प्रियदर्शन लिखते हैं- जिस दो तरह के भारत की हम चर्चा कर रहे हैं, उनमें कई तरह के भारत हैं। लेकिन हर जगह यही नज़र आता है कि अमीर भारत पहले ग़रीब भारत की जेब काटता है और फिर उसके लिए खाना बांटता है।
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने वालों को मोदी सरकार के समर्थकों ने खालिस्तानी, नक्सली, देशद्रोही क्यों कहा था? जानिए, अब इन क़ानूनों की वापसी के क्या हैं मायने।
कंगना रनौत देश की आज़ादी को लेकर दिए गए विवादित बयान के बाद उन्होंने महात्मा गांधी पर हमला किया है। कंगना ने गांधी जी के अहिंसा के मंत्र का मजाक उड़ाते हुए कहा है कि दूसरे गाल को भी आगे कर देना भीख है न कि आज़ादी।
जवाहरलाल नेहरू का जिस्म भले ही नहीं रहा हो, लेकिन वह एक लड़ाई अभी भी लड़ रहे हैं। वह लड़ाई क्या है यह कंगना के उस बयान से भी पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा है कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है।
कंगना रनौत ने जब एक कार्यक्रम में कहा कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है तो तालियाँ बजाने वाले लोग कौन थे? आख़िर किसी ने भी खड़े होकर विरोध क्यों नहीं जताया?
1947 की आज़ादी को 'भीख में मिली आज़ादी' बताना ऐसे है जैसे पृथ्वी पर जीवित व्यक्ति वायु के अस्तित्व को खारिज कर दे, लेकिन क्या इसके लिए कंगना की गरिमा को चोटिल करना जायज है? क्या एक महिला का इस तरह अपमान किसी भी रूप में सही है?
सलमान खुर्शीद की किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ में हिंदुत्व की तुलना आईएस और बोको हरम से करने के बाद राजनीतिक गलियारों में हिंदुत्व व हिंदू धर्म को लेकर बहस शुरू हो गई है।
दो दिन पहले ही पद्म श्री अवार्ड से नवाजी गईं कंगना रनौत ने क्यों कहा, '...और उन्होंने एक क़ीमत चुकाई... बिल्कुल वो आज़ादी नहीं थी, वो भीख थी। और जो आज़ादी मिली है वो 2014 में मिली है।'