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कितना सही है अंतर-धार्मिक विवाह पर मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एतराज़?  

ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक बार फिर चर्चा में है। इस बार बोर्ड अंतर धार्मिक विवाह के ख़िलाफ़ मैदान में उतरा है। बोर्ड ने एक प्रेस नोट जारी करके मुसलमानों और ग़ैर-मुसलमानों के बीच होने वाली शादियों को ग़ैर-इस्लामी क़रार दिया है। साथ ही मुसलमानों को इस तरह की शादियों से बचने की नसीहत दी है। बोर्ड की इस सलाह पर कई सवाल उठ रहे हैं। 

क्या कहा है बोर्ड ने?

ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड ने अंतर-धार्मिक शादियों पर अफसोस जताया है। बोर्ड का कहना है कि मुसलिम लड़का मुसलमान लड़की से और मुसलमान लड़की मुसलिम लड़के से ही शादी करे। बोर्ड की तरफ से इसके कार्यवाहक महासचिव मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी ने प्रेस नोट जारी किया है। इसमें कहा गया है कि मुसलिम लड़के-लड़कियों का ग़ैर मुसलिमों से शादी करना धार्मिक रूप से ग़लत है। 

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शरीयत के मुताबिक़ ऐसी शादियों की इस्लाम में गुंजाइश नहीं है। अगर कोई मुसलमान किसी ग़ैर मुसलिम से शादी करता है तो वो ज़िंदगी भर ग़लत करता रहेगा। 

बोर्ड की मुख्य अपील 

  • उलमा-ए-किराम जलसों में इस विषय पर ख़िताब करें और लोगों को अंतर-धार्मिक शादियों के नुकसान के बारे में जागरूक करें।
  • महिलाओं के इज़्तेमा अधिक से अधिक हों और उनमें सुधारात्मक विषयों के साथ इस मुद्दे पर भी चर्चा करें।
  • मसजिदों के इमाम जुमे की नमाज़ के वक़्त अपने खिताब में क़ुरआन और हदीस के हवाले से इस विषय पर चर्चा करें और लोगों को बताएं कि उन्हें अपनी बेटियों को कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न हों।
  • आमतौर पर रजिस्ट्री कार्यालय में शादी करने वाले लड़के या लड़कियों के नामों की सूची पहले ही जारी कर दी जाती है। धार्मिक संगठन, संस्थाएं, मदरसे के शिक्षक गणमान्य लोगों के साथ उनके घरों में जाकर समझाएं और ऐसी शादियां करने से रोकें।
  • मुसलमान अपनी लड़कियों को को-एड के बजाय लड़कियों वाले स्कूल-कॉलेजों में ही पढ़ने भेजें और ये सुनिश्चित करें कि स्कूल-कॉलेज के बाद उनका सारा वक़्त घर में ही गुज़रे
  • मुसलमान अपने लड़के-लड़कियों के मोबाइल पर विशेष तौर पर निगरानी रखें।
  • लड़कों और विशेषकर लड़कियों की शादी में देरी न हो। समय पर शादी करें। क्योंकि शादी में देरी भी ऐसी घटनाओं का एक बड़ा कारण है।
  • निकाह सादगी से करें। इसमें बरकत भी है, नस्ल की सुरक्षा भी है और अपनी क़ीमती दौलत को बर्बाद होने से बचाना भी है। 

लव जिहाद का हवाला

बोर्ड ने अपने इस बयान के पीछे ‘लव जिहाद’ के मुद्दे का भी हवाला दिया है। बयान में कहा गया है कि हाल के दिनों में ‘लव जिहाद’ का मामला काफ़ी राजनीतिक हो गया है। मुसलिम लड़कों पर ग़ैर-मुसलिम लड़की से शादी करके उनका धर्म बदलवाने का आरोप है। कई राज्यों में इसके ख़िलाफ़ क़ानून भी लाया गया है। 

