वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए चल रहे लॉकडाउन के बीच भारत में मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाएं यानी NEET और JEE चर्चा में हैं। केंद्र सरकार चाहती है कि परीक्षाएं समय से हों, वहीं तमाम विपक्षी दल परीक्षा टाले जाने को लेकर शीर्ष न्यायालय में चले गए हैं। छात्रों व अभिभावकों का एक वर्ग बीमारी फैलने के भय के बीच परीक्षा टाले जाने को लेकर अभियान चला रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने संक्रमण से बचाव के लिए कुछ तैयारियां भी की हैं।
तमाम मांगों के बीच JEE और NEET की परीक्षा कराने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के अधिकारियों ने कह दिया है कि परीक्षाएं समय के मुताबिक़ ही संचालित होंगी। देश भर में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए NEET 2020 परीक्षा 13 सितंबर को होनी है, जबकि प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए JEE Main 2020, 1 सितंबर से 6 सितंबर के बीच होनी है।
क्या है डर
देश भर में बड़े पैमाने पर होने वाली इन परीक्षाओं में भीड़, अभ्यर्थियों की आवाजाही और ठहरने जैसे इंतजाम को लेकर अभिभावकों को डर है। JEE मुख्य परीक्षा में कुल 7.41 लाख विद्यार्थियों को परीक्षाएं देनी हैं। वहीं, इस साल NEET परीक्षा देने के लिए करीब 16 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है।
NEET और JEE ही नहीं, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा को लेकर भी इस तरह की तमाम दिक्कतें आईं, जिसमें यात्रा प्रतिबंधों के कारण छात्र परीक्षा स्थल तक नहीं पहुंच पाए। NEET और JEE जहां बड़ी परीक्षाएं हैं, वहीं अपने स्तर पर परीक्षाएं कराने वाली तमाम संस्थाओं की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के इच्छुक अभ्यर्थियों को भी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।
सोशल मीडिया पर यह मामला बड़े पैमाने पर उछला तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की और 7 राज्यों के मुख्यमंत्री इस विरोध में शामिल हो गए।
किसको नफा, किसे नुकसान
NEET और JEE की परीक्षाओं में शामिल होने के लिए विद्यार्थी बड़े पैमाने पर हाई स्कूल से ही कोचिंग शुरू कर देते हैं। सीटें कम होने और इन योग्यताओं के बाद बेहतरीन जिंदगी की आस में अभिभावक कोचिंग संस्थानों में अच्छा पैसा खर्च करते हैं। अगर यह परीक्षा साल भर के लिए टल जाती है और एक सत्र नहीं चलता है तो स्वाभाविक है कि कोचिंग संस्थानों को एक साल और प्रवेश की कथित तैयारी कराने का मौका मिल जाएगा। इसकी सबसे बड़ी मार ग़रीब तबके़ पर पड़ेगी, जिन्हें बच्चों को डॉक्टर बनाने के सपने में एक अतिरिक्त साल कोचिंग की फीस झेलनी पड़ेगी।
विरोध करने वालों का तर्क
परीक्षा कराने वालों का विरोध कर रहे लोगों का एक तर्क यह है कि इस समय मेडिकल की आधी सीटें प्राइवेट हो चुकी हैं। अगर एग्जाम नहीं होता है और सेशन लैप्स होता है तो निजी मेडिकल कॉलेजों को करोड़ों रुपये कैपिटेशन फीस से लेकर अन्य शुल्कों का नुकसान उठाना पड़ेगा, जिसके कारण वह सरकार पर परीक्षा कराने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि हक़ीक़त इससे उलट नजर आती है।
अगर परीक्षाएं नहीं कराई जाती हैं तो निजी कॉलेज 2 विकल्प अपना सकते हैं। पहला, वे मौजूदा विद्यार्थियों के शुल्क बढ़ाकर अपने ख़र्चे की वसूली करें। दूसरा, वे भारी भरकम कैपिटेशन फीस लेकर मैनेजमेंट कोटे से सीटें भरें और सत्र चलाएं। कम से कम प्राइवेट कॉलेजों को इससे कोई घाटा होता दिखता नजर नहीं आता।
डॉक्टरों-इंजीनियरों का संकट
भारत में चिकित्सकों की कमी किसी से छिपी हुई नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है प्रति 1000 की आबादी पर कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए। हालांकि ग्रीस और जर्मनी जैसे यूरोप के संपन्न देशों में प्रति हजार आबादी पर 4 से ज्यादा डॉक्टर हैं। वहीं, फ्रांस व रूस में प्रति हजार आबादी पर 3 से ज्यादा डॉक्टर हैं। भारत की दुर्दशा यह है कि विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़ 2018 में भारत में प्रति हजार आबादी पर महज 0.9 डॉक्टर थे।
