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कृषि क़ानून: इज्जत का सवाल है तो ये करके दिखाए सरकार!

सरकार क्या 60-70 करोड़ लोगों के ग़ुस्से को झेल सकती है? क्या सरकार को दो-चार अडानी-अंबानी बचा सकते हैं? कृषि-क़ानूनों को सरकार अपनी इज्जत का सवाल बनाए बैठी है तो इन छह प्रतिशत मालदार किसानों की टक्कर में वह 94 प्रतिशत छोटे किसानों के समानांतर धरने देश में जगह-जगह क्यों नहीं आयोजित कर सकती है? 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आख़िरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ़ से तूल पकड़ेगा। धरना देनेवाले पंजाब और हरियाणा के किसान काफ़ी दमदार, मालदार और समझदार हैं और सरकार भी अपनी ओर से किसानों का ग़ुस्सा मोल नहीं ले सकती है। 60-70 करोड़ लोगों को कुपित करनेवाली सरकार को दो-चार अडानी-अंबानी नहीं बचा सकते। सरकार उनसे नोट तो ले सकती है लेकिन वे इसे वोट कहाँ से लाकर देंगे? इसीलिए 30 दिसंबर की इस वार्ता को सफल होना ही चाहिए। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। दोनों पक्ष उन पर विचार कर सकते हैं।

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पहला, खेती मूलतः राज्यों का विषय है। संविधान की धारा 246 में यह स्पष्ट कहा गया है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार राज्यों को (पंजाब, हरियाणा आदि) छूट क्यों नहीं दे देती? जिन राज्यों को ये तीनों क़ानून लागू करना हो, वे करें, जिन्हें न करना हो, वे न करें। वे ख़ुद तय करें कि उनका फ़ायदा किसमें है?

दूसरा, देश के 94 प्रतिशत किसान एमएसपी की दया पर निर्भर नहीं हैं। केंद्र सरकार चाहे तो सिर्फ़ 23 चीज़ों के ही क्यों, केरल सरकार की तरह दर्जनों अनाजों, फलों और सब्जियों के भी न्यूनतम मूल्य घोषित कर सकती है। उन्हें वह खरीदे ही यह ज़रूरी नहीं है।

इसीलिए इन कृषि-क़ानूनों की ज़रूरत ही क्या है? 

solution for farm laws and farmers protest - Satya Hindi

तीसरा, किसान अपना माल खुले बाज़ार में ख़ुद बेचते हैं। उन्हें इन सरकारी क़ानूनों से कोई फ़ायदा या नुक़सान नहीं है। ये किसान अपनी खेती और ज़मीन अभी भी ठेके पर देने के लिए मुक्त हैं। ये क़ानून बनाकर सरकार फिजूल का सिरदर्द क्यों मोल ले रही है?

चौथा, उपज के भंडारण की सीमा हटाना ठीक नहीं मालूम पड़ता है। इससे बड़े पूंजीपतियों को लूटपाट की खुली छूट देने का शक पैदा होता है। भंडारण की सीमा लगाने का अधिकार सरकार को अपने हाथ में रखना चाहिए।

पाँचवाँ, यदि कृषि-क़ानूनों को सरकार अपनी इज्जत का सवाल बनाए बैठी है तो इन छह प्रतिशत मालदार किसानों की टक्कर में वह 94 प्रतिशत छोटे किसानों के समानांतर धरने देश में जगह-जगह क्यों नहीं आयोजित कर सकती है? जरा करके दिखाए!
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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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