बोर्ड का कहना है कि ऐसे आरोपों से बचने के लिए बेहतर है कि मुसलिम लड़के और लड़कियां अपने समाज यानि मुसलिम समाज से ही अपना जीवन साथी चुनें। हालांकि बोर्ड ने अपने बयान में मुसलमानों के अलावा किसी और धर्म का नाम नहीं लिया है। लेकिन ‘लव जिहाद’ के हवाले से यह साफ़ हो जाता है कि बोर्ड हिंदू-मुसलिम के बीच होने वाली शादियों के ख़िलाफ़ है। 

क्या कहते हैं मुसलिम संगठन

ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड तमाम मुसलिम संगठनों का संगम है। सभी संगठनों से जुड़े लोग इसमें शामिल हैं। लिहाजा जमीअत उलमा-ए-हिंद से लेकर से लेकर जमात-ए-इस्लामी हिंद तक तमाम मुसलिम संगठनों की इस मुद्दे पर वही राय है जो बोर्ड की राय है। 

देश में ‘लव जिहाद’ के नाम पर जिस तरह नफ़रत का माहौल बनाया जा रहा है उससे बचने का यही तरीक़ा है कि मुसलमान नौजवान लड़के और लड़कियां अपने मज़हब में ही अपना जीवन साथी तलाश करें।


सैयद क़ासिम रसूल इलियास, पूर्व प्रवक्ता, जमात-ए-इस्लामी

उनका कहना है कि संघ परिवार मुसलिम लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने के लिए हिंदू नौजवानों की फौज तैयार कर रहा है। बोर्ड ने इससे बचने के लिए यह अपील जारी की है।

क्या कहते हैं सुधारवादी मुसलमान?

मुसलिम समाज में सुधारवादी आंदोलन चला रहे संगठन 'इंडियन मुसलिम फॉर प्रोग्रेस एंड रिफॉर्म' के संयोजक डॉ. एम जे ख़ान को ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इस बयान में कोई ख़राबी नजर नहीं आती। उनके मुताबिक़ यह सलाह है ना कि कोई ऐसा आदेश जिसका पालन करना सबके लिए ज़रूरी हो। उनका कहना है कि समाज में अंतर धार्मिक खासकर हिंदू-मुसलिम विवाह की स्वीकार्यता पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ी है। 

लेकिन उन मुसलिम परिवारों के सामने दिक्क़तें आती हैं जिनकी लड़कियां किसी हिंदू से शादी कर लेती हैं। उनके बाकी बच्चों की शादियां नहीं हो पातीं। 

ठीक इसी तरह हिंदू लड़की के किसी मुसलमान से शादी करने पर उसके परिवार का हिंदू समाज में बहिष्कार होता है। उनका कहना है कि अगर हिंदू-मुसलिम तनाव से बचने के लिए बोर्ड ने यह बयान जारी किया है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन अगर उसका मक़सद ज़ोर ज़बरदस्ती से अंतर धार्मिक शादी रुकवाने का है तो इसकी मुख़ालफ़त होनी चाहिए। 

एमजे ख़ान कहते हैं कि अलग-अलग धर्मों के लोग अगर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करते हैं तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन ऐसी शादियों में परिवार की रज़ामंदी और शादी के वक़्त परिवार की मौजूदगी को अनिवार्य बना दिया जाए।

बोर्ड का दोहरा रवैया

ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दोहरा रवैया एक बार फिर सामने आया है। आज बोर्ड क़ुरआन का हवाला देकर अंतर-धार्मिक विवाह ख़ासकर हिंदू-मुसलिम शादियों को रोकने की वकालत कर रहा है। 

यही बोर्ड पिछले कई साल से ‘तीन तलाक़’ के मसले पर क़ुरआन की आयतों की अनदेखी करके अपने गढ़े हुए क़ानून मुसलमानों पर थोपता रहा है। यह अजीब बात है कि बोर्ड को जब उचित लगता है तो वो क़ुरआन की बात करता है और जब उसे अपनी मनमानी करनी होती है तो वो क़ुरआन के ख़िलाफ़ भी चला जाता है।   

