किसी देश का कोई नागरिक अपना या अपने बच्चों का नाम क्या रखे, इस पर तरह-तरह की पाबंदियाँ कई देशों में हैं। सउदी अरब ने तो ऐसे 51 नामों की सूची जारी कर रखी है, जिन्हें उसका कोई नागरिक नहीं रख सकता। वह सुन्नी राष्ट्र है। इसीलिए कई शिया नामों पर वहाँ प्रतिबंध है। लातीनी अमेरिका के कुछ राष्ट्र ऐसे हैं, जिनमें आप अपनी बेटी का नाम मरियम (ईसा मसीह की माँ) तो रख सकते हैं लेकिन बेटे का नाम जिसस (मसीह) नहीं रख सकते। तुर्की में कुर्द लोग बग़ावती माने जाते हैं। उनके नाम के साथ आप आरमेनियाई प्रत्यय (इयान) आदि नहीं लगा सकते। इस्राइल में काफ़ी समय तक यह परंपरा चलती रही कि रुस और पूर्वी यूरोप से आनेवाले यहूदियों के नाम हिब्रू भाषा में रखे जाते थे।
तुर्की में भी राष्ट्रवाद ने इतना ज़ोर मारा था कि अरबी, फारसी, फ्रांसीसी नामों की बजाय नागरिकों, मोहल्लों और बाज़ारों के नामों का तुर्कीकरण किया गया था। भारत के आज़ाद होने के बाद बहुत से शहरों, मोहल्लों, सड़कों, स्मारकों, बाग़ों और भवनों के अंग्रेज़ी नामों को हटाकर भारतीय नामों को रखा गया है। ईरान में जब से आयतुल्लाहों का राज हुआ है, ईरान के शाहों और बदशाहों के नामों को दरी के नीचे सरका दिया गया है। अल्जीरिया के मुसलिम शासकों से लड़नेवाली यहूदी योद्धा बेरबरा रानी का वहाँ अब कोई नाम भी नहीं लेता। चीन के शिनच्यांग (सिंक्यांग) प्रांत में उइगर मुसलमान रहते हैं। उन्हें भी कई इसलामी नाम नहीं रखने दिए जाते हैं।
मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में इसलामी या अरबी नामों पर प्रतिबंध है। जब तक वह सोवियत संघ का हिस्सा था, वहाँ के लोग अपने नाम रुसी शैली में रखते थे लेकिन ज्यों ही वह राष्ट्र स्वतंत्र हुआ, वहाँ इसलाम धर्म और अरबी संस्कृति ने ज़बर्दस्त आकर्षण पैदा किया लेकिन अब ताजिक सरकार ने ऐसे नाम रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है और कहा कि आप ताजिक भाषा और संस्कृति के नाम क्यों नहीं रखते? आप अरबों की नकल क्यों करते हैं? वैसे, इंडोनेशिया के मुसलमान अपने नाम प्रायः संस्कृत भाषा में रखते हैं और अपने साहित्य और कला-कर्म में भारतीय नायकों का गुणानुवाद करते हैं लेकिन वे पक्के मुसलमान हैं।
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