केंद्र सरकार महामारी से मौत पर मुआवज़ा देने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा है कि उसके पास इतनी रकम नहीं है। लेकिन, क्या यह सच है? क्या सचमुच कोविड महामारी से हुई मौत का मुआवजा बांटने से देश का आपदा कोष खाली हो जाएगा? क्या देश के पास रकम नहीं है? क्या देश मुआवजे के लिए रकम जुटा नहीं सकता? इन सवालों के उत्तर दिए जा सकते हैं लेकिन सबसे पहले हिसाब लगाते हैं कि मुआवजे के लिए कितनी रकम चाहिए जो सरकार के पास नहीं है।
160 अरब की ज़रूरत
देश में अब तक 3.89 लाख लोगों की मौत कोविड महामारी से हो चुकी है। अगर इस आंकड़े को 4 लाख मानकर हरेक के परिजनों को 4-4 लाख मुआवजे का हिसाब लगाएं तो यह रकम होती है 160 अरब रुपये या 0.16 ट्रिलियन रुपये। यही वो रकम है जो सरकार के पास नहीं है। सरकार का कहना है कि अगर उसने यह रकम खर्च कर दी तो उसका आपदा कोष खाली हो जाएगा।
बेमानी है तर्क
फिर किस मुंह से केंद्र सरकार कह रही है कि उसका आपदा कोष खाली हो जाएगा? सच यह है कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फंड यानी पीएमएनआरएफ में मौजूद फंड का इस्तेमाल भी नहीं कर पाती है। पीएमएनआरएफ की वेबसाइट पर देखा जा सकता है कि 2014-15 से 2018-19 के दौरान 3413.92 करोड़ रुपये इस राहत कोष में आए।
मगर, सरकार इस रकम को खर्च नहीं कर पायी। केवल 1888.49 करोड़ रुपये खर्च हुए। 1525.43 करोड़ रुपये बचे रह गये।
अगर सिर्फ इसी बची हुई रकम का इस्तेमाल मोदी सरकार कर लेती है तो मुआवजे की जरूरत वाली रकम तकरीबन पूरी हो जाती है। सरकार जो रकम खर्च नहीं कर पा रही हो, उसका सदुपयोग अगर मुआवजे में होता है तो इसमें संकोच क्यों?
3 प्रतिशत हिस्सा ही काफी
2020-21 में केंद्र सरकार को जितनी आमदनी पर्सनल इनकम टैक्स से नहीं नहीं हुई, जितना टैक्स कॉरपोरेट घरानों ने नहीं दिया उससे कहीं ज्यादा पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी और वैट से आया। पेट्रोल-डीजल से 5.25 लाख करोड़ की कमाई विगत वित्तीय वर्ष में हुई। यह छोटी रकम नहीं है। इस रकम से 32 से ज्यादा बार सरकार कोविड की महामारी में मारे गये लोगों के परिजनों में मुआवजे की रकम बांट सकती है।
दूसरे शब्दों में कहें तो पेट्रोल-डीजल से की गयी कमाई का 3 प्रतिशत हिस्सा ही चाहिए। क्या यह रकम सरकार नहीं जुटा सकती? यह प्राथमिकता की बात है।
महामारी से हुई मौत को न रोक पाने का गम अगर सरकार को हो तो वह पीड़ित परिवार के लिए दो कदम आगे बढ़कर सोचती। मगर, यहां तो जिम्मेदारी को ही नकारा जा रहा है।
सेंट्रल विस्टा को रोक देते
सेंट्रल विस्टा प्लान पर अनुमानित लागत है 20 हजार करोड़ यानी 200 अरब रुपये यानी 0.2 ट्रिलियन रुपये। बारंबार यह सवाल उठाए गये हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी महामारी से जूझ रहे देश की प्राथमिकता लोगों की जान बचाने की होनी चाहिए। महामारी के समय सेंट्रल विस्टा प्लान पर काम आवश्यक कार्य नहीं हो सकता।
