loader

किसकी ‘कृपा’ से सांसद बने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई?

अयोध्या विवाद का फ़ैसला राम मंदिर के हक़ में सुनाने वाली संविधान पीठ की अध्यक्षता करने वाले देश के पूर्व चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई को मोदी सरकार ने राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया है। मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर पर सियासी बवाल मच गया है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष व सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे लेकर सवाल उठाए हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रह चुके बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने कहा है कि अगर गोगोई ने इस ऑफ़र को नहीं ठुकराया तो उनकी छवि को इतना नुक़सान होगा जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी।

ताज़ा ख़बरें
वैसे, रंजन गोगोई कोई पहले रिटायर्ड सीजेआई नहीं हैं जिन्हें राज्यसभा के लिये मनोनीत किया गया हो। उनसे पहले पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद हिदायतुल्लाह और रंगनाथ मिश्रा भी सीजेआई के पद से रिटायर होने के बाद राज्यसभा के लिए मनोनीत हो चुके हैं। तब भी इस तरह के सवाल उठे थे। रंगनाथ मिश्रा पर आरोप था कि उनकी अध्यक्षता में बने जांच आयोग ने सिख विरोधी हिंसा में कांग्रेस को क्लीन चिट दी थी। गोगोई के राज्यसभा जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं तो इसके पीछे भी राजनीति ही है। 
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने गोगोई को राज्यसभा भेजे जाने को लेकर कहा है, ‘मोदी का संदेश एकदम साफ़ है। या तो राज्यसभा, राज्यपाल या फिर चेयरमैन, वर्ना तबादले झेलो और इस्तीफ़ा देकर घर जाओ।’

वैसे, अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद से ही कयास लग रहे थे कि गोगोई की अगली मंजिल राज्यसभा हो सकती है। सोमवार को ये कयास सही साबित हो गए। सही होते भी क्यों नहीं? रामलला की कृपा जो होनी थी। और हो भी गई। उनसे पहले रामलला की कृपा उन सब पर हुई है जिन्होंने अयोध्या में बाबरी मसजिद का वजूद ख़त्म करने और विवादित ज़मीन पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ करने में अहम भूमिका निभाई है। इसमें मसजिद के भीतर मूर्ति रखवाने वाले फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन डीएम से लेकर मसजिद का ताला खुलवाने वाले जज और मसजिद गिराते वक़्त फ़ैज़ाबाद के एसएसपी रहे डी.बी. राय तक रामलला की कृपा से संसद तक पहुंचे हैं।

मूर्तियां हटाने से इनकार 

सबसे पहले बात करते हैं, 1949 में फ़ैज़ाबाद के डीएम रहे के.के. नायर की। केरल के अलेप्पी के रहने वाले के.के. नायर 1 जून, 1949 को फ़ैज़ाबाद के डीएम नियुक्त हुए थे। उन्हीं के डीएम रहते हुए बाबरी मसजिद में रामलला का मूर्तियां रखी गईं थीं। कहा जाता है कि उन्होंने ही ये मूर्तियां रखवाई थीं। उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दो बार मूर्तियां हटाने के आदेश दिए लेकिन अयोध्या के डीएम ने दोनों बार हिंदू भावनाएं भड़कने का डर दिखाकर मसजिद के अंदर रखी गईं मूर्तियां हटाने से साफ़ इनकार कर दिया।  

जब नेहरू ने दोबारा मूर्तियां हटाने को कहा तो डीएम नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले उन्हें हटा दिया जाए। देश में उस दौरान बने सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए केंद्र सरकार पीछे हट गई।

पत्नी, ड्राइवर भी जीते चुनाव

डीएम नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। चौथी लोकसभा के लिए वह उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। इस इलाक़े में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं। उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना।

बाबरी मसजिद का ताला खुलना

इस विवाद का दूसरा अहम पड़ाव था मसजिद का ताला खुलना। एक फरवरी, 1986 को मसजिद का ताला खोलने का आदेश देने वाले फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन ज़िला जज के.एम. पांडे संसद तो नहीं पहुंचे लेकिन बाद में हाईकोर्ट के जज ज़रूर बने। यह कहानी भी दिलचस्प है। वरिष्ठताक्रम को देखते हुए न्यायपालिका की ओर से उन्हें हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश हुई। लेकिन 1988 से लेकर जनवरी, 1991 तक उनका नाम लटका रहा। उन्हें प्रमोशन नहीं दिया गया। इस बारे में 13 सितबंर, 1990 को विश्व हिन्दू परिषद अधिवक्ता संघ के महासचिव हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर करके के.एम. पांडेय का प्रमोशन करने का आदेश देने की मांग की। 

