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ट्रंप या बाइडन; हमें किससे ज़्यादा नफ़ा या नुक़सान?

बाइडन के रवैए को हम भारत ही नहीं, यूरोपीय राष्ट्रों, चीन, रुस, ईरान और मेक्सिको जैसे राष्ट्रों के प्रति भी काफ़ी संयत पाएँगे। इसका अंदाज़ हमें ट्रंप और बाइडन के चुनावी भाषणों की भाषा से ही लग जाता है। यह ठीक है कि बाइडन और कमला ने मानव अधिकारों, कश्मीर और नागरिकता संशोधन क़ानून जैसे मुद्दों पर भारत का विरोध किया था लेकिन उसका मूल कारण यह रहा हो सकता है कि ट्रंप ने इन्हीं मुद्दों पर हमारा समर्थन किया था।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अभी तक घोषणा नहीं हुई है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा? लेकिन मान लें कि कुछ अजूबा हो गया और 2016 की तरह इस बार भी डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बन गए तो भारत को कोई ख़ास चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। ट्रंप और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई के बीच ऐसी व्यक्तिगत जुगलबंदी बैठ गई है कि ट्रंप के उखाड़-पछाड़ स्वभाव के बावजूद भारत को कोई ख़ास हानि होनेवाली नहीं है। इसका अर्थ यह नहीं कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का संचालन नेताओं के व्यक्तिगत समीकरण पर होता है। उसका कुछ योगदान ज़रूर रहता है लेकिन राष्ट्रहित ही संबंधों पर मूलाधार होता है।

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आज अमेरिका और भारत के आपसी संबंधों में कोई ख़ास तनाव नहीं हैं। व्यापार और वीज़ा के सवाल तात्कालिक हैं। वे बातचीत से हल हो सकते हें। लेकिन चीन, अफ़ग़ानिस्तान, सामरिक सहकार, शस्त्र-ख़रीद आदि मामलों में दोनों देश लगभग एक ही पटरी पर चल रहे हैं। लेकिन जोसेफ बाइडन के जीतने की संभावनाएँ ज़्यादा हैं। 

वे जीते तो भारत को ज़्यादा खुशी होगी, क्योंकि एक तो कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बन जाएँगी और लगभग 75-80 प्रतिशत प्रवासी भारतीयों ने उनको अपना समर्थन दिया है। भारत के 40 लाख लोग अमेरिका के सबसे अधिक समृद्ध, सुशिक्षित और सुसभ्य लोग हैं। क्या डेमोक्रेटिक सरकार उनका सम्मान नहीं करेगी? 

देखिए वीडियो चर्चा, क्या बाइडन का जीतना तय है?

मैं तो सोचता हूँ कि पहली बार ऐसा होगा कि अमेरिकी सरकार में कुछ मंत्री और बड़े अफ़सर बनने का मौक़ा भारतीय मूल के लेागों को मिलेगा। बाइडन-प्रशासन अपने ओबामा-प्रशासन की भारतीय नीति को तो लागू करेगा ही, वह पेरिस के जलवायु-समझौते और ईरान के परमाणु समझौते को भी पुनर्जीवित कर सकता है। इनका लाभ भारत को मिलेगा ही। 

इसके अलावा ध्यान देने लायक बात यह है कि ओबामा-प्रशासन में बाइडन उप-राष्ट्रपति की हैसियत में भारत के प्रति सदैव जागरूक रहे हैं। वे कई दशकों से अमेरिकी राजनीति में सक्रिय रहे हैं जबकि ट्रंप तो राजनीति के हिसाब से नौसिखिए राष्ट्रपति बने हैं।
बाइडन के रवैए को हम भारत ही नहीं, यूरोपीय राष्ट्रों, चीन, रुस, ईरान और मेक्सिको जैसे राष्ट्रों के प्रति भी काफ़ी संयत पाएँगे। इसका अंदाज़ हमें ट्रंप और बाइडन के चुनावी भाषणों की भाषा से ही लग जाता है। यह ठीक है कि बाइडन और कमला ने मानव अधिकारों, कश्मीर और नागरिकता संशोधन क़ानून जैसे मुद्दों पर भारत का विरोध किया था लेकिन उसका मूल कारण यह रहा हो सकता है कि ट्रंप ने इन्हीं मुद्दों पर हमारा समर्थन किया था। सत्ता में आने पर डेमोक्रेट लोगों की राय पहले के मुक़ाबले अब काफ़ी संतुलित हो जाएगी। दूसरे शब्दों में इनके जीतने से हमें ज़्यादा फ़ायदे की उम्मीद है लेकिन इनमें से कोई भी जीते हमें कोई हानि नहीं है।
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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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