हमारे लेखकों, साहित्यकारों ने दलित समाज के कष्टों, अपमान और संघर्षों को अपनी लेखनी के माध्यम से पूरे विश्व के सामने रखा। दलति साहित्य के बारे में बता रहे हैं शैलेंद्र चौहान।
पिछले हफ्ते दिल्ली उच्च न्यायालय ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इक़बाल तन्हा की ज़मानत याचिका पर कहा कि यूएपीए का उपयोग आतंकवाद की वास्तविक घटनाओं में किया जाए, सरकार विरोधी असंतोष या विरोध प्रदर्शन के मामलों में नहीं।
कुछ लोगों को ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि देश में आपातकाल लगा हुआ है और इस बार क़ैद में कोई विपक्ष नहीं बल्कि पूरी आबादी है? घोषित तौर पर तो ऐसा कुछ भी नहीं है। न हो ही सकता है।
जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35ए को हटाने के क़रीब दो साल बाद केन्द्र सरकार फिर से राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश में है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक के लिए गुपकार ग्रुप के नेता तैयार हो गए हैं।
हम शायद महसूस नहीं कर पा रहे हैं कि संसद और विधानसभाओं की बैठकें अब उस तरह से नहीं हो रही हैं जैसे पहले कभी विपक्षी हो-हल्ले और शोर-शराबों के बीच हुआ करती थीं और अगली सुबह अख़बारों की सुर्खियों में भी दिखाई पड़ जाती थीं।
अगर सिर्फ बची हुई रकम का इस्तेमाल मोदी सरकार कर लेती है तो मुआवजे की जरूरत वाली रकम तकरीबन पूरी हो जाती है। जो रकम खर्च नहीं कर पा रही हो, उसका सदुपयोग अगर मुआवजे में होता है तो इसमें संकोच क्यों?
कोरोना की दूसरी लहर धीमी पड़ रही है, लेकिन इसी के साथ ही तीसरी लहर की आहट भी सुनाई पड़ने लगी है। कहा जा रहा है कि अगली लहर बच्चों को ज़्यादा और गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने कड़ा एतराज़ जताया और पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम के लिए ली-निंग से किए गए क़रार को रद्द कर दिया गया है।
अब कई तरह के दबावों के बीच ऐसा लग रहा है कि भारत से वैक्सीन निर्यात का सिलसिला फिर से शुरू हो सकता है। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों को देख रहे वी के पॉल ने कहा कि कोविड वैक्सीन का निर्यात पूरी तरह से हमारे राडार पर है।
पिछले कुछ सालों से देश में दलित-मुस्लिम एकता का शोर मचा हुआ है। यह कोई बात नहीं है। आज़ादी के पहले मुस्लिम लीग ने भी कुछ ऐसा ही नारा दिया था। इस नारे के पीछे की सचाई क्या है?
मोहम्मद अब्दुल समद सैफी की पिटाई के वक्त उनसे सियाराम के नारे लगवाए गये- यह बात पुलिस ने झूठ करार दी। अब इसी ‘झूठ’ को प्रसारित करने वाले ‘गुनहगार’ खोज निकाल गए।
भारत में सांप्रदायिक दंगे क्यों होते हैं, इसके लिए कौन ज़िम्मेदार हैं और इसका सबसे ज़्यादा नुक़सान कौन भुगतता है? यदि सांप्रदायिक दंगे न हों तो देश में कैसे हालात होंगे, पढ़िए शहीद भगत सिंह ने क्या लिखा था।
हाल ही में बीजेपी में शामिल होने वालों में कांग्रेस के जितिन प्रसाद को गिनाया जा सकता है। सचिन पायलट रास्ते में हो सकते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य, ज्योतिरादित्य सिंधिया, शुभेंदु अधिकारी, आदि की कहानियाँ अब पुरानी पड़ गई हैं।
आख़िरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के प्रमुख नेताओं में शुमार जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस का दामन छोड़कर उस संघ परिवार के अनुषांगिक संगठन भाजपा का दामन थाम लिया जिससे कभी उनके पिता जितेंद्र प्रसाद लड़ते रहे हैं।