पिछले हफ्ते दिल्ली उच्च न्यायालय ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इक़बाल तन्हा की ज़मानत याचिका पर कहा कि यूएपीए का उपयोग आतंकवाद की वास्तविक घटनाओं में किया जाए, सरकार विरोधी असंतोष या विरोध प्रदर्शन के मामलों में नहीं।
कुछ ही दिनों पहले हमने देखा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने कोविड-19 महामारी पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करने के बजाय पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनाव में व्यस्त थे। अब हम एक बार फिर सरकारी समय का एक और अक्षम्य दुरुपयोग देख रहे हैं।
भाजपा सरकार ने महामारी से जुड़े शासन के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों जैसे: ऑक्सीजन उत्पादन, उत्पादन का नियंत्रण और कोविड-19 के इलाज से जुड़ी दवाओं जैसे रेमडेसिविर का वितरण आदि का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था। लेकिन तैयारी कैसी हुई?
अभिव्यक्ति के अधिकार को नियंत्रित करने की मंशा से बीजेपी सरकार ने ‘सोशल मीडिया’ और समस्त डिजिटल प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने की कोशिश की है। अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू का मामला सरकारी शक्ति के दुरुपयोग का ताज़ातरीन मामला है।
रियाना (रिहाना) के ट्वीट के बाद भारत की कुछ खेल हस्तियों और मशहूर हस्तियों ने अपनी राय रखी। इसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। क्या इससे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ी है?
अर्णब गोस्वामी एक ऐसे टीवी मीडिया समाचार वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका मक़सद अभद्र टिप्पणियों के माध्यम से राजनेताओं का चरित्र हनन करना तथा ग़ैरज़रूरी बहस में उलझाकर जनहित से जुड़ी ज़रूरी ख़बरों को हाशिये पर डालना शामिल है।
डोनल्ड ट्रंप और उसके समर्थक राजनेताओं के उकसावे पर दक्षिणपंथियों की हिंसक भीड़ ने अमेरिकी संसद भवन कैपिटल पर हमला कर दिया। इस हमले का मक़सद अमेरिका में सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करना था। क्या भारत कोई सबक लेगा?
कृषि क़ानून के विरोध को प्रधानमंत्री और उनके वफादार किसानों को ‘ग़लत’ या ‘गुमराह’ घोषित कर सारे आन्दोलन को विपक्ष द्वारा प्रायोजित गुमराह लोगों का ग़ैर-ज़रूरी आन्दोलन कह कर अपना पल्ला झाड़ सकते हैं।
समाचार मीडिया बेरोज़गारी, ग़रीबी और इसके जैसे जनहित के मुद्दों पर रिपोर्टिंग न कर अपना अधिकांश समय व्यर्थ और ग़ैरज़रूरी मनोरंजक समाचारों पर नष्ट कर रहा है।