सेंट्रल विस्टा प्लान पर सरकार जितनी रकम खर्च कर रही है उससे न केवल देश में कोविड से हुई मौत के सारे मामलों में मुआवजा दिया जा सकता है बल्कि मुआवजा देने के बाद भी 40 अरब रुपये बचाये जा सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के बजाए केंद्र सरकार कह रही है कि उसके पास रकम नहीं है मुआवजा देने के लिए। यह आश्चर्यजनक है।
बैड लोन से 7 बार मुआवजा संभव
बैड लोन माफ करना जरूरी है या महामारी में मारे गये लोगों के परिजनो को मुआवजा देना जरूरी है? लोकसभा में 8 मार्च को वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने जानकारी दी थी कि 2020-21 की पहली तीन तिमाही में 1.15 लाख करोड़ रुपये का बैड लोन बट्टा खाता में डाल दिया गया।
यह रकम इतनी बड़ी है कि इस रकम से देश में कोविड से हुई मौत के बाद परिजनो को 7 बार मुआवजा दिया जा सकता था। फिर भी कुछ रकम बची रह जा सकती थी।
37 बार मुआवजा…
2019-2020 में देश की जीडीपी 203.51 लाख करोड़ की थी। 2020-21 में 197.46 लाख करोड़ हो गयी। 6.05 लाख करोड़ यानी रुपये की एक साल में गिरावट यानी 3 प्रतिशत की गिरावट। जीडीपी में गिरावट की इस रकम से 4 लाख लोगों को 4-4 लाख का मुआवजा 37 बार दिया जा सकता है। तब भी रकम बच जाएगी। जो रकम हमारी अर्थव्यवस्था एक साल में गंवा देती है उसका तीन प्रतिशत से भी कम है मुआवजे की रकम।
अगर बल्लभ भाई पटेल की एक मूर्ति बनाने में 30 अरब रुपये का खर्च आया था तो ऐसी पांच मूर्तियां बनाने में जितना खर्च होता है उससे थोड़ा ज्यादा रकम ही मुआवजे में लगनी थी। क्या देश में 4 लाख लोगों की जान पांच मूर्तियां बनाने की कीमत से भी सस्ती है?
... 6 बार बंट सकता था मुआवजा
गौतम अडानी ने 4 दिन में 13 अरब डॉलर गंवा दिए। रुपये में यह रकम होती है (1 डॉलर = 74.14 रुपये) 963.82 अरब या 0.96382 ट्रिलियन। यह वो रकम है जिससे एक या दो बार नहीं 6 बार से अधिक 4-4 लाख की रकम का मुआवजा महामारी से मारे गये लोगों के परिजनों को दिया जा सकता है।
कहने का अर्थ यह है कि देश में महामारी से जितने लोगों की जानें गयी हैं उनके लिए मुआवजे की रकम का 6 गुणा से ज्यादा गौतम अडानी चार दिन में गंवा देते हैं। मगर, देश के पास मुआवजे के लिए रकम नहीं है! यह कैसा कुतर्क है?
हाई कोर्ट की टिप्पणी
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पास जो तर्क रखे हैं वह सुने जाने योग्य नहीं हैं। ऊपर जितने उदाहरण रखे गये हैं उन्हें देखने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट की वह टिप्पणी याद आती है कि भीख मांगो, उधार लो, चोरी करो पर ऑक्सीजन दो। ऐसा तब कहा गया था जब ऑक्सीजन की कमी से लोग दम तोड़ रहे थे और सरकार बहाने बाजी कर रही थी। एक बार फिर मुआवजे पर बहानेबाजी की जा रही है।
एक बार फिर देश सुप्रीम कोर्ट से यह सुनने की उम्मीद रखता है कि भीख मांगो, उधार लो, चोरी करो पर कोविड से मौत पर पीड़ित परिजनों को मुआवजा दो।
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