मुलायम सिंह ने जताई थी आपत्ति 

याचिका में आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फ़ाइल पर एक नोट लिख कर पांडेय को हाई कोर्ट का जज बनाने पर आपत्ति की थी और उनकी सिफारिश करने से इनकार कर दिया था। याचिका में मुलायम सिंह के कथित नोट को शब्दश: कोट करने का दावा है और इसमें कहा गया था, 'पांडेय जी सुलझे हुए, ईमानदार एवं कर्मठ न्यायाधीश हैं, फिर भी 1986 में ताला खुलवाने का आदेश देकर उन्होंने सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा की थी, लिहाजा मै उनके नाम की संस्तुति नहीं करता।'

विचार से और ख़बरें

उस वक़्त वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री थे। याचिका लंबित थी कि तभी सरकार बदल गई। चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए। उस सरकार में सुब्रमण्यम स्वामी क़ानून मंत्री बने। स्वामी ने के.एम. पांडेय को इलाहाबाद हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त करने को मंजूरी दे दी। पांडेय 24 जनवरी, 1991 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने। एक महीने के अंदर उनका मध्य प्रदेश हाई कोर्ट तबादला कर दिया गया। वहां चार साल न्यायाधीश रहने के बाद वह 28 मार्च, 1994 को रिटायर हुए। इस तरह पांडे को भी बाबरी मसजिद का ताला खोलने का इनाम मिला।  

बाबरी मसजिद का गिरना

बाबरी मसजिद-रामजन्म भूमि विवाद का अगला पड़ाव 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मसजिद को बलपूर्वक गिराया जाना था। उस वक़्त डी.बी. राय फ़ैज़ाबाद के एसएसपी थे। उन पर अपनी ड्यूटी में लापरवाही बरतने का आरोप लगा था। उन्हें उसी दिन उनके पद से हटा दिया गया था। लेकिन बाद में रिटायरमेंट के बाद वह दो बार बीजेपी के टिकट पर सांसद रहे। 

बाबरी मसजिद गिराये जाने के बाद 1996 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राय को सुल्तानपुर से टिकट दिया और वह जीते भी। 1998 में भी वह जीते। संसद में बाबरी मसजिद गिराये जाने के क़िस्से और उसमें अपनी भूमिका को राय बड़े ही गर्व के साथ सुनाते थे।

बीजेपी नेताओं को बताया था मूर्तिभंजक 

यह अलग बात है कि बाद में राय का बीजेपी से मोहभंग हो गया था। उन्होंने 6 दिसंबर को बाबरी मसजिद तोड़े जाने की घटना पर किताब लिखी तो उसमें बीजेपी के बड़े नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए। 

2007 में अपनी किताब ‘अयोध्याः छह दिसंबर का सत्य’ के विमोचन के मौक़े पर राय ने कहा था, ‘बीजेपी और विहिप के नेता विदेशी आक्रांता महमूद गज़नवी और औरंगज़ेब से भी बड़े मूर्तिभंजक हैं। ये लोग मंदिर के नाम पर अरबों रुपये बैंक में जमा करके दुनिया का हर सुख भोग रहे हैं।’ 

राय ने आरोप लगाया था कि बीजेपी और विहिप के नेताओं ने आम जनता से सोने का राम दरबार अपने ही लोगों को भेंट करवाया और बाद में उसे तोड़कर सोने के बिस्कुट और गिन्नियां बनवाईं।

इस तरह बाबरी मसजिद-रामजन्म भूमि विवाद की शुरुआत से लेकर आख़िर तक जो भी अपने पद पर रहते हुए हिंदू पक्ष के साथ खड़ा रहा उसे किसी न किसी तरह का इनाम मिलता रहा। इस पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए ही रंजन गोगोई को राज्यसभा भेजे जाने के कयास लग रहे थे। राज्यसभा भेजे जाने को लेकर उठ रहे सवालों के बीच रंजन गोगोई ने कहा है कि वह शपथ लेने के बाद ही इस बारे में बात करेंगे कि उन्होंने इस पद को क्यों स्वीकार किया। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
यूसुफ़ अंसारी

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें