loader

एमपी: क्या उपचुनावों में बुरे फँस गये हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया?

राजनीतिक पर्यवेक्षक कमलनाथ के रोड 'शो' के कामयाब होने की 2 वजहें मानते हैं। पहली तो यह कि स्थानीय स्तर पर लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के 'राजनीतिक अवसरवाद' से नाखुश हैं। दूसरी, हालिया दिनों में बीजेपी की कई नीतियों को लेकर उनके मन में तेजी से उभरने वाला रोष है। भोपाल स्थित बीजेपी मुख्यालय में कमलनाथ की ग्वालियर यात्रा को मिली ऐसी कामयाबी पर चिंतन और मनन चल रहा है। 
अनिल शुक्ल

मार्च के तीसरे हफ़्ते में कमलनाथ की राज्य सरकार का जिस तरह से पतन हुआ, उसके केंद्र में न सिर्फ़ ग्वालियर नरेश ज्योतिरादित्य सिंधिया थे बल्कि जिन विधायकों ने पार्टी छोड़कर सरकार गिराई उनमें भी 55 फीसदी ग्वालियर-चम्बल संभाग के थे। इस दृष्टि से कमलनाथ, सिंधिया और शिवराज सिंह- तीनों के लिए इस क्षेत्र का बहुत बड़ा महत्व है। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना पहला उपचुनावी हल्ला इसी क्षेत्र पर बोला। 

कमलनाथ यहाँ 2 दिन का कार्यक्रम बनाकर आए थे। उन्होंने एयरपोर्ट से लेकर रानी लक्ष्मीबाई समाधिस्थल तक 7 किमी लंबा रोड शो किया, कार्यकर्ताओं का एक बड़ा सम्मलेन किया और समापन के तौर पर संवाददाता सम्मेलन भी रखा। इसमें ताल ठोकने की मुद्रा में उन्होंने कहा कि यह सिंधिया वंश की कारस्तानी थी जिसके चलते  ग्वालियर और चम्बल क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा बना रहा लेकिन अब वह इस एरिया के विकास का संकल्प लेकर जा रहे हैं। 

ताज़ा ख़बरें

दौरे को फ़ेल करने की कोशिश

राज्य के 2 काबीना मंत्रियों की ड्यूटी लगाकर बीजेपी ने कमलनाथ के कार्यक्रम में विध्वंस के लिए 5 दिन पहले से ही मोर्चा खड़ा कर दिया था और इस मामले में उसने प्रशासन का भी भरपूर साथ लिया। पूर्व मुख्यमंत्री के आगमन की तैयारी में लगे बैनर और झंडों को 3 दिन पहले जिला प्रशासन ने उखाड़ फेंका। कमलनाथ के रोड शो को भी काले झंडे दिखा कर अस्त-व्यस्त करने की नाकाम कोशिश की गई। स्थानीय लोगों में इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हुई।

ग्वालियर और चम्बल संभाग हमेशा से सिंधिया घराने की राजनीतिक सम्पदा के तौर पर देखे जाते थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इस राजनीतिक मिथ का क़िला उस समय भरभरा कर ढह गया जब गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया सवा लाख वोटों के विशाल मार्जिन से हार गए।

मज़ेदार बात यह है कि तब प्रदेश में कांग्रेस की हुक़ूमत थी। सिंधिया इस सीट का प्रतिनिधित्व सन 2004 से कर रहे थे। इससे पहले इस सीट पर उनके पिता माधवराव सिंधिया और दादी राजमाता सिंधिया का प्रभुत्व रहा था।

राहुल ने दी थी अहमियत

वस्तुतः दिसंबर, 2018 में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में कमलनाथ से पिछड़ जाने के बाद से ही युवा सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद की चाह में डूबते-उतराते रहे थे। राहुल गाँधी ने उन्हें लोकसभा चुनावों पर फोकस करने और अच्छे 'रिज़ल्ट' देने को कहा था। विधानसभा चुनावों से अलग 2019 के लोकसभा चुनाव के टिकटों के बंटवारे में उनकी ठीक-ठीक सुनी गई।

चंबल-ग्वालियर संभाग के टिकटों के वारे न्यारे तो उनके नाम कर ही दिए गए थे, प्रदेश में इक्का-दुक्का और जगहों में भी हाथ मारने में उन्हें छूट मिली। दरअसल, राहुल गाँधी ने अपने इस युवा चेले से पीसीसी चीफ़ की तरह काम लेना शुरू कर दिया था। 

प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग

गुना की अपनी सीट से हारने और बाक़ी सीटों पर भी सूपड़ा साफ़ होने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष बनने की उनकी महत्वाकांक्षा को विराम नहीं लगा। सितम्बर का महीना शुरू होते ही उन्होंने ग्वालियर संभाग में अपने समर्थकों की तरफ से सोनिया गाँधी के नाम बड़े-बड़े बैनर लगवाए जिसमें उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की गई थी। 

उनकी इस महत्वाकांक्षा को पार्टी आलाकमान की तरफ से हवा नहीं मिली और अंततः 6 महीने के भीतर अपने लगभग 25 विधायकों के साथ उन्होंने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। इनमें से 16 विधायक उनके अपने चम्बल-ग्वालियर संभाग के थे। आगे चलकर अपने 9 समर्थकों को वह शिवराज सिंह चौहान के कई महीनों वाले 'एकला चलो मंत्रिमंडल' में मंत्री बनवा सके। इनमें 6 पिछले कमलनाथ मंत्रिमंडल में काबीना मंत्री थे।    

सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद बने राजनीतिक समीकरणों पर देखिए वीडियो- 

सिंधिया समर्थकों की राजनीति

18-19 सितंबर के कमलनाथ के ग्वालियर हल्लाबोल कार्यक्रम की घोषणा से सिंधिया कैम्प उखड़ गया। ज्योतिरादित्य कई महीनों से यह फीडबैक लेना चाह रहे थे कि क्या अपने चेलों के साथ किए गए पार्टी बदल कार्यक्रम को उनके क्षेत्र के मतदाताओं के बड़े हिस्से ने सकारात्मक तरीके से लिया है? यूं तो कहने को वह और उनके समर्थक प्रचार करते घूमते रहे कि उनके बाहर आने के बाद से कांग्रेस 'पैरेलैटिक' (लकवाग्रस्त) हो गयी है। कमलनाथ के उनके क्षेत्र में प्रवेश को उन्होंने बड़े खतरे के रूप में देखा और यही वजह है कि उसे असफल बनाने की सभी कोशिशें शुरू कर दी गईं।

कमलनाथ की यात्रा को 'पंक्चर' करने के लिए प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की ड्यूटी लगी। तोमर इसी क्षेत्र के हैं और सिंधिया कैम्प के महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं।

बैनर उतारने को लेकर घमासान

16 सितंबर को 'नगर निगम' के कर्मचारियों की टीम ने 'बिना अनुमति' के सड़कों पर कमलनाथ के स्वागतार्थ लगे बैनर उतारने का अभियान फूलबाग चौराहे से शुरू किया। कांग्रेसियों को पता चला तो वे वहां पहुँच गए। काफी कहासुनी के बाद इस प्रक्रिया को रोका गया। कांग्रेसियों का आरोप था कि ठीक बगल में लगे बीजेपी के बिना अनुमति वाले बैनरों को क्यों नहीं उतारा गया? काफी देर तक हो-हल्ला चला और कार्रवाई रोक दी गई।

रात को फिर 'नगर निगम' ने इसी प्रक्रिया को दोहराने की कोशिश की लेकिन वहां पहुँचे कांग्रेसियों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। यह ड्रामा 10 घंटे तक चला। इसके बाद मांझी समाज के धरने में पहुंचे ऊर्जा मंत्री को कांग्रेसियों ने घेर लिया। 

इस बीच इसी क्षेत्र से आईं महिला-बाल विकास मंत्री इमरती देवी का एक ऑडियो भी जम कर वायरल हुआ। ऑडियो में मंत्री अपने समर्थकों से यह कहती सुनी गईं कि "सत्ता में इतनी ताकत होती है कि जहाँ भी कलेक्टर को बोल देंगे, चुनाव जीत जाएंगे।"

रोड शो की कामयाबी से बीजेपी चिंतित

उधर, 18 सितंबर को कमलनाथ के रोड शो को 'भारतीय जनता युवा मोर्चा' के कुछ कार्यकर्ताओं ने रोकने की कोशिश की। पुलिस ने उन्हें खदेड़ दिया। इन सब का नतीजा यह हुआ कि स्थानीय जनता रोड शो में बड़ी तादाद में शामिल हुई। 

मध्य प्रदेश से और ख़बरें

राजनीतिक पर्यवेक्षक 'शो' के इस तरह से कामयाबी हासिल करने की 2 वजहें मानते हैं। पहली तो यह कि स्थानीय स्तर पर लोग, ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के 'राजनीतिक अवसरवाद' से नाखुश हैं। दूसरी, हालिया दिनों में बीजेपी की कई नीतियों को लेकर उनके मन में तेजी से उभरने वाला रोष है। भोपाल स्थित बीजेपी मुख्यालय में कमलनाथ की ग्वालियर यात्रा को मिली ऐसी कामयाबी पर गहरी चिंता जताई गई है और मनन चल रहा है। 

रोड शो में जिस तरह से भीड़ उमड़ी थी उसके आगे कोविड 19 प्रोटोकॉल की धज्जियाँ उड़ा दी गईं। गौरतलब है कि ग्वालियर क्षेत्र में संक्रमितों का ग्राफ़ तेजी से बढ़ रहा है। रोड शो वाले दिन ज़िले में पॉज़िटिव केसों की संख्या 218 थी। स्वागतार्थ भीड़ ने पूर्व मुख्यमंत्री को अनेक जगह घेरा और वह चाहकर भी 'सोशल डिस्टेंसिंग' का पालन नहीं करवा सके।  

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अनिल शुक्ल

अपनी राय बतायें

मध्य प्रदेश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें