असम में काँग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान सँभाल रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि इस बार काँग्रेस 100 से ज़्यादा सीटें जीतेगी। उनके मुताबिक ऊपरी असम में इस बार संख्या उलट जाएगी। पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत
शुरू में ऐसा लग रहा था कि काँग्रेस बदरुद्दीन अजमल से गठबंधन करके फँस गई है इसलिए ठीक से जवाब नहीं दे पा रही, लेकिन अब उसने पलटवार की रणनीति अपना ली है। ये नई रणनीति कितनी कारगर होगी?
सत्य हिंदी के सलाहकार संपादक ने गुवाहाटी से नॉर्थ गुवाहाटी की स्ट्रीमर से यात्रा के दौरान लोगों से बात करके ये जानने की कोशिश की वे वर्तमान सरकार और उसके कामकाज को लेकर क्या सोचते हैं।
असम के चुनाव में इस बार राज्य की राजनीति पलटती हुई दिख रही है। पहचान की राजनीति अब असमिया से हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही है। इसने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। असम से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
इत्र के व्यापारी बदरुद्दीन अजमल की राजनीतिक ताक़त है असम की वे तैंतीस सीटें, जहाँ मुसलमान बहुमत में हैं। इन सीटों पर उनकी ज़बर्दस्त पकड़ है। इसके अलावा क़रीब एक दर्ज़न सीटें हैं, जहाँ वे काँग्रेस तथा दूसरे दलों के साथ मिलकर पाँसा पलट सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मुकेश कुमार की टिप्पणी
हिमंत बिस्व शर्मा छल-बल की राजनीति में माहिर हैं। काँग्रेस से बीजेपी में आने के बाद वे एकदम से हिंदुत्व के झंडाबरदार बन गए हैं और मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते रहे हैं। अगर पार्टी जीती तो वे मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों की तादाद कम ज़रूर हो गई है, मगर आंदोलनरत किसानों के हौसले कम नहीं हुए हैं और न ही उनका संकल्प ढीला पड़ा है। मगर सवाल उठता है कि सौ दिनों में उन्होंने क्या हासिल किया है? ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
एक फ़रवरी को तख्ता पलटने के बाद से म्यांमार के फौजी शासकों ने बर्मी जनता का जो दमन शुरू किया था, उसकी तीव्रता बढ़ती जा रही है और वह अधिक हिंसक होता जा रहा है।
राकेश टिकैत बार-बार ऐसी घोषणाएं कर रहे हैं, जिनका अनुमोदन किसान संयुक्त मोर्चा नहीं करता। सवाल उठता है कि उनके इस रवैये से कहीं आंंदोलन के बारे में भ्रम तो नहीं फैल रहा, आंदोलन को नुकसान तो नहीं हो रहा? वरिष्ठ किसान नेता जगजीत डल्लेवाल से मुकेश कुमार की बातचीत
दुनिया भर के डिजिटल समाचार उद्योग में बड़ी उथल-पुथल मची हुई है। गूगल और फ़ेसबुक जैसी कंपनियों और कई देशों के बीच जारी जंग इस परिवर्तन के केंद्र में है। ऑस्ट्रेलिया में विवाद चल रहा है।
ट्विटर पर कार्रवाई के बीच सूचना एवं तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने ख़ास अंदाज़ में बारंबार कह रहे हैं कि विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को भारतीय संविधान एवं क़ानूनों का पालन करना ही पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग़ के फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका ठुकराते हुए एक ऐसे फ़ैसले को सही ठहरा दिया है जो ढेर सारे प्रश्नों को जन्म देता है। इससे लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन का अधिकार बाधित हो सकता है और सरकारों को आंदोलन कुचलने का नया हौसला मिल सकता है। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
क्रिकेट खिलाड़ी वसीम जाफ़र ने अपने ऊपर लगाए गए तमाम आरोप के जवाब दे दिए हैं और ऐसा लगता है कि उत्तराखंड क्रिकेट संघ के अधिकारी अब पीछे हटने लगे हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा किया क्यों और क्या इस खेल में भगवा राजनीति की भी कोई भूमिका है? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
सरकार ने ट्विटर को 1178 भारतीयों के खाते बंद करने के आदेश दिए थे मगर ट्विटर ने उसका पूरी तरह से उसका पालन नहीं किया। इससे सरकार नाराज़ है और अब उसने भारतीय विकल्प कू को अपना लिया है। क्या होगा? इसका अंजाम वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता मेधा पाटकर का कहना है कि वे मोदीजी को धन्यवाद देती हैं कि उन्होंने हमें आंदोलनजीवी कहा। वे आंदोलनजीवी होने पर गर्व करती हैं। पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की उनके साथ बातचीत-
संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने कई आपत्तिजनक बातें कही हैं। इससे न केवल उनको बल्कि उनकी पार्टी को भी नुक़सान उठाना पड़ेगा? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
किसान आंदोलन के साथ ज़्यादतियों की ख़बरें विश्व भर में फैल चुकी हैं। इससे मोदी और देश दोनों की छवि खराब हुई है। मगर क्या मोदी सरकार अब भी आँखें मूँदे रहेगी? क्या अभी भी वह प्रोपेगंडा और सेलेब्रिटियों के बल पर अपनी कारगुज़ारियाँ छिपाने की सोचती रहेगी? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट-
ये सरकार घमंडी है। किसानों की एकजुटता को तोड़ने के लिए इसने हर हथकंडा आज़मा लिया मगर कामयाब नहीं हुई और न ही आगे होगी। ये कहना है माकपा नेता बृंदा करात का। पेश है उनसे वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत
सरकार ने दिल्ली के आसपास किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ क़िलेबंदी कर दी है, मगर वह फैलता ही जा रहा है। सरकार द्वारा किसानों को बदनाम करने के हथकंडों का भी उल्टा असर हो रहा है। ऐसे में बेहतर है कि सरकार कानून वापस ले। ये कहना है कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का। पेश है उनसे वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत।
सरकार ने बजट में एक बार फिर से ये सोचकर सरकारी संपत्तियों को बेचने का दाँव खेला है कि कोरोना की वज़ह से विरोध नहीं होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। किसान आंदोलन की तरह विरोध का एक मोर्चा कर्मचारियों की ओर से भी खड़ा हो सकता है। पेश है जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत
29 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर हुए पथराव की तमाम सचाइयाँ सामने आ गई हैं। यह साफ़ हो गया है कि किसानों के आंदोलन से नाराज़ स्थानीय लोग इस प्रायोजित हिंसा में शामिल नहीं थे।