बसवराज बोम्मई
भाजपा - शिगगांव
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हिंदुस्तान की सियासत के बेहद अनुभवी नेता शरद पवार की शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संग हुई मुलाक़ात से राजनीतिक विश्लेषकों के कान खड़े हो गए हैं। सब यही जानना चाहते हैं कि पवार और मोदी के बीच में आख़िर क्या बात हुई होगी। इसका विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं।
बीते कुछ दिनों से दो बातों पर चर्चा हो रही है। पहली यह कि क्या एनसीपी महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकती है और दूसरी यह कि ईडी लगातार एनसीपी के बड़े नेताओं पर शिकंजा क्यों कस रही है।
एक और बात है कि पवार राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं लेकिन पवार इससे ख़ुद ही मना कर चुके हैं।हालांकि उन्होंने यह बयान विपक्ष का उम्मीदवार बनने की संभावना के तौर पर दिया था अगर वे एनडीए के ही उम्मीदवार बन जाएं तो कौन भला इस बात से इनकार कर सकता है।
इन दोनों बातों पर आगे बढ़ने से पहले यहां याद दिलाना ज़रूरी होगा कि इस साल 26 मार्च को शरद पवार की गृह मंत्री अमित शाह के साथ अहमदाबाद में अचानक एक मुलाक़ात हुई थी। इस मुलाक़ात का वक़्त पहले से तय नहीं था इसलिए इसे शक की नज़रों से देखा गया।
मुलाक़ात की बात को ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह ने भी माना और पत्रकारों के इस बारे में पूछने पर कहा था कि सब बातों को सावर्जनिक नहीं किया जा सकता है। महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकात दादा पाटिल ने भी कहा था कि हां, दोनों नेता मिले थे।
शाह और पवार की इस मुलाक़ात को वरिष्ठ बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस, राव साहब दानवे के बयानों से जोड़कर देखा गया था। क्योंकि उसके बाद इन दोनों नेताओं के बयान आए थे कि महाराष्ट्र में बीजेपी जल्द ही सरकार बनाएगी। कुछ ही दिन पहले जब फडणवीस दिल्ली में पवार से मिले तो एक बार फिर चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया। इसलिए अब पवार और मोदी की मुलाक़ात की ख़बर को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
इसके अलावा दोनों नेताओं की मुलाक़ात अनायास ही हुई है या तो पवार ने पहले कहा होता कि वे फलां तारीख़ को दिल्ली जाकर पीएम मोदी से मिलेंगे। लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। इसलिए शक पैदा होना लाज़िमी है।
अब आते हैं पहली बात पर कि क्या एनसीपी, बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकती है। इसे ऐसे समझना होगा कि बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता अपने हाथ में लेने के लिए बेकरार है। वह जानती है कि महा विकास आघाडी के ये तीनों दल जब तक साथ रहेंगे, उसका सत्ता में लौटना मुश्किल है।
अगले साल की शुरुआत में बृहन्मुंबई महा नगरपालिका के भी चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए अकेले इन तीनों दलों के सामने लड़ना भारी पड़ेगा।
दूसरी बात बेहद अहम है। वह यह कि एनसीपी के नेताओं पर ईडी का शिकंजा कस रहा है। एनसीपी के चार बड़े नेता और उनके रिश्तेदार ईडी के रडार पर हैं।
ईडी ने कुछ दिन पहले राज्य के बड़े नेता एकनाथ खडसे के दामाद गिरीश चौधरी को गिरफ़्तार कर लिया था और फिर खडसे से 9 घंटे से भी ज़्यादा देर तक पूछताछ की थी। खडसे बीजेपी से ही एनसीपी में आए थे।
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने पिछले हफ़्ते महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और एनसीपी के नेता नवाब मलिक के दामाद समीर ख़ान सहित छह लोगों के ख़िलाफ़ ड्रग्स मामले में चार्जशीट दायर की थी। समीर को इस साल जनवरी में गिरफ़्तार किया गया था।
ईडी ने शुक्रवार को पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और उनकी पत्नी की 4.20 करोड़ की संपत्तियों को जब्त कर लिया। ईडी उनके बयान दर्ज कराने के लिए लगातार समन भी भेज चुकी थी लेकिन वह इस जांच एजेंसी के सामने पेश नहीं हुए थे।
महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के द्वारा 100 करोड़ रुपये की वसूली के आरोपों के मामले में ईडी ने बीते महीने अनिल देशमुख और उनके निजी सहायकों के घरों पर छापेमारी की थी और 26 जून को देशमुख के निजी सचिव संजीव पलांडे और निजी सहायक कुंदन शिंदे को गिरफ्तार कर लिया था।
1 जुलाई को ईडी ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससीबी) घोटाले के मामले में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार की 65 करोड़ रुपये की संपत्तियों को जब्त कर लिया था। इन संपत्तियों में ज़मीन, इमारत, सतारा में लगी सहकारी शुगर मिल शामिल हैं।
तो क्या शरद पवार अपने इन चारों नेताओं पर कस रहे ईडी के शिकंजे के कारण परेशान हैं। ये चारों ही नेता एनसीपी की रीढ़ हैं। पवार उम्रदराज़ हो चुके हैं और उन्हें पार्टी को चलाने के लिए अजित पवार और इन नेताओं के साथ की सख़्त ज़रूरत है।
2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के बाद जब बीजेपी-शिव सेना अलग हो गए थे तो महा विकास आघाडी के इन तीनों दलों ने यह भरोसा जनता को दिलाया था कि ये पांच साल तक सरकार चलाएंगे। ऐसे में अगर उससे पहले कोई टूट होती है तो हमें मुख्यमंत्री और शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का वह बयान याद रखना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर अकेले चुनाव लड़ा तो जनता चप्पलों से पीटेगी।
अंत में एक बात कि अगर पवार एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन जाते हैं, बीजेपी-एनसीपी सरकार बना लेते हैं (एनसीपी को तब सत्ता में ज़्यादा भागीदारी मिलेगी क्योंकि यहां तीन के बजाए दो दल होंगे) और एनसीपी के सारे नेता भी जांच एजेंसियों के चंगुल से छूट जाते हैं तो भला यह सौदा क्या बुरा है।
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