कोरोना के इस बार के हमले में बचाव का कोई हथियार टिक नहीं रहा। स्वास्थ्य व्यवस्था का खुद ही दम निकल चुका है। जैसे तेज़ तूफान में आदमी दोनों हाथों से आँख-नाक को बचाते हुए सिर दबाए रहता है, कुछ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, सरकारों का हाल वैसा ही है।
भारत को विश्व गुरु बनाने के नाम पर भोली जनता को ठगने वालों ने उस जनता के साथ बहुत बेरहमी की है। विश्व गुरु भारत आज मणिकर्णिका घाट में बदल गया है। जिसकी पहचान बिना ऑक्सीजन से मरे लाशों से हो रही है।
यह प्रसन्नता की बात है कि हरिद्वार में चल रहे कुंभ-मेले को स्थगित किया जा रहा है। यहाँ पहले शाही स्नान पर 35 लाख लोग जुटे थे। 27 अप्रैल तक चलनेवाले इस कुंभ में अभी लाखों लोग और भी जुटते यानी हज़ारों-लाखों लोग कोरोना के नए मरीज बनते।
चुनाव आयोग ने पिछले महीने के तीसरे सप्ताह में केरल की तीन राज्यसभा सीटों के चुनाव की तारीख़ का ऐलान किया तो क़ानून मंत्रालय ने उसे चुनाव टालने का निर्देश दिया। चुनाव आयोग ने इसे टाल भी दिया। फिर इसे अपना फ़ैसला बदलना पड़ा।
बंगाल के विधानसभा चुनाव ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिये हैं। जिस तरह हिंदू-मुसलमान में बँटवारा किया जा रहा है, मुसलमानों को पराया बनाने की कोशिश की जा रही है, क्या वह देश हित में है?
कूचबिहार में 10 अप्रैल को एक मतदान केंद्र पर भीड़ का सीआईएसएफ़ पर हमला चिंता का सबब क्यों नहीं बना? सरकार की कामयाबी या नाकामी क्या इससे तय होगा कि सरकार किसकी है?
अमेरिका की मेरीलैंड विधानसभा स्वास्तिक पर विधेयक को क़ानून बनाने की तैयारी में है। विधेयक में ‘स्वास्तिक’ को घृणास्पद चिन्ह बताया गया है और इसे कपड़ों, घरों, बर्तनों, बाज़ारों या कहीं भी इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
बदली हुई परिस्थिति में सामरिक और कूटनीतिक रणनीति की समझ रखने वाले यह मानकर चल रहे हैं कि चीन का रुख अब मुलायम होने वाला नहीं है और भारत के लिए कोई उपलब्धि हासिल करना टेढ़ी खीर है।