इमरजेंसी को भारत एक ऐसे भयावह काल की तरह याद रखता है जिसने सभी संस्थाओं को विकृत करके भय के वातावरण का निर्माण किया था। लेकिन इमरजेंसी या इस तरह के हालात में मीडिया की क्या भूमिका है?
आपातकाल की 46वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छोटा सा ट्विटर संदेश ख़ासा दिलचस्प तो है ही राजनीतिकअंतर्विरोध की ज़बरदस्त गुत्थियों में उलझा हुआ भी है। उनकी यह टिप्पणी कश्मीर के संदर्भ में कैसे मायने रखता है?
मुझे आज भी इस बात पर अचरज होता है कि एक बहुत कम उम्र के छात्र से प्रशासन इतना क्यों डरा हुआ था कि परीक्षा देने के लिए भी कॉलेज तक ले जाने के लिए तैयार नहीं था।
21-22 मार्च 1977 की मध्य रात्रि थी जब हमने आकाशवाणी पर उस समय के मशहूर समाचार वाचक अशोक वाजपेयी की तैरती आवाज़ में पहली बार सुना कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव हार गयी हैं।