पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए IPC की धारा 377 को रद्द कर दिया जो स्वेच्छा से होनेवाले किसी भी समलैंगिक संबंध को क्राइम ठहराती थी। कट्टरपंथियों और पुरातनपंथियों ने इस फ़ैसले को संस्कृति और संस्कारों के लिए घातक बताया और सोशल मीडिया पर इसको लेकर घटिया स्तर की छींटाकशी भी हुई लेकिन आम तौर पर इसका ज़्यादा विरोध नहीं हुआ।
मगर मुझे लगता है कि देश का एक तबक़ा है जो इस फ़ैसले से बिलकुल ख़ुश नहीं है और वे हैं मुसलमान। मैंने यह जानने की कोशिश की कि ऐसा क्यों है और मुझे इसका एक कारण क़ुरान में दिखा।
मैं धार्मिक हिंदू नहीं हूँ इसलिए दावे से तो नहीं कह सकता लेकिन मेरी जानकारी में किसी भी हिंदू धर्मग्रंथ में समलैंगिकों के बारे में कोई ज़िक़्र नहीं है। खजुराहो तथा दूसरे मंदिरों में तो समलैंगिक संबंधों को दिखलाती मूर्तियाँ तक हैं। इसलिए समलैंगिक संबंधों का विरोध करनेवाला कोई पंडित या पुरोहित किसी श्लोक या चौपाई का नाम लेकर यह नहीं कह सकता कि राम या कृष्ण ने इस प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ कभी कुछ कहा था या शास्त्रों में इनके विरुद्ध कुछ लिखा है और इसीलिए ऐसा संबंध रखना महापाप है।
मगर क़ुरान में समलिंगियों का उल्लेख है जहाँ उनको बुरा और अपराधी बताया गया है। साथ ही इस बात का भी ज़िक़्र है कि अल्लाह ने आसमान से पत्थरों की वर्षा करके कैसे उनका सर्वनाश किया। यही कारण है कि जो मुसलमान क़ुरान को अल्लाह की वाणी मानते हैं (बहुत कम होंगे जो इस बात से इनकार करें, क्योंकि इससे इनकार करते ही वे मुसलमान नहीं रह जाएँगे), वे यह सोचते हैं कि जो बात अल्लाह ने कह दी वह ग़लत कैसे हो सकती है। उनके अनुसार समलैंगिक संबंधों को सही ठहराना अल्लाह के आदेश का उल्लंघन है और कोई दीनी मुसलमान (कम से कम सार्वजनिक रूप से) ऐसा नहीं कर सकता। आइए, मुसलमानों की इस दुविधा को और अच्छी तरह समझने के लिए हम जानते हैं कि क़ुरान में समलैंगिकों के बारे में क्या कहा गया है।
सदोम और अमोरा के समलिंगी
क़ुरान के मुताबिक़ अल्लाह ने पैगंबर लूत को सदोम और अमोरा नामक दो पड़ोसी शहरों में भेजा था लेकिन इन शहरों के निवासियों ने उनकी बातें मानने से इनकार कर दिया। सदोम और अमोरा के निवासी समलैंगिक थे, साथ ही राहगीरों को लूटते थे और मेहमानों के साथ बदसलूक़ी करते थे। एक दिन जब लूत के घर दो फ़रिश्ते ख़ूबसूरत नौजवानों का भेस बदलकर आए तो शहरवासियों ने लूत से माँग की कि वह उन दो नौजवानों को उनके हवाले कर दें। लूत ने उनकी ख़ूब लानत-मलामत की कि वे ऐसा घृणित और अप्राकृतिक कर्म करते हैं जो दुनिया में कोई नहीं करता। उन्होंने उन दो मेहमानों के बदले अपनी दो बेटियाँ भी देनी चाहीं मगर भीड़ ने कहा कि हम बेटियों का क्या करेंगे क्योंकि तुम जानते हो, हम क्या चाहते हैं। जब लूत बिलकुल दुखी और हताश हो गए कि वह इस भीड़ से अपने मेहमानों की रक्षा नहीं कर पा रहे तो फ़रिश्तों ने उन्हें अपना असली परिचय दिया और यह भी बताया कि अगली सुबह ये दोनों शहर नष्ट हो जाएँगे और लूत अपने परिजनों को लेकर रात में ही निकल जाएँ और कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। साथ ही उन्होंने यह भी कि कहा कि उनकी पत्नी नहीं बच पाएगी क्योंकि वह भी ‘पीछे रह जानेवालों’ में है। अगली सुबह वही हुआ। लूत और उनका परिवार रात के अंधेरे में निकल गया और भोर होते ही शहर पर पत्थरों की वर्षा हुई और सारे लोग मारे गए। लूत की पत्नी भी जीवित नहीं बची। क़ुरान में वर्णित इस कथा के चलते ही मुस्लिम समाज में यह मान्यता है कि अल्लाह समलैंगिकता को सही नहीं मानता और समलैंगिकों की यही सज़ा है कि उनको जान से मार दिया जाए। हालाँकि कुछ आधुनिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि सदोम और अमोरा के बाशिंदों को सज़ा क्यों मिली थी, इस बारे में स्पष्टता नहीं है। यह सच है कि वे समलैंगिक थे मगर सज़ा संभवतः समलिंगी संबंधों के कारण नहीं बल्कि अल्लाह और उसके पैगंबर पर विश्वास न रखने और लूटमार व बलात्कार की प्रवृत्ति के कारण मिली हो।क़ुरान और बाइबल की कथा में अंतर
लूत की कहानी बाइबल में भी है हालाँकि वहाँ आख़िर में यह परिवर्तन है कि जब सदोम और अमोरा शहर बर्बाद हो गए तो लूत की बेटियों ने सोचा कि अब हमारी नस्ल का क्या होगा। तब उन्होंने अपने पिता को शराब पिलाकर उनको बेसुध कर दिया और अगली दो रातें उनके साथ सोकर गर्भ धारण किया जिससे उनके दो बेटे हुए।क़ुरान और बाइबल में वर्णित इन कथाओं के कारण ही मुस्लिम धर्मगुरु और ईसाई पादरी समलैंगिक व्यवहार को ईश्वर और धर्मविरोधी मानते हैं। ईसाई समाज के सोच में तो हाल में वर्षों में काफ़ी नरमी आई है और ख़ुद पोप ने कहा कि यदि कोई समलैंगिक है और वह सच्चे मन से ईश्वर को ढूँढता है तो मैं कौन होता हूँ जो यह फ़ैसला करूँ कि वह सही कर रहा है या ग़लत!’ मगर मुस्लिम समाजों में अभी यह परिवर्तन आना बाक़ी है।2013 में प्यू रिसर्च सेंटर ने मुस्लिम देशों में समलैंगिकता के प्रति क्या सोच है, यह जानने के लिए एक पोल कराया। इस पोल में लेबनान को छोड़कर किसी भी देश में समलैंगिकों को 10 प्रतिशत से ज़्यादा समर्थन नहीं मिला। पाकिस्तान में तो यह सबसे कम - 2 - प्रतिशत था जबकि लेबनान में युवा पीढ़ी में 27 प्रतिशत ने कहा कि समलैंगिकता को स्वीकृति मिलनी चाहिए। ब्रिटेन में रह रहे मुसलमानों में भी 61 प्रतिशत मुसलमानों का मत था कि समलैंगिकता अस्वीकार्य है। हैरत की बात यह कि यंग लोगों में ऐसी सोच रखनेवाले और भी ज़्यादा - 71 प्रतिशत - थे।मुझे नहीं पता, भारत में यदि ऐसा पोल करें तो क्या नतीजा निकलेगा। हो सकता है, यहाँ भी ऐसा ही परिणाम आए मगर पाकिस्तान की तरह यह 2 प्रतिशत होगा, इसमें मुझे संदेह है। इसलिए पूरे दावे के साथ मैं नहीं कह सकता कि मुस्लिम समाज का समलैंगकिता के प्रति ऐसा भाव क़ुरान में वर्णित प्रसंग के कारण है या विविधता और मतभिन्नता के प्रति उदार रवैया न होने के कारण है जो कि भारत में भी दिखता है।मैं अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ लेकिन यदि आपकी यह जानने में रुचि हो कि क़ुरान और बाइबल में लूत और उन दो शहरों के बारे में क्या लिखा हुआ है तो संबंधित आयतों को और बाइबल का वह अंश हूबहू पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
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