तमाम प्रयासों के बाद भी अपने विधायकों को ‘साध’ पाने में सफल नहीं हो पा रहे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। कमलनाथ ने मोदी से वैश्विक पटल स्थापित भारतीय लोकतंत्र को बचाने की ‘गुहार’ लगाते हुए मध्य प्रदेश कांग्रेस के दगाबाज़ विधायक और नेताओं को बीजेपी में जगह और पद ना देने की अपील की है। बिल्कुल ऐसा ही ख़त दो दिन पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी प्रधानमंत्री को लिखा था और कहा था कि लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी की जा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ़ कमलनाथ ने गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी को एक ख़त लिखा है। दो पेज के अपने ख़त में नाथ ने भारतीय लोकतंत्र की ख़ूबसूरती से लेकर दुनिया में उसे सबसे मज़बूत स्तंभ के तौर पर पहचाने जाने की बात कही है।
कमलनाथ कोरोना महामारी का ज़िक्र करते हुए इस ख़त में मुद्दे पर आये हैं। कमलनाथ ने कहा है, “वैश्विक महामारी का मुक़ाबला हम कर सकते हैं। कर रहे हैं। मगर आज मैं आपका ध्यान भारत की ‘अप्रजातांत्रिक महामारी’ की ओर आकृष्ट करा रहा हूँ।”
कमलनाथ ने कई राज्यों में बीजेपी द्वारा निर्वाचित सरकारों को गिराने का ज़िक्र करते हुए मध्य प्रदेश की सरकार को गिराने का भी ज़िक्र किया है। कमलनाथ ने कहा है कि कांग्रेस विधायकों को प्रलोभन देकर सरकार गिरायी गई। कोरोना के लिए आवश्यक लाॅकडाउन की भी इसी वजह से अनदेखी की गई। आज मध्य प्रदेश कोरोना की ज़बरदस्त चपेट में है।
कमलनाथ ने आगे संकेतों में कहा है भारत के प्रजातांत्रिक इतिहास और मूल्यों को धूल-धुसरित करने का ‘खेल’ मध्य प्रदेश में थमा नहीं है। प्रतिपक्ष के विधायकों को बीजेपी आज भी तोड़ने में लगी हुई है।
कमलनाथ ने कहा है कि मेरी चिंता सिर्फ़ प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने तक सीमित नहीं है, आज देश में प्रजातांत्रिक भूचाल आया हुआ है। उन्होंने कहा, ‘ऐसी उम्मीद करता हूँ कि आप भारत के लोकतंत्र की गिरती हुई साख को बचाने के लिए आगे आयेंगे। ऐसे अवसरवादी नेताओं को अपनी सरकार और दल में कोई स्थान नहीं देंगे जिन पर प्रजातांत्रिक मूल्यों का सौदा करने का आरोप है।’
मध्य प्रदेश में कांग्रेस बेहद मुश्किल में है। कांग्रेस की ज़बरदस्त मुश्किल का दौर बीती मार्च से शुरू हुआ है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके कैम्प के पार्टी विधायकों के दगा देने से कमलनाथ की अच्छी-भली सरकार चली गई। कुल 15 महीनों में ही बीजेपी सत्ता में वापसी करने में सफल हो गई।
कमलनाथ और कांग्रेस, हाथों से फिसल चुकी मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की जुगत में हैं। कमलनाथ और कांग्रेस के मंसूबों में सत्तारूढ़ दल बीजेपी हर दिन पलीता लगा रही है। मध्य प्रदेश में इस महीने में अब तक कांग्रेस के तीन और विधायक टूटकर बीजेपी में आ गये हैं।
टीकमगढ़ ज़िले के मलेहरा के कांग्रेस विधायक कुँवर प्रद्युम्न सिंह लोधी को बीजेपी ने इस माह की शुरुआत में तोड़ा था। कांग्रेस से इस्तीफ़ा देकर बीजेपी ज्वाइन करने पर लोधी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष बना दिया गया। लोधी वही नेता हैं जो कमलनाथ का मुख्यमंत्री पद जाने पर टीवी न्यूज़ चैनल कैमरों के सामने फफक-फफककर रोये थे।
लोधी के बाद पिछले सप्ताह नेपानगर की कांग्रेस विधायक सुमित्रा देवी टूटीं। खंडवा ज़िले के मंधाता सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुने गये नारायण पटेल ने गत दिवस कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर बीजेपी का केसरिया दुपट्टा अपने गले में डाल लिया।
मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। कांग्रेस विधायकों की दगाबाज़ी के बाद अब तक 25 सीटें रिक्त हो चुकी हैं। दो सीटें विधायकों के आकस्मिक निधन से पहले से रिक्त थीं। फ़िलहाल कुल 27 सीटों पर उपचुनाव के हालात बन चुके हैं।
कांग्रेस में विधायकों की ‘भगदड़’ का सिलसिला अभी थमा नहीं है। दिग्विजय सिंह की सरकार में मंत्री रहने वाले बेहद वरिष्ठ विधायक केपी सिंह की शिवराज काबीना के वरिष्ठ मंत्री नरोत्तम मिश्रा से लगातार हो रही ‘मुलाक़ातें’ चर्चाओं में हैं। सुगबुगाहट तो यह भी है कि दिवंगत नेता अर्जुन सिंह के बेहद विश्वासपात्रों में शुमार रहने वाले बेहद वरिष्ठ दिवंगत नेता इंद्रजीत कुमार पटेल के पुत्र कमलेश्वर पटेल भी बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। हालाँकि नाथ सरकार में मंत्री रहे कमलेश्वर ने ऐसी ख़बरों को निराधार बताया है। इन दो विधायकों के अलावा भी बीजेपी आधा दर्जन से कुछ ज़्यादा कांग्रेस विधायकों के निरंतर टच में बतायी जा रही है।
सत्ता के गणित से बहुत दूर हुई कांग्रेस
विधानसभा के 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं थी। राज्य में सरकार बनाने का जादुई नंबर 116 है। कांग्रेस ने बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों का साथ लेकर 121 नंबरों के साथ सरकार बना ली थी। मार्च महीने में 22 विधायक टूटे तो नाथ की सरकार चली गई। तीन विधायकों ने हाल ही में कांग्रेस को छोड़ा। एक विधायक का दिसंबर 19 में निधन हो गया था। इस तरह से कांग्रेस के पास अब महज 89 विधायक ही बचे हैं। सरकार जाने पर बसपा-सपा के तीन और चार निर्दलीय विधायकों में दो, फिलहाल कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर भाजपा के साथ खड़े हो गए हैं।
तीन पीसीसी चीफ़ परिदृश्य से ‘ग़ायब’
सितंबर के आख़िर में संभावित उपचुनावों को लेकर कांग्रेस में वैसी तैयारी अब तक दिखाई नहीं दी है, जिसकी दरकार है। बेहद रिजर्व और एकला रहने-चलने वाले नाथ भी कोई ठोस पहल करते नज़र नहीं आये हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस खेमे में पीसीसी के तीन पूर्व चीफ़ विद्यमान हैं। नाथ के पहले अरुण यादव, सुरेश पचौरी और कांतिलाल भूरिया प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। तीनों ही सक्रिय नज़र नहीं आ रहे हैं। यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस में स्वयं से सक्रिय होने या रहने का कल्चर नहीं है।
कांग्रेस में हरेक नेता चाहता है कि उसे मौजूदा चीफ़ या नेतृत्व ‘पीले चावल’ भेजे तो वह अपनी सक्रियता दिखाये। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस का भविष्य अभी तो केवल और केवल ‘अंधकारमय’ ही नज़र आ रहा है।
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