जवाहरलाल नेहरू का जिस्म भले ही नहीं रहा हो, लेकिन वह एक लड़ाई अभी भी लड़ रहे हैं। वह लड़ाई क्या है यह कंगना के उस बयान से भी पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा है कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है।
बीजेपी बार बार क्यों आरोप लगाती है कि कांग्रेस ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हक़दार थे? अब इसने कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में अपमान किए जाने का आरोप क्यों लगाया है?
एक ऐसे समय में जब राजनीति का मक़सद किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो और समाज में सब तरफ़ पैसे की ताक़त का बोलबाला हो, महात्मा गांधी के विचार आज कितने प्रासंगिक हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. भीमराम आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, विस्मिल, जैसे महापुरुषों को याद किया।
पर क्या आज़ादी के चौहत्तर साल के बाद भारतीय लोकतंत्र गांधी की कसौटी पर खरा उतरा है? क्या भारत लोकतंत्र के उस विज्ञान को विकसित कर पाया है जिसकी कामना गांधी ने की थी?
उनकी वजह से और जवाहलाल नेहरू न होते तो हिंदुस्तान का सत्यनाश पहले दिन से हो जाता। यह तो उनके प्रधानमंत्री काल के वह 17 साल हैं जिसने मॉडर्न इंडिया को बचाए रखा है। यह कहना है लेखक इश्तियाक अहमद का।
आज़ादी की लड़ाई में जीवन के 9 साल ब्रिटिश जेलखाने के अंदर बिताने वाले नेहरू ने लगातार 17 साल प्रधानमंत्री रहते हुए देश में विज्ञान, शोध और तर्कवाद की ज़मीन सींची।
नेहरू की पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया ने जिस अंदाज में उन्हें याद किया वह हैरान करने वाला था .वजह पिछले कुछ वर्षों में नेहरू पर हमला तेज होता रहा है .इसी मुद्दे पर आज की जनादेश चर्चा में बातचीत राजनीतिक टीकाकार और लेखक विभूति नारायण राय से
प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल की नयी पुस्तक ‘कौन हैं भारत माता?’ पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सम्बंध में मिथकों को तोड़ने, सत्य को उभारने और प्रकाश को सही जगह डालने की भरपूर कोशिश की है।
भारत के चार ख़ास प्रधानमंत्री किसी जाति, संप्रदाय, मज़हब, भाषा या वर्ग-विशेष के प्रतिनिधि नहीं थे। वे संपूर्ण भारत के प्रतिनिधि थे। वे प्रधानमंत्री थे, प्रचारमंत्री नहीं थे। वे प्रधानसेवक थे, प्रधानमालिक नहीं थे। वे सर्वसमावेशी थे, वे सर्वज्ञ नहीं थे।