चौहान ने अपने मंत्रियों और विधायकों से इस समस्या पर तो खुला विचार-विमर्श किया ही कि वे पिछला चुनाव क्यों हारे। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को सफलता, लोकप्रियता और जन-सेवा के जो गुर बताए हैं, वे सिर्फ बीजेपी ही नहीं, सभी पार्टियों के लिए अनुकरणीय हैं।
ट्विटर पर कार्रवाई के बीच सूचना एवं तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने ख़ास अंदाज़ में बारंबार कह रहे हैं कि विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को भारतीय संविधान एवं क़ानूनों का पालन करना ही पड़ेगा।
गृह मंत्रालय को तलाश है देश में ऐसे साइबर-वालंटियर्स की जो कई गंभीर अपराधों, आतंकवाद, कट्टरवाद और राष्ट्र-विरोधी ग़ैर-क़ानूनी कंटेंट देने वालों की पहचान करें और उनके बारे में मंत्रालय को बताएं।
सरकार ने सुधारों के नाम पर जनता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस को बयानबाजियों और दूसरे के धरनों व रैलियों में जाने से इतर अपनी रणनीति साफ़ करने की ज़रूरत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चौधरी चरण सिंह का हवाला देकर और हाशिए वाले किसानों की दयनीय स्थिति की तरफ़ इशारा कर अपनी सरकार के कृषि सुधार क़ानूनों का बचाव किया है।
कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद की संसद से बिदाई अपने आप में एक अपूर्व घटना बन गई। पिछले साठ—सत्तर साल में किसी अन्य सांसद की ऐसी भावुक विदाई हुई हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता।
सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसी हस्तियों की ट्वीट की जाँच का फ़ैसला लेकर महाराष्ट्र सरकार और इसमें शामिल तमाम पार्टियाँ सवालों के घेरे में आ गयी हैं।
रियाना (रिहाना) के ट्वीट के बाद भारत की कुछ खेल हस्तियों और मशहूर हस्तियों ने अपनी राय रखी। इसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। क्या इससे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ी है?
क्या कोई आज़ादी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल बीजेपी में उपलब्ध है? उसके अनुमानित 18 करोड़ सदस्यों में क्या कोई यह सवाल पूछने की हिम्मत कर सकता है कि पार्टी और सरकार हक़ीक़त में कैसे चल रही हैं?
कई परियोजनाओं के तहत धड़ल्ले से साफ़ किए जा रहे जंगल और पहाड़ों को काटने के लिए किए जा रहे विस्फोट ही वहाँ आपदा को न्योता दे रहे हैं। चमोली ज़िले में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा को इसी रूप में देखा जा सकता है।
कर-लोकपाल की ज़रूरत मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रमण्यन ने साल 2021 के आर्थिक सर्वेक्षण में बताई है। उनके अनुसार कर-लोकपाल, आयकरदाताओं सहित तमाम करदाताओं के अधिकारों की निगरानी के लिए ज़रूरी है।
किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
सरकार का मानना है कि अम्बानी (याने कॉरपोरेट घरानों) पर टैक्स लगाकर उस पैसे से ग़रीबों की स्थिति बेहतर करने की जगह सरकार को विकास के पहले दौर में ग़रीबों की निरपेक्ष ग़रीबी जैसे मौलिक सुविधाओं का अभाव ख़त्म करना होगा। उसके अनुसार सापेक्ष गरीबी (जो शुद्ध रूप से असामनता-जनित होती है) तो अमेरिका में भी है।
किसान आन्दोलन पर सरकार यही सन्देश दे रही है कि किसान नागरिक अधिकारों से विहीन नागरिक बनते जा रहे हैं। उनके बारे में बिना चर्चा कानून बनाने से लेकर उनको इस स्थिति मेँ लाने तक यही चल रहा है।
4 फरवरी 2021 को ऐतिहासिक चौरी चौरा घटना के शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। प्रधानमंत्री ने चौरी चौरा के शहीदों को याद करते हुए, इतिहास में उनकी अवहेलना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।