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अब तमिलनाडु में चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं ओवैसी 

क्या असदउद्दीन ओवैसी तमिलनाडु में भी अपनी पार्टी एआईएमआईएम (मजलिस) के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारेंगे? क्या मजलिस के उम्मीदवारों की वजह से बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी की तरह स्टालिन की डीएमके के भी वोट कटेंगे? ओवैसी फ़ैक्टर क्या तमिलनाडु में काम करेगा और इससे बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को फायदा होगा? क्या ओवैसी फैक्टर की वजह से ही अन्ना डीएमके सत्ता में बने रहने में कामयाब होगी?

यही कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनको लेकर इन दिनों तमिलनाडु में चर्चा ज़ोरों पर है। फ़िल्म स्टार कमल हासन ने असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ चुनावी तालमेल करने का संकेत दिया है। इतना ही नहीं, कमल हासन ने अन्य छोटी पार्टियों के साथ मिलकर तमिलनाडु में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश शुरू की है। 

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सूत्रों की मानें तो बिहार विधानसभा चुनाव में पाँच सीटें जीतने से उत्साहित ओवैसी ने तमिलनाडु में चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। इस बात का संकेत भी उन्होंने कमल हासन को दे दिया है। सूत्रों का कहना है कि कमल हासन के नेतृत्व वाले मोर्चे में शामिल होकर ओवैसी तमिलनाडु की कुल 234 में से 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। 

मजलिस के उम्मीदवार उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में उतारे जाएंगे, जहां मुसलिम मतदाताओं की तादाद ज़्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक़ तमिलनाडु में मुसलिम मतदाताओं की संख्या करीब 6 फीसदी है।

जानकार बताते हैं कि तमिलनाडु में 22 ऐसी सीटें हैं, जहां मुसलिम मतदाता उम्मीदवारों की जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मदुरै, त्रिचि, तिरुनेलवेली, वेल्लूर, रानीपेट, कृष्णगिरी और तिरुपत्तूर वे ज़िले हैं, जहां मुसलिम मतदाताओं को कोई भी राजनीतिक पार्टी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है। 

गौर करने वाली बात है कि ओवैसी की पार्टी भले ही तमिलनाडु में सक्रिय न हो, लेकिन प्रदेश में उसकी अपनी इकाई है। पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष वकील अहमद बयानों के जरिये खबरों में बने रहते हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि तमिलनाडु में पहले से ही कुछ पार्टियाँ खुद को मुसलिमों का असली प्रतिनिधि होने का दावा करती हैं। इन पार्टियों में इंडियन यूनियन मुसलिम लीग, इंडियन नेशनल लीग, ऑल इंडिया मुसलिम लीग, तमिलनाडु जमात आदि शामिल हैं।

Asaduddin owaisi will fight in tamilnadu elelction 2021 - Satya Hindi

डीएमके के साथ रहेगी मुसलिम लीग 

सूत्रों ने यह भी बताया कि ओवैसी ने इन सभी पार्टियों को एक-साथ लाकर एक मोर्चा बनाने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे। इन पार्टियों में सबसे असरदार पार्टी इंडियन यूनियन मुसलिम लीग ने साफ कर दिया है कि वह स्टालिन की डीएमके के साथ ही रहेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में यह पार्टी डीएमके के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा थी। मुसलिम लीग के साथ होने की वजह से स्टालिन को फायदा भी हुआ। तमिलनाडु की कुल 39 लोकसभा सीटों में से एक को छोड़कर सभी सीटों पर यूपीए के उम्मीदवारों की जीत हुई।

कुछ दिनों पहले तक स्टालिन को भरोसा था कि इस बार भी मुसलिम मतदाताओं का साथ उनकी पार्टी को मिलेगा। लेकिन ओवैसी के तमिलनाडु में आने की खबरों ने उनकी चिंता बढ़ा दी है।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि अकेले दम पर ओवैसी की पार्टी कुछ खास नहीं कर सकती है, लेकिन अगर वह छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठजोड़ करती है तो वह तमिलनाडु में असरदार साबित हो सकती है, जैसा कि महाराष्ट्र और बिहार में हुआ। महाराष्ट्र में ओवैसी ने प्रकाश आम्बेडकर की पार्टी के साथ चुनावी तालमेल किया तो बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के साथ। 

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यूपी भी पहुंचे ओवैसी 

ओवैसी उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर से इसी तरह के गठगोड़ की कोशिश में हैं। तमिलनाडु में कमल हासन से उनका हाथ मिलाना लगभग तय माना जा रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि कांटे की टक्कर वाली सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवारों की मौजूदगी से स्टालिन की डीएमके और उसकी सहयोगी पार्टियों को नुकसान होगा। 

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महत्वपूर्ण बात यह है कि ओवैसी ने तमिलनाडु को लेकर अभी अंतिम फ़ैसला नहीं किया है। वे अलग-अलग एजेंसियों से सर्वे करवाकर अपनी ताकत का आकलन करवा रहे हैं। विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि दक्षिण की दो क्षेत्रीय पार्टियों के मुखिया ओवैसी पर तमिलनाडु में चुनाव न लड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं। ये दोनों पार्टियाँ तमिलनाडु से बाहर की हैं।

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