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कोरोना: जाँच के चक्कर में हो रही मौत को रोका जा सकता है

कोरोना के इलाज के लिए इस समय कई ख़तरनाक सुझाव दिए जा रहे हैं। कुछ लोग प्रचारित कर रहे हैं कि पीपल या बड़ के पेड़ के नीचे बैठने से पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाएगी। बिहार में भागलपुर मेडिकल कॉलेज के प्रोफ़ेसर डॉ. हेम शंकर शर्मा कहते हैं कि इस तरह के प्रयोग ख़तरनाक हो सकते हैं।
शैलेश

गाँवों में कोरोना फैलने के बाद सबसे बड़ी समस्या ये सामने आ रही है कि कैसे पता लगाया जाए कि किसी शख़्स को कोरोना है या नहीं। आरटी -पीसीआर या एंटीजन जाँच की सुविधा गाँवों में नहीं है। ये समस्या बड़े शहरों में भी है क्योंकि जाँच की लाइन इतनी लंबी है कि लोगों को दो-तीन दिनों तक सैम्पल लेने और जाँच रिपोर्ट आने का इंतज़ार करना पड़ रहा है। तब तक बहुत देर हो जाती है और समय पर इलाज शुरू नहीं होने के कारण कई लोगों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ जाती है।

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डॉक्टरों के पास इस समस्या का इलाज क्या है। बिहार में भागलपुर मेडिकल कॉलेज के प्रोफ़ेसर और मेडिसिन विभाग के हेड डॉ. हेम शंकर शर्मा का कहना है कि कोरोना की जाँच तुरंत संभव नहीं हो और रोगी में कोरोना के लक्षण दिखाई दे रहे हों तो उसे कोरोना मान कर इलाज तुरंत शुरू कर दिया जाना चाहिए। इस मामले में देर होने से जान जोखिम में पड़ सकती है। 

कब शुरू करें इलाज 

अगर बुखार पाँचवें-छठे दिन लगातार बरक़रार रहे, रोगी को साँस लेने में तकलीफ़ हो, खाँसी या दस्त हो रहे हों तो कोरोना मानकर इलाज शुरू करने में कोई हर्ज नहीं है। डॉ. शर्मा का कहना है कि ये लक्षण कई और बीमारियों में पाए जाते हैं। इसलिए जाँच करके इलाज शुरू करना बेहतर होता है। लेकिन इस समय ज़्यादातर रोगी कोरोना के ही आ रहे हैं। कोरोना दो-तीन दिनों में ही ख़तरनाक हो सकता है, इसलिए जाँच का इंतज़ार नहीं किया जा सकता है। 

क्लीनिकल या सिर्फ़ लक्षण के आधार पर इलाज के लिए डॉक्टर प्रशिक्षित होते हैं। महामारी काल में डॉक्टर से आमने-सामने मिलना भी जरूरी नहीं है। फ़ोन या वॉट्सएप पर लक्षण बताकर भी सलाह ली जा सकती है।

डॉ. शर्मा ने बताया कि वो ख़ुद दूसरे राज्यों के रोगियों को सलाह देकर इलाज कर रहे हैं। यूएई के एक मशहूर अस्पताल में पालमोनोलोजिस्ट डॉक्टर विक्रम सरभई ने बताया कि वो भारत के अनेक रोगियों को वीडियो कॉलिंग के ज़रिए कोरोना के इलाज की सलाह दे चुके हैं। 

ब्लैक फ़ंगस को लेकर देखिए बातचीत- 

लक्षण देखते ही इलाज शुरू करें

डॉ. सरभई के अनुसार लक्षण देखते ही इलाज शुरू करना जरूरी है। देर होने पर साधारण तौर पर बीमार कई रोगी मोड्रेट या गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं। उन्हें अस्पताल में भर्ती करने, ऑक्सीजन देने या आईसीयू में भर्ती करने की नौबत आ जाती है। कुछ रोगियों को वेंटिलेटर पर जाना पड़ता है, जहाँ जीवित बचने की दर बहुत कम है। 

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बिना जाँच के स्टेरॉइड? 