अगर एक साल का सत्र बर्बाद होता है तो पूरा एक बैच खत्म हो जाएगा और नए डॉक्टर और इंजीनियर नहीं निकल पाएंगे। यह पहले से ही दुर्दशाग्रस्त भारत की बदहाली को थोड़ा और बढ़ाएगा।
फेल रहा लॉकडाउन
अब तक के लॉकडाउन से यह साफ हो गया है कि भारत में इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ है। न तो 21 दिन के पहले लॉकडाउन में कोरोना का चक्र टूटा और न ही थाली-ताली बजाने, दीपोत्सव मनाने और मेडिकल कॉलेजों पर फूल बरसाने से कोई असर पड़ा।
इतना ज़रूर हुआ है कि देश में बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ, लाखों मजदूरों को हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा करने को बाध्य होना पड़ा। संगठित क्षेत्र के करीब दो करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। सरकार के पास उम्मीद से कम राजस्व आया और केंद्र सरकार राज्यों को वादे के मुताबिक़ जीएसटी मुआवजा न दे पाने को लेकर अपनी लाचारी दिखा रही है।
कुल मिलाकर कोरोना को लेकर सरकार की सारी कवायदें लहूलुहान हैं और देश की वित्त मंत्री आर्थिक बर्बादी के लिए अपने कुप्रबंधन के बजाय भगवान को दोषी करार दे रही हैं।
बढ़ता ही जा रहा कोरोना
कोरोना बढ़ता ही जा रहा है। शुरुआती महीनों में रोज उत्साह के साथ कोरोना की स्थिति पर ब्रीफिंग करने वाले अधिकारी तक कोरोना की चपेट में आ गए। कई मंत्रियों, विधायकों की कोरोना से मौत हो गई और सरकार के 29 अगस्त 2020 तक के आंकड़ों के मुताबिक़ देश में 7,52,424 एक्टिव मामले हैं, 26,48,998 लोग ठीक हो चुके हैं और 62,550 लोगों की मौत हो चुकी है।
परीक्षा का क्या करें?
निश्चित रूप से देश के बच्चे अनमोल हैं। लेकिन आज हालत यह है कि कोई भी खुद को कोरोना प्रूफ नहीं कह सकता है। यानी आप कहीं भी हैं, सिर्फ बचाव कर सकते हैं, बचे रहेंगे, इसका दावा नहीं किया जा सकता। ऐसे में यही हो सकता है कि पूर्ण बचाव के साथ बच्चों की परीक्षा कराई जाए। इसके लिए सरकार ने भी अपने स्तर पर इंतजामात किए हैं।
बच्चों को अपने सेंटर बदलने के विकल्प दिए गए, जिसमें सिर्फ 332 अभ्यर्थियों ने सेंटर बदलने का विकल्प अपनाया। यानी अभ्यर्थियों की पहली प्रीफरेंस के मुताबिक़ उन्हें सेंटर दिया गया है और ज्यादातर अपने नजदीकी सेंटर पर परीक्षा देने को लेकर कंफर्टेबल हैं।
पहले से परीक्षा की तिथि घोषित होने की वजह से आज के बाइक और कारों के दौर में गांव से भी जिला मुख्यालय तक परीक्षा देने आने में बहुत ज्यादा दिक्कत होने की संभावना नजर नहीं आती है।
इसके अलावा NEET के परीक्षा केंद्रों की संख्या भी 2,546 से बढ़ाकर 3,843 और JEE के परीक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ाकर 570 से 660 कर दी गई है, जिससे कि भीड़ और अफरा-तफरी जैसी स्थिति न बनने पाए।
JEE में शामिल होने के इच्छुक 8.58 लाख अभ्यर्थियों में से 7.41 लाख अभ्यर्थियों ने अपने एडमिट कार्ड पिछले बुधवार तक डाउनलोड कर लिए थे। NEET के 15.87 लाख अभ्यर्थियों में से एनटीए ने बुधवार को महज 5 घंटे में 6.84 लाख अभ्यर्थियों को प्रवेश पत्र जारी कर दिए थे जबकि इसी दिन से प्रवेश पत्र डाउनलोड करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
विपक्षी दलों का आंदोलन
आंकड़े कहते हैं कि प्रवेश परीक्षा को लेकर अभ्यर्थियों में उत्साह है। यह भी कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के दौरान विद्यार्थियों को घर बैठकर परीक्षा की जमकर तैयारी करने का मौका भी मिला होगा क्योंकि बाहर घूमना और आवाजाही बंद थी। वहीं, विपक्षी दल परीक्षा को टालने को लेकर आंदोलन चला रहे हैं। इसे लेकर कांग्रेस के एक स्थानीय नेता पीयूष रंजन यादव ने धारा के विपरीत टिप्पणी की और कहा, “जनांदोलन चलाने वालों को महात्मा गांधी से सीखना चाहिए कि पहले वह अनुमान लगाएं कि जनता इसके लिए कितनी तैयार है। आंकड़े कह रहे हैं कि जनता परीक्षा दिलाने के लिए तैयार है और ट्विटर, फेसबुक के ट्रेंड पर निर्भर विपक्ष को लगता है कि अभ्यर्थी इन परीक्षाओं को टाले जाने को लेकर आंदोलित हैं।“
बेहतर विकल्प यही है कि धीरे-धीरे कामकाज को सामान्य किया जाए। यथासंभव शारीरिक दूरी के मानकों का पालन किया जाए और जिंदगी के शो को न रोका जाए, इसे चलने दिया जाए। वर्ना लंबे समय तक का लॉकडाउन देश को भुखमरी की ओर धकेल देगा।
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