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अमेरिका के छोड़े हथियारों के ज़खीरे से अफ़ग़ान शांति पर संकट!

अमेरिकी वापसी के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में शांति की उम्मीद कम क्यों दिखाई देती है? आख़िर क्यों कई गुटों में भिड़ंत की आशंका है? हथियारों का जो ज़खीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, क्या वह कई नए हिंसक गुट नहीं पैदा कर देगा?
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अब लगभग 20 साल बाद अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से वापस लौट गया। विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र आज किस मुद्रा में है? गालिब के शब्दों में ‘बड़े बेआबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले।’ यदि अमेरिका की तालिबान से सांठ-गांठ नहीं होती तो काबुल छोड़ते वक़्त हज़ारों अमेरिकी मारे जाते जैसे कि 1842 में अंग्रेजों की फौज के 16000 सैनिकों में से एक के सिवाय सब मारे गए थे। 

अब तालिबान का ताज़ा बयान है कि काबुल हवाई अड्डे पर 13 अमेरिकी इसलिए मारे गए कि वे विदेशी थे। विदेशी फौज की वापसी के बाद खुरासान गिरोह इस तरह के हमले क्यों करेगा? यदि ऐसा हो जाए तो क्या बात है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि अब अमेरिकियों के चले जाने के बावजूद इस तरह के हमले बंद हो जाएंगे।

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इसलामिक राज्य या अल-क़ायदा या खुरासान गिरोह और तालिबान के बीच सैद्धांतिक मतभेद तो हैं ही, सत्ता की लड़ाई भी है। खुरासानी गिरोह के लोग अमेरिकियों के साथ तालिबान की सांठ-गांठ के धुर विरोधी रहे हैं। वे काबुल से तालिबान को भगाने के लिए ज़मीन-आसमान एक कर देंगे। तालिबान सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान में इसलामी राज्य चाहते हैं लेकिन खुरासानी गिरोह अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और म्यांमार तक इसलामी राज्य फैलाना चाहते हैं। 

वे पाकिस्तान से भी काफ़ी खफा हैं। वे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की तरह इसलामाबाद को भी अपना शत्रु समझते हैं। उन्होंने और तहरीक के लोगों ने पाकिस्तान में बड़े-बड़े हमलों को अंजाम दिया है। वे तालिबान को भी काबुल में चैन से क्यों बैठने देंगे? 

तालिबान ने फ़िलहाल शिनच्यांग के चीनी उइगर मुसलमानों से हाथ धो लिये हैं, कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा बता दिया है और मध्य एशिया के मुसलिम गणतंत्रों में इसलामी तत्वों के दमन से भी हाथ धो लिये हैं। इसीलिए अब तालिबान और खुरासानियों में जमकर ठनने की आशंका है।

इसके अलावा तालिबान भी कई गिरोहों (शूरा) में बंटे हुए हैं। वे आपस में भिड़ सकते हैं। यह भिड़ंत अफ़ग़ानिस्तान की संकटग्रस्त आर्थिक स्थिति को भयावह बना सकती है। हथियारों का जो ज़खीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, वह कई नए हिंसक गुट पैदा कर देगा। 

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अमेरिका तो इसी से खुश है कि अफ़ग़ानिस्तान से उसका पिंड छूट गया। वह लगभग इसी तरह कोरिया, वियतनाम, लेबनान, लीब्या, एराक, सोमालिया आदि देशों को अधर में लटकता छोड़कर भागा है। भारत अभी अमेरिका के साथ सटा हुआ है लेकिन उसे उसकी पुरानी हरकतों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता लाने में जो भूमिका भारत और पाकिस्तान मिलकर अदा कर सकते हैं, वह कोई नहीं कर सकता।
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