अब पूरी दुनिया ने मान लिया है कि कोरोना का सबसे सटीक इलाज स्टेरॉइड ही है। डॉ. शर्मा का कहना है कि बेहतर यही है कि एचआरसीटी जाँच के बाद स्टेरॉइड शुरू किया जाए। इस जाँच से ये पता लग जाता है कि फेफड़ा या लंग्स का कितना हिस्सा बीमारी से प्रभावित हुआ है। इससे स्टेरॉइड का डोज़ तय करना आसान हो जाता है। लेकिन अगर एचआरसीटी जाँच संभव नहीं हो या फिर रिपोर्ट आने में देर लग रही हो तब लक्षण के मुताबिक़ स्टेरॉइड का छोटा डोज़ शुरू किया जाना चाहिए। इससे रोगी की स्थिति और ज़्यादा ख़राब नहीं होगी। 

लेकिन डॉ. शर्मा का ये भी कहना है कि डॉक्टर की सलाह के बिना स्टेरॉइड कभी भी शुरू नहीं करना चाहिए। इसके कई ख़तरनाक असर भी हैं। जैसे कि इससे चीनी या शुगर बढ़ने लगता है। पहले से किसी अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है। बुखार शुरू होने के पहले पाँच-छह दिनों तक देने पर भी इसका नुक़सान हो सकता है क्योंकि ये हमारे शरीर की बीमारी प्रतिरोध क्षमता को भी कमज़ोर करता है। 

डॉ. सरभई बताते हैं कि अभी कोरोना की तीन ही दवाएँ हैं। स्टेरॉइड, ख़ून को पतला रखने के लिए एंटी कोगुलेंट और ऑक्सीजन। स्टेरॉइड रोगी की इच्छा से ली जाने वाली दवा नहीं है। डॉक्टर ही तय कर सकता है कि डोज़ क्या हो और किस समय इसे शुरू किया जाए।

पीपल के नीचे नहीं मिलती ऑक्सीजन 

कोरोना के इलाज के लिए इस समय कई ख़तरनाक सुझाव दिए जा रहे हैं। कुछ लोग प्रचारित कर रहे हैं कि पीपल या बड़ के पेड़ के नीचे बैठने से पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाएगी। डॉ. शर्मा कहते हैं कि इस तरह के प्रयोग ख़तरनाक हो सकते हैं। हवा में सिर्फ़ 27 प्रतिशत ऑक्सीजन होती है, संभव है कि बड़ या पीपल के नीचे 29/30 प्रतिशत ऑक्सीजन मिल जाए जबकि कोरोना रोगियों को जो ऑक्सीजन दी जाती है वो 90 से 93 प्रतिशत शुद्ध होती है। इतनी शुद्ध ऑक्सीजन किसी भी पेड़ के नीचे नहीं मिल सकती है। 

इसलिए ऑक्सीजन देने की नौबत आ ही जाए तो सिर्फ़ सिलेंडर या कंसंट्रेटर से ही दी जा सकती है। लेकिन ये दोनों उपलब्ध नहीं हो तो सिर्फ़ एक उपाय है जिससे ऑक्सीजन लेवल बढ़ाया जा सकता है। प्रोन पोज़िशन यानी पेट के बल लेटना। 

पेट के बल लेटने पर पाँच-छह प्रतिशत ऑक्सीजन आसानी से बढ़ाई जा सकती है। लेकिन ऑक्सीजन लेवल अगर 91/92 से कम हो रहा हो तो तुरंत अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए। डॉ. सरभई का कहना है कि ख़ून को पतला करने वाली एंटी कोगुलेंट दवा भी डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं ली जा सकती है।

समय बहुत अहम है 

ज़्यादातर डॉक्टरों का कहना है कि बहुत से लोगों की मौत सिर्फ़ इसलिए हो रही है कि वो समय पर इलाज शुरू नहीं कर पा रहे हैं। रोगियों को छठे-सातवें दिन का महत्व समझना होगा। यही समय है जब फेफड़े पर असर शुरू होता है। यानी फेफड़े और ख़ून की नलियों में थक्का ज़मना शुरू होता है। इसी समय ऑक्सीजन का लेवल घटना शुरू होता है। इसका कारण ये है कि फेफड़ा ख़ून में ऑक्सीजन घोलने में अक्षम होने लगता है। 

छठे-सातवें दिन अगर लक्षण के आधार पर स्टेरॉइड से इलाज शुरू कर दिया जाए तो न अस्पताल जाने की ज़रूरत होगी और न आईसीयू में भर्ती होने की नौबत आयेगी। शायद ऑक्सीजन की भी जरूरत नहीं पड़े और रोगी घर पर ही ठीक हो जाए। 

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