कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने हाल ही में मुझे फोन किया और कहा कि उन्हें सोनिया और राहुल गांधी की वजह से जनता से गालियाँ मिल रही हैं। वे पार्टी के नेतृत्व को जकड़े हुए हैं।
कोरोना संकट देश में भयावह हो गया है। अब समय आ गया है पूछने का कि कितनी मौतों के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री अपने को उत्तरदायी मानेंगे?
नंदीग्राम में अपनी हार के बावजूद ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के कारण है।
सुप्रीम कोर्ट जाकर अपने लिए खास परमिशन ले आए कि लॉकडाउन न लगाना पड़े। लेकिन हारकर आख़िरकार उन्हें भी लॉकडाउन ही आख़िरी रास्ता दिखता है, कोरोना के बढ़ते कहर को थामने का। महाराष्ट्र ने कड़ाई बरती तो फायदा भी दिख रहा है।
जब इतिहास यह सवाल पूछेगा कि इन चुनावों की कितनी क़ीमत लोगों ने अपनी जान देकर चुकाई है, तो शायद इन लोगों के पास कोई जवाब नहीं होगा। जब इतिहास यह सवाल पूछेगा कि कुंभ में स्नान करने से कितनों की जान गयी तो कोई जवाब नहीं होगा?
आज़ादी के बाद की स्मृतियों में अब तक के सबसे बड़े नागरिक संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी क्या संवेदनात्मक रूप से उतने ही विचलित हैं जितने कि उनके करोड़ों देशवासी हैं?
एक तरफ़ कोरोना टीकों की कमी है तो दूसरी तरफ हर कोई लगवा सकता है और टीके की क़ीमत तय नहीं है। सरकार मुफ्त में किन लोगों को लगवाएगी, यह भी तय नहीं हुआ है, काम शुरू होना तो छोड़िए। आख़िर टीकाकरण की नीति क्या है?
देश के तमाम हिस्सों की तरह देश की राजधानी दिल्ली में भी कोरोना के कहर से हाहाकार मचा हुआ है। अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों पर कतार में खड़े हैं। ऑक्सीजन के अभाव में मरीज मर रहे हैं। तो सांसद कहाँ हैं?
कल रात से एक वीडियो तेज़ी से घूम रहा है। त्रिपुरा के एक विवाह समारोह का है। एक उत्साही प्रशासनिक अधिकारी विवाह स्थल पर पहुँच कर रुखाई से सबको विवाह स्थल से हाँक कर बाहर निकाल रहा है। त्रिपुरा में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए बड़े जमावड़े पर पाबंदी है।
सारे देश में कोरोना से मौत पर कोहराम मचा हुआ है। महामारी काबू में नहीं आ रही है। लोग कीड़े- मकोड़ों की तरह मर रहे हैं। अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल रहे और श्मशानों में चिताएँ उपलब्ध नही हैं। मौतों के असली आँकड़े छिपाए जा रहे हैं।
यह संतोष का विषय है कि भारत में कोरोना मरीजों के लिए नए-नए तात्कालिक अस्पताल दनादन खुल रहे हैं, ऑक्सीजन एक्सप्रेस रेलें चल पड़ी हैं, कई राज्यों ने मुफ्त टीके की घोषणा कर दी है, कुछ राज्यों में कोरोना का प्रकोप घटा भी है।
भारत में फैले कोरोना की प्रतिध्वनि सारी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। अमेरिका से लेकर सिंगापुर तक के देश चिंतित दिखाई पड़ रहे हैं। जो अमेरिका कल-परसों तक भारत को वैक्सीन या उसका कच्चा माल देने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था, उसका रवैया थोड़ा नरम पड़ा है।
कोरोना संक्रमण को रोकने में सरकार की नाकामी को टीवी एंकर सिस्टम की नाकामी बता रहे हैं, सरकार की नहीं। क्या मामला है, पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का व्यंग्य।
इस समय मुख्य धारा का अधिकांश मीडिया, जिसमें कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों शामिल हैं, बिना किसी घोषित-अघोषित सरकारी अथवा अदालती हुक़्म के ही अपनी पूरी क्षमता के साथ सत्ता के चरणों में बिछा हुआ है।