loader

विधानसभा चुनावों में मोदी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव नहीं लड़ेगी बीजेपी

संघ का हाईकमान मानता है कि राज्यों के विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय नेताओं के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखने से मोदी की छवि को नुकसान हुआ है और उनके विरोधी बेवजह उन्हें निशाना बनाते हैं। 
विजय त्रिवेदी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास इस वक्त दो लक्ष्य हैं- पहला साल 2024 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘हैट-ट्रिक’ और दूसरा साल 2025 में संघ का शताब्दी वर्ष मनाना यानी ‘राष्ट्र को परम वैभव’ तक पहुंचाना। कुछ लोग इसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ के सपने का नाम भी देते हैं, लेकिन संघ के नजरिए में उसका अर्थ सांस्कृतिक है, संवैधानिक नहीं। 

संघ की अहम बैठक 

आरएसएस की पिछले सप्ताह दिल्ली में हुई महत्वपूर्ण बैठक में इस मंज़िल को हासिल करने के रास्तों पर विचार मंथन शुरू किया गया और उसकी पहली कड़ी में राजनीतिक तौर पर दो बातें थीं- पहला पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की करारी हार पर चिंता और मंथन और दूसरा अगले साल होने वाला यूपी विधानसभा चुनाव। संघ ने कोशिश शुरू की है पश्चिम बंगाल में हार से उत्तर प्रदेश में जीत का रास्ता निकालने की।

ताज़ा ख़बरें

मोदी-योगी की कुश्ती 

राष्ट्रीय राजनीति और खासतौर से भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच विवाद की खबरों ने आजकल विपक्षी नेताओं और मोदी विरोधी लोगों को मनोरंजन का साधन दे रखा है और जब यह खबर आई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विधानसभा चुनावों में योगी के चेहरे के साथ ही जाने का फ़ैसला किया है तो कुछ लोगों को लगने लगा कि अब संघ प्रधानमंत्री मोदी से नाराज़ है या फिर मोदी इस राजनीतिक बाज़ी को जीत नहीं पाए हैं। 

उन्हें यह समझ लेना फायदेमंद हो सकता है कि आरएसएस के लिए भारतीय राजनीति का मौजूदा चेहरा नरेन्द्र मोदी ही हैं और संघ ना केवल उनके साथ मजबूती से खड़ा है बल्कि हर कोई राजनीतिक फ़ैसला मोदी के साल 2024 के आम चुनाव को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। 

आरएसएस की पूरी ताकत साल 2024 में मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने की है। साफ है कि पिछले सात साल में मोदी आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल रहे हैं और इसके साथ ही उन्होंने अपनी इमेज का मेकओवर भी किया है।

विकास पुरूष की छवि 

मोदी सिर्फ कट्टर ‘हिन्दू छवि वाले नेता’ नहीं हैं, बल्कि उनके साथ विकास के रास्ते पर चलने वाले नेता की छवि भी जुड़ गई है, भले ही विरोधी इसे मानने को तैयार नहीं हो। इस मामले में मोदी अपने राजनीतिक गुरू लालकृष्ण आडवाणी से आगे निकल गए हैं और वे राष्ट्रीय स्तर पर विकास पुरूष की भूमिका में दिखाई देते हैं जबकि पार्टी कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों के लिए हिन्दुत्व को आगे बढ़ाने वाले। 

संघ के एजेंडे पर सरकार

मोदी सरकार ने पिछले सात साल में आरएसएस के सबसे प्रमुख दो एजेंडे राम मंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने को अमली जामा पहनाया है वो भी बिना किसी बड़े विवाद के। राम मंदिर निर्माण लंबी कानूनी लड़ाई और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद शुरू हुआ तो धारा 370 हटाने के लिए मोदी ने संसद की मुहर लगाई। इसके साथ ही तीन तलाक पर कानून बनाना यूनिफार्म सिविल कोड के रास्ते पर आगे बढ़ने वाला कदम है।

Yogi will be BJP face in UP election 2022 - Satya Hindi

क्षेत्रीय नेता होंगे चेहरे 

बताया जाता है कि दिल्ली में हुई आरएसएस की बैठक में यूपी चुनावों में योगी आदित्यनाथ के साथ आगे बढ़ने का फ़ैसला किया गया। साथ ही तय किया गया कि अगले साल होने वाले सभी विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी चेहरा नहीं होंगे, बल्कि राज्यों के नेताओं के चेहरों के साथ मैदान में उतरा जाएगा लेकिन प्रचार और रैलियों में मोदी का चेहरा प्रमुख रहेगा। इसकी वजह यह है कि संघ का हाईकमान मानता है कि राज्यों के विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय नेताओं के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखने से मोदी की छवि को नुकसान हुआ है और उनके विरोधी बेवजह उन्हें निशाना बनाते हैं। 

देखिए, यूपी चुनाव पर चर्चा- 

बंगाल चुनाव की समीक्षा

इस अहम बैठक में पश्चिम बंगाल के चुनावों को लेकर चिंतन और समीक्षा की गई। संघ हाईकमान का मानना है कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में ‘ममता-बनाम मोदी’ की रणनीति से नुकसान हुआ और इसमें चुनाव हारने से ज़्यादा अहम यह है कि राजनीतिक विरोधियों को प्रधानमंत्री मोदी पर बार-बार हमला करने का मौका मिला, इससे उनकी इमेज को नुकसान हुआ है। 

