जगदीश शेट्टार
कांग्रेस - हुबली-धारवाड़-मध्य
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ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद बीजेपी ने तेलंगाना में 'ऑपेरशन लोटस' शुरू कर दिया है। बीजेपी का मुख्य निशाना कांग्रेस और टीआरएस के वे नेता हैं जो पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं। तेलंगाना के कई कांग्रेस नेता अब यह मानने लगे हैं कि राज्य में तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस का एकमात्र विकल्प बीजेपी ही है। यही वजह है कि बीजेपी ने सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश शुरू कर दी है। बीजेपी को ऑपेरशन लोटस में कामयाबी भी मिलती नज़र आ रही है।
दक्षिण भारत में 'लेडी अमिताभ' के नाम से मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री विजयशान्ति ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। वैसे तो विजयशान्ति ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बीजेपी से ही की थी, लेकिन कुछ सालों बाद वे बीजेपी को अलविदा कहकर टीआरएस में शामिल हो गयी थीं।
एक समय ऐसा था जब बीजेपी को लगता था कि विजयशान्ति आंध्र प्रदेश में वही करिश्मा करेंगी जो तमिलनाडु में जयललिता ने किया था। लेकिन विजयशान्ति राजनीति में नहीं चमकीं और बीजेपी ने तेलुगु देशम पार्टी से गठबंधन कर लिया। इसके बाद विजयशान्ति टीआरएस में चली गयीं।
2009 में हुए लोकसभा चुनाव में वे मेदक सीट से चुनाव जीत गयीं और पहली बार सांसद बनीं। 2014 में जब केंद्र की यूपीए सरकार ने तेलंगाना राज्य बना दिया तब वे टीआरएस छोड़कर कांग्रेस में चली गयीं। 2014 में कांग्रेस की न सिर्फ तेलंगाना बल्कि देशभर में बुरी हार हुई। अब विजयशान्ति ने एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी को अपना लिया है।
किसी वक़्त में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वासपात्र रहे दलित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सर्वे सत्यनारायण भी बीजेपी में शामिल होने के लिए तैयार हैं।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आंध्र प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री के. जना रेड्डी ने भी बीजेपी में शामिल होने का मन बना लिया है। सिकंदराबाद से दो बार लगातार लोकसभा के लिए चुने गये कांग्रसी नेता अंजन कुमार यादव भी जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।
सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने कांग्रेस में रेड्डी समुदाय और दलित वर्ग के नेताओं को अपनी ओर खींचने की रणनीति बनायी है। रेड्डी समुदाय के लोगों से बातचीत कर उन्हें मनाने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किशन रेड्डी और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डी. के. अरुणा को सौंपी गयी है। अरुणा पहले कांग्रेस में थीं और उनका परिवार कांगेस के बड़े नेता डॉ. वाई. एस. राजशेखर रेड्डी का करीबी रहा है।
कांग्रेस के दलित नेताओं को बीजेपी में लाने का काम दलित नेता और पूर्व सांसद जी. विवेक को सौंपा गया है। विवेक पहले कांग्रेस में थे। वे फिर टीआरएस में गये और अब बीजेपी में हैं। विवेक अपने ज़माने के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जी. वेंकटस्वामी के बेटे हैं और वेलुगु नामक तेलुगु अखबार और वी 6 न्यूज़ चैनल के मालिक हैं।
कांग्रेस में सक्रिय पिछड़ी जाति के नेताओं को बीजेपी में लाने का काम पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद बंडी संजय और लोकसभा सदस्य धर्मपुरी अरविंद को सौंपा गया है।
अरविंद आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व अध्यक्ष धर्मपुरी श्रीनिवास के बेटे हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी कविता को हराया था। बंडी संजय और अरविंद दोनों मुन्नुरु कापू समुदाय से हैं। इस समुदाय का तेलंगाना में काफ़ी प्रभाव है।
विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के सांसद कोमटरेड्डी वेंकट रेड्डी और उनके विधायक भाई भी राजगोपाल रेड्डी बीजेपी में शामिल होने को राजी हो गए थे, लेकिन उनकी एक मांग बीजेपी नेतृत्व को पसंद नहीं आयी। दोनों भाइयों ने मांग की थी कि दोनों में किसी एक को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए या फिर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जाए। बीजेपी ने मांग ठुकरा दी और दोनों भाई फिलहाल कांग्रेस में बने हुए हैं। इन्हें बीजेपी में खींचने की कोशिश जारी हैं।
बीजेपी नेतृत्व ने 'कांग्रेस को खाली' करने के बाद टीआरएस में केसीआर से नाराज़ नेताओं को अपनी ओर खींचने की रणनीति बनायी है। सूत्रों का दावा है कि टीआरएस के कई नेता बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं।
हाल ही में टीआरएस को उस समय करारा झटका लगा जब तेलंगाना विधान परिषद के पहले अध्यक्ष स्वामी गौड़ बीजेपी में शामिल हो गये। स्वामी गौड़ की अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर किये गए आंदोलन में बेहद खास भूमिका थी।
इस बात में दो राय नहीं है कि बीजेपी ने तेलंगाना में टीआरएस और केसीआर के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख अपना लिया है। बीजेपी नेतृत्व को भरोसा है कि कर्नाटक के बाद तेलंगाना दक्षिण में ऐसा दूसरा राज्य होगा जहां बीजेपी की अपनी सरकार होगी।
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