बीजेपी ने कई दिनों तक माथापच्ची करने के बाद तीरथ सिंह रावत का विकल्प एक युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी के रूप में खोजा है। राज्य में 7 महीने बाद विधानसभा के चुनाव हैं और धामी पर पार्टी को जिताने की बड़ी जिम्मेदारी है। उनके सामने कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के संभावित चेहरे हरीश रावत होंगे और ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या धामी बीजेपी की सत्ता में वापसी करा पाएंगे? क्या वह सियासत में चार दशक से ज़्यादा वक़्त का अनुभव रखने वाले हरीश रावत के सामने टिक पाएंगे?
धामी ने पिछले दो विधानसभा चुनाव में लगातार जीत दर्ज की है। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रशिक्षित स्वयंसेवक रहे हैं। संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से होते हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा में आए और दो बार इसके अध्यक्ष रहे।
युवा मोर्चा का अध्यक्ष रहते हुए धामी ने हालांकि पूरे प्रदेश की ज़मीन को कई बार नापा है लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में दिग्गजों के बीच अपनी छवि बनाना और कुछ ही महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाना निश्चित ही बेहद दुरूह लक्ष्य है।
धामी के पास शहरी अनुश्रवण समिति के उपाध्यक्ष के तौर पर काम करने का दो साल का अनुभव है। वह राज्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री भी नहीं रहे हैं, ऐसे में वह कैसे सरकार चला पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है।
जनता में नाराज़गी?
धामी के साथ ही बीजेपी की उत्तराखंड इकाई को भी लोगों के इस सवाल का जवाब देना होगा कि आख़िर क्यों इतनी जल्दी-जल्दी मुख्यमंत्री बदले गए। ऐसा करके क्यों उत्तराखंड को राजनीतिक प्रयोगशाला बना दिया गया। निश्चित रूप से कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी ही, बीजेपी के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा और जो जवाब वह देगी, उससे जनता संतुष्ट होगी, इस पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि सोशल मीडिया पर सैकड़ों लोगों ने बीजेपी के इस क़दम पर सख़्त नाराज़गी जाहिर की है।
इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्रियों त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत के गुटों के लोगों को भी धामी को साथ लेकर चलना होगा।
कांग्रेस के लिए मौक़ा?
अगर कांग्रेस हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो धामी का क़द निश्चित रूप से रावत के सामने हल्का पड़ सकता है। क्योंकि हरीश रावत पांच बार सांसद रहने के साथ ही, केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री, मुख्यमंत्री, दो बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सहित संगठन में कई बड़ी जिम्मेदारियां निभा चुके हैं।
हरीश रावत के बारे में कहा जाता है कि उत्तराखंड में वह अकेले ऐसे राजनेता हैं जिनका हर विधानसभा क्षेत्र में जनाधार है और 73 साल की उम्र में भी उनकी सक्रियता किसी नौजवान से कम नहीं है।
कन्फ्यूज़ है बीजेपी!
बीजेपी इस साल की शुरुआत से ही माथापच्ची कर रही थी और 9 मार्च को उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई करवा दी थी लेकिन चार महीने से भी कम वक़्त में नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को भी बोरिया बिस्तर समेटने का आदेश दे दिया गया। इससे पता चलता है कि पार्टी इस बेहद छोटे राज्य में नेतृत्व को लेकर किस कदर कन्फ्यूज़ है।
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