क्या सेना की शहादत या सेना के शौर्य का चुनावी रैली में किसी भी तरह का राजनीतिक इस्तेमाल सही हो सकता है? प्रधानमंत्री चुनावी रैली में जो कर रहे हैं उस पर आख़िर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आख़िर एक साल में भी किसानों को क्यों नहीं समझा पाए? वह भी तब जब वार्ता से लेकर लाठीचार्ज तक का सहारा लिया गया, सड़कें खोदी गईं, दीवार खड़ी की गई। आख़िर कहां कमी रह गई?