किचकिच से परेशान अजित सिंह ने उससे अपना नाता तोड़कर फिर लोकदल की राजनीति शुरू कर दी।

श्रद्धांजलि से और ख़बरें
अजित अपनी खोई ज़मीन तलाश ही रहे थे कि परिस्थितियों ने फिर उन्हें कांग्रेस में शामिल होकर केंद्रीय मंत्री बनने की तरफ़ मोड़ दिया। कांग्रेस में अजित सिंह के जाने से उनके जनाधार में और बिखराव हो गया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के ज़रिए अपना प्रभाव विस्तार शुरू कर दिया। लेकिन कांग्रेस में भी अजित ज़्यादा दिन नहीं रह सके और 1996 के लोकसभा चुनावों से पहले वह संयुक्त मोर्चा का हिस्सा बन गए। 1999 के चुनाव में उन्होंने सोमपाल को पराजित किया और बाद में उन्होंने बीजेपी से समझौता किया और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री बने। लेकिन 2002 में जब तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद में बड़ी रैली की तो उसे समर्थन देने वह हैदराबाद चले गए और तब तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने जब उनसे फ़ोन पर इस पर एतराज़ जताया तो अजित सिंह ने वहीं से अपना इस्तीफ़ा भेज दिया।
अजित सिंह हमेशा छोटे राज्यों के पक्षधर थे और वह कहते थे कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का विकास तभी होगा जब इसे कम से कम तीन या चार हिस्सों में बाँटा जाएगा।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाकर हरित प्रदेश बनाने का उनका मुद्दा था जिसे वह अक्सर गरम करते रहते थे। इसे लेकर मेरे साथ उनकी अक्सर बहस होती थी। मैं कहता था उन्हें छोटे राज्य के चक्कर में न पड़कर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह पानी चाहिए। लेकिन वह कहते थे कि चौधरी चरण सिंह भी गंगा प्रदेश बनाने की बात करते थे और जब तक राज्यों का आकार छोटा नहीं होगा उनका सुचारु प्रशासन संभव नहीं है।

2003 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी के गठबंधन से मायावती की सरकार चल रही थी तब अजित सिंह ने अपने 14 विधायकों का समर्थन मायावती सरकार से वापस लेकर उसके गिरने का रास्ता तैयार किया था। मुलायम और अजित के बीच तब पुल बनने का काम त्रिलोक त्यागी ने किया और उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ इस बात की गारंटी ली कि अजित सिंह उनका साथ देंगे और अजित सिंह ने मुलायम सिंह यादव को समर्थन देकर उनकी सरकार बनवाई। इसके लिए कांग्रेस को तैयार करने में भी अजित सिंह की बड़ी भूमिका थी और वह खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने गए थे। तब मुलायम सरकार में अजित सिंह के सात विधायक मंत्री बने थे। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच तल्खी ख़त्म हुई और चरण सिंह के दोनों वारिस एक मंच पर आए।

chaudhary ajit singh will be renowned as farmer leader - Satya Hindi

2008 में जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर वाममोर्चे की समर्थन वापसी के बाद यूपीए सरकार संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी तब अजित सिंह ने उसके ख़िलाफ़ वोट दिया था। लेकिन बाद में यूपीए दो में वह सरकार में शामिल हुए और नागरिक उड्डयम मंत्री बने। लेकिन 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दशकों पुराना चरण सिंह के जमाने का जाट मुसलिम राजनीतिक गठबंधन तार तार कर दिया और इसका सीधा नुक़सान अजित सिंह और राष्ट्रीय लोकदल को हुआ। इस वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों ही हार गए।

ख़ास ख़बरें

पिछले साल जब नवंबर में किसान आंदोलन शुरू हुआ तो अजित सिंह का किसान मन फिर आंदोलित हो गया। उन्होंने जयंत को किसानों के पास भेजा। 26 जनवरी की लालक़िले की घटना के बाद जब किसानों का मनोबल बुरी तरह टूट चुका था और लग रहा था किसान आंदोलन ख़त्म हो जाएगा तब जब गाजीपुर बॉर्डर पर भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत रो पड़े तब अजित सिंह ने उन्हें फोन करके न सिर्फ़ ढाढस बंधाया बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रालोद कार्यकर्ताओं को किसानों के साथ एकजुट होने को कहा और जयंत चौधरी को अगले ही दिन किसानों के बीच भेजा। 

फोन पर अजित सिंह ने राकेश टिकैत से कहा कि डटे रहना, पीछे मत हटना। अगर पीछे हट गए पूरी किसान बिरादरी ख़त्म हो जाएगी जो फिर कभी खड़ी नहीं हो सकेगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ। अजित के इस भरोसे के बाद ही राकेश टिकैत की हिम्मत लौटी और किसान आंदोलन वापस खड़ा हो गया। इस तरह दुनिया से जाने से पहले अजित सिंह ने अपने पिता की किसान विरासत को फिर एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। अब यह ज़िम्मेदारी उनके बेटे जयंत चौधरी की है कि वह अपने दादा और पिता की विरासत को कैसे आगे बढ़ाते हैं।

(साभार: अमर उजाला)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विनोद अग्निहोत्री

अपनी राय बतायें

श्रद्धांजलि से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें