Tanishq ad controversy Mixed race our reality

झूठ नहीं है तनिष्क का विज्ञापन, मिश्रित नस्लें भारत का सच है

(ऐसे में जब तनिष्क के विज्ञापन का विरोध हो रहा है, मशहूर मुसलिम समाज सुधारक हमीद दलवई के भाई की बेटी समीना दलवई ने यह लेख लिखा है। समीना की माँ हिन्दू हैं और पिता मुसलमान। यह लेख ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने प्रकाशित किया था। सत्य हिन्दी पेश कर रहा है उसका हिन्दी अनुवाद।)

समीना दलवई

तनिष्क के दूसरे विज्ञापनों की तरह ही मुसलिम सास और हिन्दू बहू का यह विज्ञापन भी बहुत ही सुंदर है। इसे वापस लेने का मतलब है यह मानना कि यह शरारतपूर्ण कल्पना है, यह कि इस तरह के रिश्ते वास्तव में नहीं होते। पर इस तरह के रिश्ते होते हैं। मैं एक जीता-जागता सबूत हूँ। उस विज्ञापन की अजन्मी बच्ची मैं हूँ।

मेरे माता-पिता जब 1971 में मिले, उन्होंने कभी भी 'लव जिहाद' शब्द नहीं सुना था। वे दोनों ही महाराष्ट्र में समाजवादी छात्र संगठन युवक क्रांति दल के सदस्य थे। यह संगठन श्रमिक शोषण, जाति उत्पीड़न, आदिवासी समुदाय के लोगों को हाशिए पर डाले जाने के मुद्दे को उठाता था। जब मेरी माँ इस संगठन से जुड़ी, वह हरी आँखों वाली, मोटी, हमेशा खिलखिलाती रहने वाली 18 साल की लड़की थी। उसके आस-पास के ज़्यादातर लोग उससे बड़े थे, वे अलग-अलग पृष्ठभूमि के थे, वे गाँव के, ग़रीब, दलित और मुसलमान थे। कई उसे देखते ही मोहित हो गए और उससे विवाह करना चाहते थे। 

ताज़ा ख़बरें

दरअसल, बाबा को उनके लिए ऐसे घरों से रिश्ते मिलते थे जो हिचिकचाने वाले युवक थे क्योंकि मेरी मां की पृष्ठभूमि से लोग डर जाते थे। वह नलिनी पंडित की बेटी थीं, जो एक मशहूर मार्क्सवादी गांधीवादी विद्वान थे। पंडित परिवार धनी और मशहूर था। उनके पास दादर में बहुत बड़ा मकान था, टेलीफ़ोन था, गाड़ियाँ थीं।

कट्टरता दिखी

जब उसने अपने ही एक साथी से शादी करने का फ़ैसला किया जो चिपलून का कोंकणी मुसलमान था, तो दोनों ही पक्षों की कट्टरता उभर कर सामने आ गई। उम्रदराज औरतें उसे दादर की सड़कों पर रोक कर पूछतीं, 'तुम मुसलमान से शादी करोगी!, सावधान रहना, हाँ! उनके यहां तो तीन तलाक़ की प्रथा है।' बाबा के बड़े भाई को लोगों ने कहा, 'अरे! वह हिन्दू लड़की से शादी क्यों कर रहा है?' बड़े भाई समाज सुधारक हमीद दलवई चकित रह गए। उन्होंने सोचा, साधारण शादी का समाजवादी-गांधीवादी विचार भाड़ में जाए। बहुत ही धूमधाम से बड़ी शादी होनी चाहिए ताकि लोगों को इसके बारे में पता चल सके। उन्होंने शादी का कार्ड छपवाया और सबको बाँट दिया।

देखिए, इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की टिप्पणी -
मेरी नानी कहती है कि उस शादी में अनगिनत लोग आए थे। हॉल छोटा था और अफरातफरी बहुत अधिक थी। तीन हज़ार गिलास कोकम शरबत खर्च हो गया, लोगों को बस वही दिया गया था। और मेरे माता- पिता को इतना अधिक मुस्कराना पड़ा और इतने लोगों से हाथ मिलाना पड़ा कि उनके होठ और हाथ दर्द करने लगे। 
मेरी माँ से उसके दोस्तों ने कहा, 'बाप रे! तुम्हारी शादी में इतनी उलझन थी। हम सकुशल बच गए, हमारी तकदीर अच्छी थी।' बाद में मिरजोली गाँव में भी शादी का जश्न हुआ, दलवई परिवार ने गाड़ियों में भर कर मुंबई से आए पंडित परिवार को बिरयानी का भोज दिया।

ससुराल वालों की ओर से तनिष्क शैली का सोने को कोई गहना नहीं दिया गया। दरअसल, जब मेरी माँ पहली बार उस गाँव गई तो चाँदी के कर्णफूल देख कर चौंक गई। उन्होंने सरस्वती समुदाय के दिवाली उत्सव को याद कर मन ही मन में कहा, 'चाँदी के तो बर्तन और प्लेट होते हैं।' दोनों परिवारों में इतना अंतर था। पर उन्होंने समाजवादी सिद्धांत अपनाया, 'क्षमता के मुताबिक दो, ज़रूरत के अनुसार लो।' 

मेरे पिता पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे जो मजदूरों की रैलियों और आदिवासियों की बैठकों में व्यस्त रहते थे। मेरी माँ मुंबई के एक कॉलेज में लेक्चरर थीं और उससे मिलने वाले पैसों से गाँव के बच्चों का ख्याल रखती थीं। वह शिक्षा पर पैसे खर्च करती थीं, शादी की खरीदारी और बीमार पड़ने पर रिश्तेदारों को हमारे मुंबई फ्लैट में ले आती थीं। वह एक वृहद परिवार की मातृ संस्था बन गईं।

महिला-विरोधी मानसिकता

तनिष्क विज्ञापन को ट्रोल करने वाले नहीं समझ रहे हैं कि वह सुंदर आँखों वाली बहू मुसलिम परिवार में घुस गई है जैसे कोई महिला कर सकती है। यह ‘लव जिहाद’ नहीं है, यह मुसलमानों की घर वापसी है। लेकिन ट्रोल करने वाले सिर्फ मुसलिम-विरोधी ही नहीं, महिला-विरोधी भी हैं। उनका मानना है कि बेटी 'दे देना' हार है। वे यह भूल जाते हैं कि वह मुसलिम परिवार एक हिन्दू रीति मना रहा है। मेरा परिवार ईद और दीवाली मनाता है, जिसमें दोनों परिवारों के लोग शामिल होते हैं। हर किसी को खाना, रंग खेलना और उत्सव के कपड़े पहनना पसंद है।

मेरी माँ अभी भी हिन्दू हैं, मेरे पिता मुसलमान हैं। उनमें से कोई धार्मिक रीति-रिवाज नहीं करता है, पर सांस्कृतिक उत्सवों का आनंद दोनों ही लेते हैं। शुरू में मेरी माँ को बूढ़ी महिलाओं ने समझाया, वह मुसलमान बन जाये तो उसे जन्नत मिलेगी। पर वह हंसती और कहती, 'मैं भौतिकतावादी हूं, मुझे बताएं कि इसी जिंदगी में यहीं और अभी ही मुझे क्या मिलने वाला है।' 

दरअसल, वह अपनी पहचान बचाए रखने के लिए शादी के कुछ महीने बाद से बड़ी बिंदी लगाने लगीं। साड़ी पहनती थीं। वह अर्थशास्त्र पढ़ाती थीं और अपनी छात्राओं की तरह युवा लगती थीं। उन्होंने अपना क्रांतिकारी मिशन जारी रखा और हम लोगों का पालन-पोषण वैकल्पिक मूल्यों के साथ किया।

विचार से और ख़बरें

उन्हें उलझन थी कि उनके बच्चे बढ़ते हुए सांप्रदायिक माहौल से कैसे निपटेंगे। उन्होंने हमें ऐसी दुनिया देने की कोशिश की जिसमें रूसी किताबें और मिले-जुले परिवार और दोस्त थे। इसके बावजूद वह हमें दंगों और दुश्मनी और उसकी चपेट में आने से नहीं बचा सकीं। पर इससे हमें ताक़त मिली। हम विदेश गए, पढ़ाई और किताबों का आनंद उठाया और अपने परिवार के उस मिश्रण में कुछ नया जोड़ा।

लोगों को होती है हैरानी

मेरे भाई ने हैनान प्रांत की एक चीनी महिला से शादी की और मैंने तेलंगाना के एक रेड्डी को जीवन साथी चुना। मैंने नागालैंड के मोन से एक बेटी को गोद लिया। अब जब ये सभी बच्चे पार्क में खेलते हैं- अर्द्ध चीनी लड़का, मराठी-तेलगु लड़की और एक छोटी नागा योद्धा- लोग हमें अचरज से देखते हैं। परिवार में लोग अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी, तेलगु, मैन्डरिन और कोंकणी बोलते हैं।

और जब एक ही तरह की परिकल्पना वाले सामान्य लोग हमसे पूछते हैं, 'यह कैसे', तो हम बस मुस्करा देते हैं।

ट्रोल करने वालों को हमारा परिवार ही जवाब है। हम अस्तित्व में हैं। मिश्रित नस्ल न कि केवल जीवित है बल्कि फल-फूल रही है। और आप सबको निहायत ही बोरिंग बना देती है।

(द इंडियन एक्सप्रेस से साभार)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
समीना दलवई

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें