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राजस्थान संकट: अब कथित ऑडियो टेप में पैसे के लेन-देन पर बवाल

मुख्यमंत्री गहलोत ने इस संकट का पहला दौर जीत लिया है और उन्हें भरोसा है कि उनके पास सरकार को बचाने के लिए पर्याप्त विधायक हैं, लेकिन डर भी है कि उनके पाले के कुछ विधायक इधर-उधर हो सकते हैं, इसलिए उनकी कोशिश है कि सचिन पायलट समर्थक विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी जाए ताकि विधानसभा में कुल संख्या कम होने से उन्हें बहुमत हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं हो। 
विजय त्रिवेदी

राजस्थान के राजनीतिक आसमान में काले बादल गहराए हुए हैं। कभी-कभी बिजली चमक रही है तो कभी गड़गड़ाहट सुनाई देती है लेकिन बादल बरसे नहीं हैं। बरसेंगे तो आसमान साफ हो जाएगा। कल तक जो लोग कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ हाथ मिला कर फ़ोटो खिंचा रहे थे, वे अब एक-दूसरे के खिलाफ उन्हीं हाथों से कीचड़ उछाल रहे हैं। 

खादी के सफेद कुर्तों पर इस राजनीतिक कीचड़ के दाग गहरे होने लगे हैं और हवा में कथित ऑडियो टेप की आवाज़ गूँजने लगी है। 

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ अपने विधायकों के साथ मानेसर में डेरा डाले बैठे सचिन पायलट राजस्थान हाई कोर्ट पहुंच गए हैं तो दूसरी तरफ़ उनके समर्थक विधायकों के पैसे के लेन-देन के कथित ऑडियो वायरल हो रहे हैं। 

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इन ऑडियो का सच तो फ़ॉरेंसिक जांच के बाद पता चलेगा लेकिन इन तीन ऑडियो में सुनाई दे रहा है कि कोई व्यक्ति किसी विधायक से सरकार गिराने के लिए विधायक जुटाने और उसके लिए ज़रूरी पैसे का इंतज़ाम हो जाने की बात कर रहा है। साथ ही यह भरोसा भी दिला रहा है कि आपकी वरिष्ठता का ध्यान रखा जाएगा यानी आपको ज़्यादा पैसा दिया जाएगा। 

केंद्रीय मंत्री शेखावत की आवाज़?

आमतौर पर ऐसे राजनीतिक संकट के वक्त इस तरह के ऑडियो जारी होते रहते हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत काफी समय से यह आरोप लगाते रहे हैं कि उनके पास विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश के सबूत हैं। कथित ऑडियो टेप में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भंवर लाल शर्मा और बीजेपी नेता संजय जैन के बीच बातचीत होने का दावा किया गया है। हालांकि बीजेपी कई बार इस आरोप से इनकार कर चुकी है और कह चुकी है कि गहलोत सरकार का संकट कांग्रेस का अंदरूनी मामला है। 

कांग्रेस के आरोप पर केंद्रीय मंत्री शेखावत ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा है कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हैं और इन ऑडियो टेप में उनकी आवाज़ नहीं है। 

वैसे दोनों ही गुटों के विधायक काफी दिनों से होटलों में बंद हैं। कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि अगर सचिन पायलट बीजेपी का साथ नहीं मिलने का दावा करते हैं तो उन्हें हरियाणा में बीजेपी सरकार के मेहमान बने रहने के बजाय बाहर आ जाना चाहिए। सिब्बल ने कुछ दिन पहले ट्वीट कर कहा था कि कांग्रेस नेतृत्व कब जागेगा, जब अस्तबल से घोड़े भाग जाएंगे।

तैयारी में जुटे गहलोत

मुख्यमंत्री गहलोत ने इस संकट का पहला दौर जीत लिया है और उन्हें भरोसा है कि उनके पास सरकार को बचाने के लिए पर्याप्त विधायक हैं, लेकिन डर भी है कि उनके पाले के कुछ विधायक इधर-उधर हो सकते हैं, इसलिए उनकी कोशिश है कि सचिन पायलट समर्थक विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी जाए ताकि विधानसभा में कुल संख्या कम होने से उन्हें बहुमत हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं हो। 

राजस्थान सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी के आग्रह पर विधानसभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी ने बाग़ी विधायकों को नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब देने को कहा था, वरना उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।

विधानसभा अध्यक्ष ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद दस के पैरा दो का हवाला दिया है। इस आदेश के ख़िलाफ़ पायलट गुट ने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। उनकी तरफ से दिल्ली के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी जबकि गहलोत के लिए कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पैरवी कर रहे हैं।

गहलोत सरकार को उम्मीद है कि फैसला उनके पक्ष में होगा और विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी जाएगी।

तमिलनाडु का प्रकरण

इसको समझने के लिए आपको सितम्बर, 2017 में तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष पी. धनपाल के उस फैसले को जानना होगा जिसमें उन्होंने एआईएडीएमके के टी.टी.वी. दिनाकरन गुट के उन बागी 18 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी जिन्होंने मुख्यमंत्री पलानीस्वामी से अपना समर्थन वापस ले लिया था। इस फैसले से पहले डीएमके की तरफ से कपिल सिब्बल ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह आशंका जाहिर की थी कि मुख्यमंत्री पलानीस्वामी विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए इन विधायकों की सदस्यता रद्द कर सकते हैं। 

विधायकों की सदस्यता रद्द करने से विधानसभा में कुल संख्या 234 से घटकर 215 रह गई थी और एक सीट खाली थी। ऐसे में मुख्यमंत्री को बहुमत हासिल करने के लिए 108 विधायकों की ज़रूरत पड़ती तो वे आसानी से बहुमत साबित कर सकते थे। इन 18 विधायकों ने ना तो तब एआईडीएमके की सदस्यता छोड़ी थी और ना ही किसी दूसरी पार्टी में शामिल हुए थे।

विधानसभा अध्यक्ष ने अपने फ़ैसले में (डिसक्वालिफिकेशन ऑन ग्राउंड ऑफ डिफेक्शन) रूल्स 1986 का हवाला दिया था। लेकिन इन विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास जाहिर किया था। बाद में अक्टूबर 2018 में मद्रास हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फ़ैसले को बरकरार रखा था।

जजों की अलग-अलग राय 

इससे पहले जून, 2018 में मद्रास हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच के दोनों जजों ने अलग-अलग राय जाहिर की थी। एक जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने अपने दो सौ पेज के फैसले में विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को सही ठहराया था जबकि दूसरे जज जस्टिस एम. सुंदर ने विधानसभा अध्यक्ष के फ़ैसले को प्राकृतिक न्याय के खिलाफ, बदनीयती से लिया गया और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ माना था। 

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इस फैसले के खिलाफ विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की लेकिन सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई करने के बजाय मद्रास हाईकोर्ट के ही एक जज जस्टिस सत्यनारायण को इसकी सुनवाई करने के आदेश दिये। जस्टिस सत्यनारायण ने अक्टूबर में विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को सही ठहराया और 18 विधायकों की सदस्यता रद्द हो गई। 

राजस्थान में भी अगर 19 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है तो राजस्थान विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 200 से घटकर 181 रह जाएगी और बहुमत साबित करने के लिए 91 सदस्यों की ज़रूरत होगी। देखना होगा कि हाई कोर्ट क्या फ़ैसला देता है। 

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