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वर्षों साथ रहने के बाद बीजेपी के ख़िलाफ़ मोर्चा बनाने की कोशिश में अकाली दल

शिवसेना के बाद सबसे लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी के साथ रहने वाले अकाली दल ने अलग रास्ता तो चुन ही लिया है, उसने सत्तारूढ़ दल के ख़िलाफ़ एक बड़े और नए राजनीतिक गठबंधन बनाने का संकेत देकर राजनीति में दिलचस्प मोड़ ला दिया है। 
पिछले कुछ समय में ही बीजेपी का साथ छोड़ने वाला यह तीसरा दल है। इन दलों के अलग-अलग राज्यों में अपना राजनीतिक बड़ा कद है और जो राज्य की सत्ता में रह चुके हैं। आंध्र प्रदेश में लंबे समय तक राज करने वाली तेलगु देशम पार्टी ने भी बीजेपी को छोड़ कर अलग रास्ता अपना लिया है।
कृषि विधेयक के मुद्दे पर बीजेपी का साथ छोड़ने वाले अकाली दल ने तीन दिनों में पंजाब में तीन जगह किसानों की बड़ी सभाएं - रोपड़, होशियारपुर और फगवाड़ा में की। 
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बीजेपी के ख़िलाफ़

शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने किसानों की सभा में सभी राजनीतिक दलों से अपील कि वे एकजुट हो जाएं, अपने मतभेद भुला दें और बीजेपी की जनविरोधी और किसान विरोधी नीतियों का विरोध करें। उन्होंने कहा, 

'किसानों की बदहाली का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। नए कृषि विधेयक जैसा कोई फ़ैसला जिसका बुरा असर किसानों की उपज पर पड़ता हो पूरी अर्थव्यवस्था को बदहाल कर सकता है और देश की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। इसलिए हम देश के बड़े राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं।'


सुखबीर सिंह बादल, नेता, शिरोमणि अकाली दल

पंजाब की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली आम आदमी पार्टी और सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अब तक अकाली दल का विरोध किया है। कृषि विधेयक के मुद्दे पर सरकार छोड़ने के फ़ैसले को भी कांग्रेस ने 'बहुत देर और बहुत थोड़ा किया गया काम' क़रार दिया।
इसे ध्यान में रखते हुए ही बादल ने आप और कांग्रेस का नाम लिए बग़ैर उनकी ओर इशारा करते हुए कहा, 

'हम किसानों के हित में किसी के साथ जुड़ कर या उसके नेतृत्व में संघर्ष कर सकते हैं। हम किसानों, आढतियों, मजदूरों और कृषि व्यापार से जुड़े लोगों के हितों के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।'


सुखबीर सिंह बादल, नेता, शिरोमणि अकाली दल

तृणमूल ने किया स्वागत

शिरोमणि अकाली दल के सरकार से बाहर निकलने का तृणमूल कांग्रेस ने स्वागत किया है। सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, 'हम बादल और शिरोमणि अकाली दल के किसानों पर लिए गए फ़ैसले का स्वागत करते हैं। किसानों के लिए संघर्ष करना तृणमूल के डीएनए में है। हम कृषि विधेयक 2020 का विरोध करते हैं क्योंकि इससे राज्यों की भूमिका, न्यूनतम समर्थन मूल्य, जन वितरण प्रणाली और फसल की खरीद पर बुरा असर पड़ेगा।'

शिवसेना ने की तारीफ

शिवसेना नेता संजय राउत ने शिरोमणि अकाली दल का समर्थन करते हुए कहा, 'किसानों के हित में एनडीए से नाता तोड़ लेने के शिरोमणि अकाली दल के फ़ैसले का शिवसेना स्वागत करती है।'
दूसरी ओर बादल ने चेतावनी दी कि उनके आन्दोलन को बदनाम करने और उसे तोड़ने के लिए कुछ लोग शांति भंग करने की कोशिश कर सकते हैं।  

विरोध प्रदर्शन

पंजाब के अलग-अलग इलाक़ों में छिटपुट विरोध प्रदर्शन चल रहा है। ज़्यादातर जगहों पर इन विरोध प्रदर्शनों के पीछ अकाली दल का स्थानीय नेतृत्व है। लेकिन कुछ जगहों पर किसानों का स्वत: स्फूर्त विरोध भी चल रहा है। इन किसानों की मांग है कि ये कृषि विधेयक रद्द किए जाएं।
दूसरी ओर, रविवार को राष्ट्रपति ने इन दोनों कृषि विधेयकों पर दस्तख़त कर सभी तरह के सवालों पर एक तरह से पूर्ण विराम लगा दिया है। उनके दस्तख़त कर देने के बाद ये क़ानून बन गए। अब इन्हें वापस नहीं लिया जा सकता। इनमें संशोधन ही किया जा सकता है और इसके लिए पूरी प्रक्रिया एक बार फिर अपनानी होगी, जिसकी फिलहाल कोई संभावना नज़र नहीं आती। लिहाज़ा, यह साफ है कि इस मुद्दे पर राजनीति भले हो, लेकिन इसे अब बदला नहीं जा सकता।
8 विपक्षी दलों ने सोमवार की शाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक चिट्ठी लिख कर उनसे गुजारिश की कि वह इन विधेयकों पर दस्तख़त न करें। इस ख़त में कहा गया था, 'हम अलग-अलग पार्टियों के लोग जो देश की अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं और भौगोलिक इलाक़ों से आते हैं, बहुत ही सम्मान से आपका ध्यान इस ओर खींचना चाहते हैं कि लोकतंत्र की पूर्ण रूप से हत्या की गई है और विडंबना यह है कि हत्या लोकतंत्र के सबसे सम्मानित मंदिर संसद में ही की गई है।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफाई दी थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य बरक़रार रहेगा। उन्होंने कहा था, 'मैं देश के प्रत्येक किसान को इस बात का भरोसा देता हूं कि एमएसपी की व्यवस्था जैसे पहले चली आ रही थी, वैसे ही चलती रहेगी। इसी तरह हर सीजन में सरकारी खरीद के लिए जिस तरह अभियान चलाया जाता है, वो भी पहले की तरह चलता रहेगा।'
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क़मर वहीद नक़वी

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