loader
प्रधानमंत्री मोदी। (फ़ाइल फ़ोटो)

करना तो जनता भी चाहती है अपने मन की बात मोदी से! सुनेंगे?

प्रधानमंत्री के पास तो अपने मन की बात कह देने के कई ज़रिए हैं। नागरिकों को अगर अपनी कोई बात प्रधानमंत्री से करनी हो तो कैसे करें? लोग भी बहुत कुछ कहना चाहते हैं। पर कैमरों के सामने नहीं। क्या हम ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद रख सकते हैं जिसमें प्रजा भी अपने मन की बात सीधे राजा के कानों में कह सके?
श्रवण गर्ग

प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात’ की बात एक बार फिर पूरी कर ली। सुनने के बाद लोग काफ़ी हल्के भी हो गए। रविवार को दस बजने के पहले तक कई तरह की शंकाएँ थीं। लोगों के मन में भय था कि प्रधानमंत्री फिर से कुछ और करने के लिए नहीं कह दें। अक्षय तृतीया सहित संयोग भी कई थे। प्रधानमंत्री ने ही सारे गिनवा भी दिए। वह चाहते तो कुछ और निवेदन कर भी सकते थे। पर उन्होंने वैसा कुछ भी नहीं किया। लोगों के मन में एक और बड़ा डर ‘लॉकडाउन’ की समाप्ति को लेकर भी था। मीडिया वाले ऐसे तमाम अवसरों पर भविष्यवाणियाँ करने की तैयारी करके रखते हैं कि प्रधानमंत्री कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं। पर वैसा भी कुछ नहीं हुआ। लोगों ने उस समय एक लम्बी राहत की साँस ली होगी जब प्रधानमंत्री ने अपनी बात यह कहते हुए ख़त्म कर दी कि : ‘दो गज की दूरी, है बहुत ज़रूरी।’

ताज़ा ख़बरें

प्रधानमंत्री को इन दिनों सुनते वक़्त इस एक बात का एहसास लगातार बना रहता है कि वे जैसे कुछ समझाना चाह रहे हैं। अपने कहे को लेकर वे देश की जनता की तरफ़ से आश्वस्त भी होना चाहते हैं। हमने अपने प्रधानमंत्री को चुनावी युद्धों के दौरान भी सुना है और सर्जिकल स्ट्राइक, आदि के दौरान भी। प्रधानमंत्री को सुनते हुए महसूस किया जा सकता है कि वे इस समय जिस युद्ध का नेतृत्व कर रहे हैं वह उनके पिछले छह वर्षों के कार्यकाल के अनुभवों से काफ़ी अलग है।

इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि सामरिक युद्धों को लेकर तो मोदी के पास पूर्व प्रधानमंत्रियों द्वारा लिए गए निर्णयों, की गईं तैयारियों, उपलब्धियों और ‘हिमालयी’ ग़लतियों के प्रामाणिक दस्तावेज़ हैं, किताबें हैं पर आज़ादी के बाद कोई भी प्रधानमंत्री ऐसे अनुभव और संकट से नहीं गुज़रा होगा जैसी कि स्थिति आज है।
ख़राब मानसून, अकाल, सोने को गिरवी रखने जैसे आर्थिक हालात, भूकम्प, अतिवर्षा और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ तो देखते और झेलते भी रहते हैं पर मौजूदा संकट अपने तरह का पहला अनुभव है।
विचार से ख़ास

इसमें दो राय नहीं है कि वर्तमान संकट ने सभी राष्ट्राध्यक्षों को हिलाकर रख दिया है। इसीलिए अपने हर सम्बोधन में मोदी इसे जनता की लड़ाई बताते हैं। सामरिक युद्धों की यह भाषा कि ‘विजय सुनिश्चित है’ का इस्तेमाल न करते हुए वे जनता को आगाह करते नज़र आते हैं कि यह लड़ाई ‘पीपुल ड्रिवन’ है। ‘अति आत्मविश्वास में न फँस जाएँ। अति उत्साह में कोई लापरवाही नहीं हो जाए।’ इससे समझा सकता है कि वे नागरिकों से अपने में सैन्य गुणों को आत्मसात् करने की बात कर रहे हैं। उनके कहे को ही अगर दोहराएँ तो: ‘देश का हर नागरिक आज एक सिपाही है।’ क्या ऐसा तो नहीं कि मोदी लॉकडाउन की समाप्ति के बाद लोगों के सम्भावित आचरण को लेकर आशंकित हैं?

यह एक बहस का विषय हो सकता है कि जिस लोकतंत्र में चुनावी राजनीति ने भीड़ को ही अपनी ताक़त बनाया हुआ हो और जिसमें नायकों और खलनायकों की पहचान केवल मुँह देखकर की जाती हो, उसमें चेहरों को गमछों से ढककर दो गज की दूरी बनाए रखने को जन समुदाय अपनी जीवन शैली कैसे बना पाएगा?

प्रधानमंत्री तो मास्क को सभ्य समाज का प्रतीक बनाना चाह रहे हैं।

और आख़िर में एक सवाल यह भी बनता है कि प्रधानमंत्री के पास तो अपने मन की बात कह देने के कई ज़रिए हैं। नागरिकों को अगर अपनी कोई बात प्रधानमंत्री से करनी हो तो कैसे करें? लोग भी बहुत कुछ कहना चाहते हैं। पर कैमरों के सामने नहीं। पुराने कथानकों में ऐसे वर्णन आते हैं कि किस तरह से राजा अपना भेस बदलकर रात के अंधेरे में राज्य की सड़कों पर निकल पड़ता था और ख़ुद ही जनता के मुँह से अपने कामकाज के बारे में बिना बिचौलियों की उपस्थिति के सबकुछ सुनता था। इस समय तो बहुत सारी जनता सड़कों पर ही है। क्या हम ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद रख सकते हैं जिसमें प्रजा भी अपने मन की बात सीधे राजा के कानों में कह सके?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें