पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जस्टिस मदान ने एक घर से कथित तौर पर भागे हुए जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार करते हुए लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक और नैतिक रूप से ग़लत कहा है।
कोरोना पर काबू पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच बातचीत किसी नतीजे पर पहुँचने के बजाय आपसी राजनीति और विवादों का हिस्सा बनती जा रही है। ऐसा क्यों है?
नोटबंदी में पंक्तिबद्ध लोगों की मौतें से लेकर पिछले साल कोरोना के समय अविवेकपूर्ण लॉकडाउन में सैकड़ों मज़दूरों की मौत, कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन, दवाइयों आदि के अभाव में हजारों लोगों की जान चली गई।
नारद घोटाले में सीबीआई ने सत्ताधारी टीएमसी के चार नेताओं को गिरफ्तार किया लेकिन मुख्य अभियुक्त सहित जो अन्य आरोपी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी में शामिल हो गए उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसा क्यों?
इस सेटेलाइट युग में भी मौतों के सही आँकड़े छुपाने के असफल और संवेदनहीन प्रयासों की तरह ही उस लहर से उत्पन्न होने वाले संताप और मौतों को भी ख़ारिज किया जाएगा, जिसकी कि हम बात करने जा रहे हैं।
भाजपा सरकार ने महामारी से जुड़े शासन के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों जैसे: ऑक्सीजन उत्पादन, उत्पादन का नियंत्रण और कोविड-19 के इलाज से जुड़ी दवाओं जैसे रेमडेसिविर का वितरण आदि का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था। लेकिन तैयारी कैसी हुई?
जब से हमारे देश में कोरोना आया है, केंद्र हो या राज्य सरकारें, सब यही कह रही हैं कि यह लड़ाई हमें जीतनी है। देशवासी भी यही चाहते हैं कि हम कोरोना से जंग जीत जाएं।
यूपी में पंचायत चुनाव बीत चुके हैं। चुनाव का हलाहल गंगा में तैरती लाशों के रूप में प्रकट हो रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे परिवारों को एक करोड़ रुपए मुआवजा देने का सरकार को निर्देश दिया है। क्या योगी इससे परेशान दिख रहे हैं?
नदियों में लाशें मिल रही हैं, लोग अस्पताल के बाहर फुटपाथ पर दम तोड़ रहे हैं, सड़कों पर ऑक्सीजन के लंगर लग रहे हैं, लेकिन सरकार को लोगों की नहीं, बस अपनी छवि की फ़िक्र है।
देश जब दवा, बेड्स, इलाज, ऑक्सीजन और टीके के अभाव में मौत सामने देख रहा है, देर से ही सही, प्रधानमंत्री के सांत्वना और भरोसे के दो शब्द देशवासियों ने सुने।
जो लोग फ़लिस्तीनियों के स्वतंत्र राष्ट्र के संघर्ष में दिलचस्पी रखते हैं और उस पर नज़र रखे हुए हैं, उन्हें लग रहा होगा कि जैसे पश्चिम एशिया में एक बार फिर से इतिहास दोहराया जा रहा है।
यह क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? चारो तरफ़ मौत का मंजर क्यों है? लग रहा है प्रलय की आहट तेज़ हो रही है।असमय जाते प्रियजन। अशुभ सिलसिला टूट ही नहीं रहा है। चौतरफा अवसाद। हताशा। इसके पीछे कौन है?
अनुपम खेर ने मोदी की वापसी को लेकर पिछले दिनों क्या कह दिया था, हाल में जो कुछ कहा है उसका ‘सारांश’ यह है कि : “कोरोना संकट में सरकार ‘फ़िसल’ गई है और उसे ज़िम्मेदार ठहराना महत्वपूर्ण है...'