नारायण राणे कभी भी महान या कर्तव्यनिष्ठ नहीं थे। शिव सेना में रहते हुए उनका नाम हुआ। वह भी सत्ता की सीढ़ियां तेजी से चढ़ने के चलते ही। यह सब शिव सेना की इन चार अक्षरों की कमाई है। राणे द्वारा शिव सेना छोड़ने के बाद शिव सेना ने उन्हें लोकसभा व विधानसभा मिलाकर चार बार बुरी तरह से पराजित किया।
इसलिए राणे का अगर थोड़े में वर्णन करना है तो छेद पड़े गुब्बारे जैसा किया जा सकता है। इस गुब्बारे में कितनी भी हवा भरकर उसे फुलाया जाए तब भी वो ऊपर नहीं जाएगा।
लेकिन बीजेपी ने इस छेद पड़े गुब्बारे को फुलाकर दिखाना तय किया है। राणे को कुछ लोग टर्र-टर्र करने वाले मेंढक की भी उपमा देते हैं। राणे मेंढक हों या छेद पड़ा गुब्बारा, लेकिन राणे कौन? ये उन्होंने स्वयं ही घोषित किया, ‘मैं नॉर्मल इंसान नहीं’, ऐसा उन्होंने घोषित किया। फिर वे अॅबनॉर्मल हैं क्या ये जांचना होगा।
मोदी कैबिनेट में राणे अति सूक्ष्म विभाग के लघु उद्योग मंत्री हैं। प्रधानमंत्री स्वयं को अत्यंत ‘नॉर्मल’ इंसान मानते हैं। वे स्वयं को फकीर या प्रधान सेवक मानते हैं। ये उनकी विनम्रता है। लेकिन राणे कहते हैं, ‘मैं नॉर्मल नहीं। इसलिए कोई भी अपराध किया तो मैं कानून के ऊपर हूं।’
राणे व संस्कार का संबंध कभी भी नहीं था। इसलिए केंद्रीय मंत्री पद का चोला ओढ़कर भी राणे किसी छपरी गैंगस्टर जैसा बर्ताव कर रहे हैं।
बीजेपी का फिलहाल जो कायाकल्प शुरू हुआ है उससे इस नवनिर्मित राणे जैसों को मान-सम्मान मिल रहा है। इसीलिए ही राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से ‘मारपीट’ करने की बेलगाम भाषा कही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के संदर्भ में ये भाषा इस्तेमाल करना मतलब 105 हुतात्माओं की भावनाओं को लात मारने जैसा ही है।
राणे ने महाराष्ट्र को लात मारी व उनके नए नेता देवेंद्र फडणवीस और चंद्रकांत पाटिल राणे के बेलगाम बयान का समर्थन कर रहे हैं। राणे को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, ऐसी लीपापोती करने लगे हैं। फडणवीस-पाटिल के गले में राणे नाम का फटा हुआ गुब्बारा अटक गया है। इसलिए कहा भी नहीं जा सकता है, सहा भी नहीं जा सकता, ऐसी उनकी अवस्था हो गई है।
ऐसे समय में संस्कारी राजनीतिज्ञ महाराष्ट्र से माफी मांगकर छूट गए होते। क्योंकि महाराष्ट्र की अस्मिता के सामने कोई भी बड़ा नहीं है। पर बीजेपी के लिए महाराष्ट्र की अस्मिता और मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा यह गौण विषय है।
महाराष्ट्र में फिलहाल बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों का जनआशीर्वाद नाम की महामारी का फेरा शुरू है। वो मजाक का ही विषय बन गया है। एक मंत्री दानवे, राहुल गांधी पर टिप्पणी करने के चक्कर में मोदी को ही बैल की उपमा देकर गए, तो दूसरे सूक्ष्म विभाग के लघु उद्योग मंत्री शिव सेना व मुख्यमंत्री ठाकरे को लेकर बेलगाम भाषा बोल रहे हैं।
‘महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के कान के नीचे बजाऊंगा।’ इस भाषा में नारायण राणे ने मुख्यमंत्री की इस संस्था का उद्धार किया है। मुख्यमंत्री पद ये व्यक्ति नहीं संविधान व संसदीय लोकतंत्र के कवच वाली संस्था है। तुम व्यक्ति पर टिप्पणी करो। तुम्हारे भौंकने की ओर कोई मुड़कर भी नहीं देखेगा। लेकिन राज्य का नेतृत्व करने वाले नेता पर शारीरिक हमला करने की भाषा करने वाला इंसान महाराष्ट्र की मिट्टी में समा जाए, ऐसी वेदना सभी की है। ऐसे निकम्मे को बीजेपी द्वारा ‘गोद’ में लेना ये उनके संस्कार का अधोपतन है!
शरद पवार जैसे लोकप्रिय नेता पर निचले स्तर की भाषा में टिप्पणी करने वाले लोगों को भी बीजेपी ने उधारी पर लिया है और ये लोग पवार पर भी अनर्गल हमला कर रहे हैं। एक बंदर के हाथ में दारू की बोतल थी। अब दूसरा बंदर भी बोतल लेकर कूद रहा है।
पीठ में खंजर घोंपा
नारायण राणे द्वारा मुख्यमंत्री ठाकरे पर शारीरिक हमला करने की भाषा करने से महाराष्ट्र के संयम का बांध टूट गया है। इस मामूली व्यक्ति को शिव सेना ने मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया, सर्वोच्च पद दिया। लेकिन बाद में ये महाशय शिव सेना की पीठ में खंजर घोंपकर चला गया। शिव सेना छोड़कर गए 20 साल हो गए फिर भी इस महाशय का शिव सेना द्वेष का तुनतुना चालू ही है। इस काल में उसने गिरगिट को भी शर्म आए, ऐसा रंग बदला। उसका मकसद एक ही है, शिव सेना व ठाकरे पर कीचड़ उछालना।
राणे जैसे लोग आघाड़ी सरकार की स्थापना होने के बाद से ही ठाकरे सरकार गिराने व गिराने की तारीख दे रहे थे। लेकिन सरकार दो वर्ष का कालखंड पूरा कर रही है और संकट के समय भी लोकप्रिय साबित हुई है।
देश के पहले पांच कार्य सम्राट मुख्यमंत्रियों में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री आए इसकी खुशी सभी को है। लेकिन बीजेपी के बाहरी और धर्मांतरित काबुल में तालिबानी विकृति की तरह मारामारी की भाषा प्रयोग करने लगे हैं।
शिव सेना भवन पर हमला करने की डींग हवा में मिश्रित हो रही थी तभी कणकवली के चारों खाने चित नेताओं ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर हाथ डालने की भाषा की है। ये छत्रपति शिवराय के महाराष्ट्र का अपमान है। बीजेपी का इस बेलगाम वक्तव्य पर क्या कहना है?
‘किया उसका हो गया मेरा’ ऐसा ही उनका दशावतार इस मौके पर हुआ है। केंद्रीय मंत्री पद का चोला ओढ़कर भी मूल स्वभाव नहीं जा रहा है। अब बीजेपी निश्चित क्या करेगी? कि इस बार भी हाथ ऊपर करके हमारा कुछ नहीं? महाराष्ट्र की सत्ता हाथ से जाने के बाद से ही बीजेपी वालों का दिमाग बेकाम हो गया है। उनका बढ़-चढ़कर बोलना शुरू ही है।
इस बड़बोलेपन की ओर जनता के ध्यान न देने के चलते ‘महात्मा’ नारोबा जैसे किराए के लोग शिव सेना पर छोड़े जा रहे हैं। इन किराए के लोगों ने ही बीजेपी को नंगा करके छोड़ दिया है और अब मुंह छिपाकर घूमने की नौबत उन पर आ गई है।
केंद्रीय मंत्री नारोबा राणे ने शपथ ग्रहण करने के बाद से जो दीप जलाया व अक्ल चलाई है उससे केंद्रीय सरकार की गर्दन शर्म से झुक गई है। प्रधानमंत्री मोदी के जांघ से जांघ मिलाकर बैठने वाले ‘महात्मा’ नारोबा राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर हमला करने की भाषा बोली।
राणे का पूर्व इतिहास देखें तो उनका विधान मोदी, शाह को गंभीरता से लेना चाहिए। प्रधानमंत्री के संदर्भ में कोई ऐसा विधान किया होता तो उसे देशद्रोह का आरोप लगाकर जेल में ठूंस दिया होता। ‘नारोबा’ राणे का गुनाह उसी तरह का है।
महाराष्ट्र में कानून का ही राज्य है और एक मर्यादा के बाहर जाकर इस बेलगाम बादशाह को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बीजेपी को इस बेलगाम बादशाह की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
मुख्यमंत्री पर हाथ डालने की भाषा बोलने वाला कोई भी हो। उनका हाथ फिलहाल तो कानूनी मार्ग से उखड़े तो ही अच्छा! प्रधानमंत्री मोदी को केवल मारने की साजिश रचने (?) के आरोप में कुछ विचारवानों को फडणवीस सरकार ने जेल में सड़ाया है।
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