और भी हैं सवाल

क़ुरआन के बहुत सारे आदेश और दिशा-निर्देश ऐसे हैं जिन पर अब इस्लामी देशों में भी अमल नहीं होता है। वैसे भी आदर्श स्थिति और ज़मीनी हक़ीक़त में काफी फ़र्क़ हो होता है। वक्त के साथ समाज और समाज की सोच भी बदलती है। आज बोर्ड हिंदू-मुसलिम शादियों को ग़लत बता रहा है। कह रहा है कि ऐसा करने वाले जिंदगी भर ग़लत काम करते हैं। 

मुगलकाल में 38 हिंदू-मुसलिम शादियां हुईं। अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक कई बादशाहों और उनके शहज़ादों की शादियां राजपूत राजकुमारियों से हुईं और कई शहज़ादियों की शादियां राजपूत राजाओं और राजकुमारों से हुईं। सभी शादियां दोनों पक्षों की मर्ज़ी से हुईं। किसी भी शादी में किसी का धर्म नहीं बदला गया था।

औरंगज़ेब की हिंदू पत्नियां और बहुएं

औरंगज़ेब के शासनकाल में लिखी हुई किताब ‘फ़तवा-ए-आलमगीरी’ तमाम दारुल उलूम यानि मुसलिम विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। औरंगजेब की दो बीवियां हिंदू थीं नवाब बाई और उदैपुरी। इनका अपने पति से प्रेम और समर्पण इतना गहरा था कि एक पत्नी उदैपुरी का इरादा था कि अगर किसी वजह से औरंगजेब की मौत पहले हो जाए तो वो जीने की बजाए सती होना पसंद करेगी। औरंगज़ेब के तीन बेटों मुअज़्ज़म, आज़म और कामबख़्श की शादी हिंदू राजकुमारियों से हुई थीं।

तो ग़लत थे औरंगज़ेब?

क्या औरंगज़ेब ग़लत थे? वो ज़िंदगीभर ग़लत काम करते रहे? इस्लाम के इतने बड़े जानकार होने के बावजूद उन्होंने क़ुरआन की आयतों के ख़िलाफ़ जाकर हिंदू राजकुमारी से शादी की। वो भी बग़ैर उनके ईमान लाए। क्योंकि अगर वो मुसलमान हो गईं होती तो औरंगज़ेब की मौत के साथ ही सती होने की बात नहीं करतीं। क्या औरंगज़ेब के ज़माने में कोई और क़ुरआन था? 

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क्या औरंगज़ेब के लिए इस्लामी क़ानून कुछ मायने नहीं रखते थे? कुछ लोग कह सकते हैं कि औरंगज़ेब ने अपनी सत्ता के बूते ऐसा किया और सबको अपने कर्मों का हिसाब देना है। अगर औरंगज़ेब ग़लत थे तो फिर बोर्ड को उनकी लिखवाई किताब दारुल उलूम के पाठ्यक्रम से हटवा देनी चाहिए। 

बोर्ड की ये सलाह हिंदू-मुसलिम दंपतियों के लिए बेचैनी का सबब बम सकती है। बोर्ड को मुसलमानों के लिए शरीयत से जुड़े मामलों में एडवाइज़री जारी करने का पूरा अधिकार है। लेकिन उसे अपनी मर्ज़ी थोपने का अधिकार नहीं है।
शादी धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक मामला है। देश क़ानून हर बालिग़ नागरिक को अपनी मर्ज़ी से अपना जीवनसाथी चुनने का आधिकार देता है। संविधान में दिए नागरिकों की व्यक्तिगत पसंद के अधिकार को कुचलने की इजाज़त किसी को नहीं दी जा सकती। न कट्टर हिंदूवादी संगठनों और न ही ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन को।  
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यूसुफ़ अंसारी

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