कर्नाटक में एक दिन में कोरोना के 34 हज़ार नए मामले सामने आने के बाद राज्य सरकार ने 14 दिनों का कर्फ़्यू लगाने का फ़ैसला किया है। यह मंगलवार रात से लागू होगा। यह निर्णय ऐसे समय लिया गया है जब पूरे देश में 23 घंटे में साढ़े तीन लाख नए मामले सामने आए।
हाथरस सामूहिक बलात्कार कांड की खबर जुटाने जा रहे गिरफ़्तार पत्रकार सिद्दिक कप्पन को कोरोना संक्रमण हो गया। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिख कर कहा है कि कप्पन के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए।
ऐसे समय जब रोज़ाना कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की तादाद साढ़े तीन लाख से भी ज़्यादा हो गई है और हाहाकार मचा है, मद्रास हाई कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसले में इसके लिए केंद्रीय चुनाव आयोग को ज़िम्मेदार ठहराया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि राजधानी में 18 साल से ज़्यादा की उम्र के हर व्यक्ति को कोरोना टीका लगाया जाएगा और वह भी मुफ़्त। सरकार ने इसे देखते हुए एक करोड़ 34 लाख ख़ुराकों का ऑर्डर भी दे दिया है।
भारत में फैले कोरोना की प्रतिध्वनि सारी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। अमेरिका से लेकर सिंगापुर तक के देश चिंतित दिखाई पड़ रहे हैं। जो अमेरिका कल-परसों तक भारत को वैक्सीन या उसका कच्चा माल देने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था, उसका रवैया थोड़ा नरम पड़ा है।
ऑक्सीजन की किल्लत, कोरोना टीके की कमी और पीपीई व जाँच किट्स की कमी के बीच भारत में एक दिन में नए कोरोना संक्रमण के मामले साढ़े तीन लाख की सीमा को पार कर गए हैं।
कई देशों ने मदद का हाथ भी बढ़ाया है और कहा है कि वे कोरोना महामारी से उबरने में भारत की हर मुमकिन मदद करेंगे। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने कहा है कि वे दवाएं, उपकरण व दवा के कच्चा माल भारत को तुरन्त भेजेंगे।
कोरोना संक्रमण को रोकने में सरकार की नाकामी को टीवी एंकर सिस्टम की नाकामी बता रहे हैं, सरकार की नहीं। क्या मामला है, पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का व्यंग्य।
ऑक्सीजन की कमी कितनी ख़तरनाक है, इसका अंदाज़ा उत्तर प्रदेश के कुछ आँकड़ों से लगा सकते हैं। सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक़, लखनऊ में रोज़ 65 मैट्रिक टन ऑक्सीजन की जरुरत है जबकि शुक्रवार को 56 मैट्रिक टन ही उपलब्ध था। यानी 9 मैट्रिक टन की कमी।
कोरोना से लड़ने में सरकार क्यों नाकाम है, उसने क्यों पहले से तैयारी नहीं की, ये सवाल हैं। लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सरकार चुनते वक्त किसी ख़ास समुदाय के प्रति नफ़रत नहीं थी? सवाल उठा रहे हैं लेखक अपूर्वानंद।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकल प्रभाकर सरकार की आलोचना करने के लिए एक बार फिर खबरों में हैं। अपने यूट्यूब चैनल पर साप्ताहिक कार्यक्रम 'मिडवीक मैटर्स' में उन्होंने कोरोना से लड़ने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की है।
इस समय मुख्य धारा का अधिकांश मीडिया, जिसमें कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों शामिल हैं, बिना किसी घोषित-अघोषित सरकारी अथवा अदालती हुक़्म के ही अपनी पूरी क्षमता के साथ सत्ता के चरणों में बिछा हुआ है।
ट्विटर ने केंद्र सरकार के कहने पर ऐसे कई ट्वीट हटा दिए, जिनमें कोरोना संभालने में सरकार की आलोचना की गई थी। इसमें कई राजनीतिक दल, एक्टर व पत्रकार के ट्वीट शामिल हैं।
इस समय कोरोना से जूझ रहे लोगों को बचाने का जितना काम पत्रकार कर रहे हैं, उतना शायद ही कोई कर रहा होगा। इस देश मे पिछले कुछ वर्षों से पत्रकारिता औऱ पत्रकार दोनों बदनाम रहे हैं। यह पूरी संस्था ही शक और संदेह में घिरी रही है।