टीकाकरण की अव्यवस्थाओं को दूर करने की प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है तो क्या खेती सम्बन्धी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन के सन्दर्भ में भी क्या ऐसा होगा?
नई ऑटोमोबाइल नीति के ज़रिए सरकार जो खेल खेल रही है या खेलने जा रही है, उसके आगे बैंक की बचत पर सूद घटाना बहुत छोटा फ़ैसला लगता है। नई ऑटोमोबाइल नीति तो सीधे-सीधे बड़ी ऑटो कम्पनियों की जेब भरने वाली है।
अमेरिका की संस्था, केटो इंस्टीट्यूट और कनाडा की संस्था फ्रेजर इंस्टीट्यूट द्वारा जारी दुनिया के 162 देशों की रैंकिंग में भारत की आज़ादी को ‘आधी’ बता दिया गया है और उसकी रैंकिंग 94वें स्थान से गिरकर 111 स्थान पर आ गई है।
जिस बात पर बीजेपी प्रवक्ता और संघ परिवार के लोग अचानक जोर देने लग़े हैं वह है पिछली यूपीए सरकारों द्वारा जारी ऑयल बॉन्ड की देनदारियाँ। और इस बात को आज ऐसे अन्दाज में बताया जा रहा है कि सरकार इन देनदारियों को सम्भालते सम्भालते परेशान है।
किसान आन्दोलन पर सरकार यही सन्देश दे रही है कि किसान नागरिक अधिकारों से विहीन नागरिक बनते जा रहे हैं। उनके बारे में बिना चर्चा कानून बनाने से लेकर उनको इस स्थिति मेँ लाने तक यही चल रहा है।
‘शताब्दी में ख़ास बजट’ कहकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने जो वित्त विधेयक पेश किया उसमें किसी क़िस्म के ग़रीब समर्थक, किसान समर्थक, महिला समर्थक और गांव समर्थक दिखावे की भी ज़रूरत नहीं दिखी। आख़िर क्या था बजट में।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फिच का नया अनुमान 10.5 फीसदी गिरावट (उसका जून का अनुमान 5 फीसदी का ही था) का है जबकि गोलडमैन सैक्स का अनुमान तो 14.9 फीसदी पर पहुंच गया है। एक ही दिन में आई तीसरी रिपोर्ट इंडिया रेटिंग्स की है जो 11.8 फीसदी गिरावट की भविष्यवाणी करती है।
कोरोना और चीन संकट के दौरान गांधी परिवार ख़ासकर राहुल चुस्त दिखे हैं। उन्होंने नए सिरे से उभरने की कोशिश की है, इसमें सरकार की असफलताओं का भी बड़ा योगदान है।
गिरिराज सिंह ने कभी खूंखार माने जाने वाले रणबीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की बरसी पर उन्हें शहीद बताते हुए ‘कोटि कोटि नमन’ का ट्वीट क्यों किया?
ट्रंप ने अपने भारत दौरे में 21 हज़ार करोड़ का सौदा भी कर लिया और भारतीय उद्यमियों को अमेरिका में निवेश करने के लिए राजी भी। लेकिन वह अमेरिका में ‘नमस्ते ट्रंप’ की चर्चा ही करेंगे।
आख़िर क्यों केंद्र सरकार ने सबरीमला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दी और दूसरे राजनीतिक दलों का भी सामाजिक-राजनैतिक मामलों को लेकर रवैया बेहद ख़राब है।
गाँधी का बहुत साफ़ मानना था कि अगर हम जान दे नहीं सकते तो हमें जान लेने का अधिकार नहीं है। उनके इस कथन और वाक्य प्रयोग को भी याद करना चाहिए कि आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना देगा।
मोदी सरकार को यह समझना होगा कि छात्रों के अलावा बड़े पैमाने पर दलित, आदिवासी, किसान और नौजवान उसके ख़िलाफ़ क्यों दिख रहे हैं? निश्चित रूप से यह उसके लिए चेतावनी की घंटी है।
बहुत जल्द ही आर्थिक मंदी देश के शासन में राजनैतिक लड़ाई का रूप लेने जा रही है। मंदी से राजस्व वसूली में आई गिरावट के बाद केंद्र ने राज्यों की हिस्सेदारी में कटौती शुरू कर दी है।
सरकार एक तो आर्थिक मंदी की बात ही नहीं मानती है, और उस पर तुर्रा यह कि आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए जो कदम उठाती है, उसका ज़्यादा फ़ायदा वे लोग ही उठा रहे हैं सरकार के नज़दीक हैं, ऐसा क्यों है?