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस ने मोदी की इमेज मुसलमान विरोधी बनाने की रणनीति अपनाई, जिससे मुसलमान वोटर एकजुट हो गए और ज़्यादातर मुसलमानों ने तृणमूल कांग्रेस को एकमुश्त वोट देकर चुनाव नतीजों को एकतरफा कर दिया। कांग्रेस की चुप्पी ने भी ममता की मदद की। इससे पहले भी बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ और फिर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ भी इस रणनीति से कोई फ़ायदा नहीं हुआ। 

Yogi will be BJP face in UP election 2022 - Satya Hindi

यूपी में मुसलिम असरदार

पश्चिम बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश में भी मुसलमान आबादी काफी है और वे करीब 75 से 100 सीटों के चुनावी नतीजों पर असर डाल सकते हैं। संघ का मानना है कि यूपी में मोदी को चेहरा बनाने पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस फिर से मुसलमानों को एकजुट करने में कामयाब हो सकते हैं। बैठक में कहा गया कि खासतौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश में योगी की इमेज मुसलमान विरोधी नहीं है और गोरखपुर के साथ जुड़े इलाकों में मुसलमानों और पिछड़ों का गोरखनाथ मंदिर पर भरोसा है। 

मुख्यमंत्री बनने से पहले तक योगी आदित्यनाथ मंदिर के महंत के तौर पर स्थानीय मुसलमानों के विवाद मंदिर में बैठकर सुलझाते और उनकी मदद भी करते रहे हैं। मकर सक्रांति पर मंदिर में लगने वाले खिचड़ी मेला में ज्यादातर दुकानें मुसलिम व्यवसायियों की ही होती हैं। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हालात उलट हैं और वहां योगी की मुसलिम विरोधी छवि का नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

Yogi will be BJP face in UP election 2022 - Satya Hindi

मुसलिम उम्मीदवार उतारेगी बीजेपी! 

सूत्रों के मुताबिक़, एक और अहम बात पर गंभीरता से विचार किया गया है कि इस बार यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी मुसलिम उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारेगी, इससे भी उसकी मुसलिम विरोधी छवि बनाने का मौका विरोधियों को नहीं मिलेगा, लेकिन इस पर अंतिम निर्णय बीजेपी को करना है। 

पिछले चुनाव में बीजेपी ने यूपी में एक भी मुसलिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था। मोदी के साथ-साथ संघ भी खुद को मुसलिम विरोधी छवि से दूर करना चाहता है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने साल 2018 में दिल्ली में अपनी व्याख्यानमाला में कहा था कि “संघ मानता है कि बिना मुसलमानों के हिंदुत्व अधूरा है”। 

यूपी विधानसभा के चुनाव साल 2024 के आम चुनावों के ‘सेमीफाइनल’ हैं यानी इन्हें हर हाल में जीतना ज़रूरी है। 

विधानसभा चुनावों से पहले योगी को हटाने की बीजेपी के बहुत से विधायकों की मांग को भी इसलिए नकार दिया गया है क्योंकि संघ ‘तोड़ने में नहीं’ ‘जोड़ने’ में भरोसा करता है, इसलिए योगी का साथ छोड़ने की संभावना बहुत कम है, जब तक कि पानी सिर से ना गुज़र जाए।

संघ के निर्देश पर ही बीजेपी से नाराज़ चल रही अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल से फिर से बात आगे बढ़ाई गई है। कुछ और छोटे दलों के नेताओं को शामिल किया जा सकता है। दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट देना भी उसी रणनीति का हिस्सा है। 

बाहरियों को टिकट 

पिछली बार भी करीब ऐसे पचास लोगों को टिकट दिए गए थे जो दूसरी पार्टी छोड़कर चुनावों के ऐन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। यह प्रयोग इससे पहले पिछली बार के उत्तराखंड के चुनावों, फिर यूपी और त्रिपुरा, असम चुनाव में भी सफल रहा था। साल 2014 और 2019 के आम चुनावों में भी इस प्रयोग की सफलता की दर काफी रही। पश्चिम बंगाल में बीजेपी भले ही सरकार नहीं बना पाई हो, लेकिन बाहरी उम्मीदवारों ने बीजेपी के आंकड़े को 77 तक पहुंचाने में बहुत मदद की। 

राजनीति से और ख़बरें

एनसीपी को साथ लाएगी बीजेपी? 

आम चुनावों से पहले बीजेपी और संघ की नज़र महाराष्ट्र में एनसीपी को अपने साथ लाने की है और ओड़िशा के नवीन पटनायक को भी वो नाराज़ करके नहीं रखना चाहती। यूं तो अभी साल 2022 में राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं, सेन्ट्रल विस्टा के नक्शे के बीच भी रायसीना हिल पर यह खूबसूरत इमारत अब भी बहुत से लोगों को ललचाती है और नए राजनीतिक समीकरणों की बहुत सी कहानियां इसके इतिहास में सिमटी हुई हैं।

आरएसएस का मानना है कि नाराज़ होकर बीजेपी छोड़ने वाले नेताओं का भले ही खुद का कोई राजनीतिक भविष्य नहीं रहता हो, लेकिन वो पार्टी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। कुछ लोगों को यह चिंता फिलहाल योगी आदित्यनाथ को लेकर भी है। 

वैसे एक ज़माने तक संघ परिवार का बड़ा एजेंडा ‘घर वापसी’ रहा है। कहा भी जाता है कि ‘सुबह का भूला शाम को घर आ जाए’ तो उसे भूला नहीं कहते, क्या आपको अब कल्याण सिंह, येदियुरप्पा और उमा भारती याद आ रहे हैं?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विजय त्रिवेदी

अपनी राय बतायें

राजनीति से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें