ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन पर और ग्वालियर राजघराने पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। नाथ सरकार ने सिंधिया की ग्वालियर में ज़मीनों में कथित अदला-बदली से जुड़ी एक पुरानी फ़ाइल खोल दी है। संकेत मिल रहे हैं कि इस मामले में सरकार बहुत शीघ्र सिंधिया और उनके कुछ वफादारों के ख़िलाफ़ बड़ा एक्शन ले सकती है।
सिंधिया रियासत से जुड़ी ज़मीनों के कथित हेरफेर का मामला काफी पुराना है। बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य प्रभात झा शिवराज सरकार के दौर से इस मामले को उठा रहे थे और उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को निशाने पर लिया था। लेकिन शिवराज सरकार में यह मामला लटका रहा।
मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज इस मामले में एक्शन लेने का साहस नहीं दिखा पाये। ज्यादा दबाव बनने पर उन्होंने दिखावे के लिए जांच बैठाई। यह मामला आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को सौंपा गया था। लेकिन मामले की जांच बेहद धीमी गति से चलती रही। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में निजाम बदल गया। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभाला तो सिंधिया के ख़िलाफ़ बैठाई गई जांच को ख़त्म कराया गया।
अब सिंधिया के पाला बदलने के बाद यह मामला री-ओपन करा दिया गया है। मामले में शिकायतकर्ता सुरेंद्र श्रीवास्तव ने कहा है कि 26 मार्च, 2014 को उन्होंने ईओडब्ल्यू को एक आवेदन दिया था। आवेदन में उन्होंने आरोप लगाया था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं उनके परिजनों द्वारा 2009 में महलगांव, ग्वालियर की ज़मीन (सर्वे क्रमांक 916) ख़रीदकर रजिस्ट्री में काट-छांट करके आवेदक की 6 हज़ार वर्ग फीट ज़मीन कम कर दी थी।
शिकायतकर्ता श्रीवास्तव ने एक अन्य मामले में सिंधिया देवस्थान के चेयरमैन व ट्रस्टियों द्वारा शासकीय भूमि (सर्वे क्रमांक 1217) को प्रशासन के सहयोग से फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर उस जमीन को बेचने संबंधी आवेदन भी 23 अगस्त, 2014 को ईओडब्ल्यू को दिया था। आवेदक का कहना है कि उसके दोनों आवेदनों पर रोक लगने के कारण वह फिर से शिकायती आवेदन दे रहे हैं।
इस मामले की जांच में कथित तौर पर लापरवाही बरतने वाले आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ के दो अधिकारियों के तबादले ना केवल कमलनाथ सरकार ने किए हैं, बल्कि पूरे मामले की जांच नये सिरे से करने के आदेश भी दे दिये गये हैं। बताया गया है कि आदेश मिलने के बाद ईओडब्ल्यू नये सिरे से मामले की जांच में जुट गया है।
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