कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में भी क्या कुंठा का शिकार होने जा रहे हैं? सत्तारूढ़ दल बीजेपी खेमे से हो रही बयानबाज़ी तो यही इशारा कर रही है कि बीजेपी ज्वॉइन करके सिंधिया फँस से गये हैं! राज्य की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में चेहरे को लेकर चिक्कलस के बीच सिंधिया को ट्रम्प का इक्का मानने के लिए बीजेपी तैयार नहीं है। बीजेपी ने ‘असली चेहरा’ शिवराज को ही बता रखा है। तमाम राजनीतिक रस्साकशी के बीच केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के एक 'मज़ाक़' ने भी सिंधिया खेमे की बेचैनियाँ बढ़ा दी हैं।
मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार में वापसी सिर्फ़ और सिर्फ़ ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से हुई है। डेढ़ दर्जन समर्थक विधायकों को इस्तीफ़ा दिलाकर उनके साथ ख़ुद सिंधिया भी बीजेपी में शामिल हो गए थे। इसके बाद कमलनाथ सरकार गिर गई। शिवराज सरकार बन गई। शिवराज सरकार को बने दो महीने का वक़्त हो गया है। सिंधिया और उनके समर्थकों को पूरी तरह से ठौर नहीं मिल पा रही है।
साथ देने के एवज़ में सिंधिया को बीजेपी ने राज्यसभा का टिकट दिया हुआ है। केन्द्र में मंत्री बनाए जाने का आश्वासन भी है। कोरोना संकट के चलते राज्यसभा चुनाव ही रुके हुए हैं। केन्द्रीय मंत्री पद तो राज्यसभा निर्वाचन के बाद हो पायेगा।
इधर शिवराज कैबिनेट में अपने समर्थकों को जगह दिलाने के लिए भी सिंधिया को खासा पसीना बहाना पड़ रहा है। कमलनाथ सरकार का साथ छोड़ने वाले कांग्रेस के विधायकों में छह मंत्री भी थे। छह में से दो गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को शिवराज सरकार में एडजस्ट किया जा चुका है। चार पूर्व मंत्री बीजेपी की सरकार में मंत्री बनने की बाट जोह रहे हैं। सिंधिया का साथ देने वाले कुछ अन्य कांग्रेस के पूर्व विधायकों को भी शिवराज सरकार से मंत्री पद की आस है।
कमलनाथ और उनकी सरकार से तुलसी सिलावट को डिप्टी सीएम पद दिलाने को लेकर सिंधिया की ठनी थी। दोनों के बीच तमाम विवाद को लेकर मुद्दे और भी थे। कमलनाथ ने सिलावट वाला ऑफर दो टूक ठुकरा दिया था। बाद में दूरियाँ बढ़ती चली गयीं और नतीजा कमलनाथ सरकार की विदाई के रूप में निकला।
बहरहाल, सिंधिया अभी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहे हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस के लोगों ने महाराज के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है।
दिल्ली रहते हुए ग्वालियर-चंबल को सतत नापने वाले सिंधिया कोरोना संक्रमण के फैलाव के बाद से क्षेत्र से ‘लापता’ हैं। उनके ‘लापता’ होने संबंधी पोस्टर ग्वालियर में लगे। कांग्रेसियों पर एफ़आईआर हुई। सिंधिया ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया।
सिंधिया समर्थक अलबत्ता महाराज के पक्ष में पूरे समय सक्रिय रहे हैं। उपचुनावों को लेकर भी सिंधिया के समर्थक ताल ठोक मैदान में बने हुए हैं। सिंधिया समर्थकों के ताल ठोकने पर मध्य प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा, ‘मध्य प्रदेश में बीजेपी का चेहरा तो शिवराज ही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से बीजेपी की ताक़त बढ़ गई है। कुल 24 सीटों में 20 प्लस बीजेपी ही जीतने वाली है।’
क्या टिकट मिलेगा भी?
उपचुनाव से जुड़े दाँवपेच और अपनों को टिकट दिलाने की जुगत भी तेज़ है। सिंधिया मानकर चल रहे हैं कि कांग्रेस छोड़ते वक़्त हुए ‘समझौते’ के अनुसार बीजेपी उनके उन सभी समर्थकों को कमल के निशान पर अवश्य लड़ायेगी, जिन्होंने बीजेपी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की।
बीजेपी के जिन नेताओं का करियर, सिंधिया और उनके समर्थकों के बीजेपी में आने से दाँव पर लग गया है - वे बेहद बेचैन हैं। कई के तेवर बग़ावती हैं। कुछ नेताओं ने घुड़की भी दी है कि टिकट कटा या करियर पर बात आयी तो उनके लिए विकल्प खुले हुए हैं। बीजेपी जान रही है कि 'ऐसे लोगों' का विकल्प कांग्रेस है। कांग्रेस भी बीजेपी के असंतुष्टों को उपचुनाव में टिकट देकर मुक़ाबले को रोचक और अपने पक्ष में करने के लिए तैयार बैठी हुई है।
उपचुनाव और मंत्रिमंडल के विस्तार के पहले बीजेपी अपने घर में सबकुछ ठीक कर लेना चाह रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इसके लिए जुटे हुए हैं। उनके ‘सखा’ केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी जुटे हुए हैं। सबसे ज़्यादा उपचुनाव ग्वालियर-चंबल संभाग में होने हैं, लिहाज़ा तोमर की प्रतिष्ठा भी सीधे-सीधे दाँव पर है। इसलिये वे ज़्यादा सक्रिय बने हुए हैं।
मध्य प्रदेश के दौरे पर आये तोमर के एक बयान पर ‘बवाल’ भी हो रहा है। ग्वालियर में सिंधिया के ‘ग़ायब’ होने संबंधी पोस्टरों को लेकर तोमर से सवाल हुआ तो वह मज़ाक़िया लहज़े में कह गये, ‘सिंधिया अभी जनप्रतिनिधि कहाँ हैं?’
तोमर का आशय सिंधिया के किसी भी सदन का सदस्य ना होने संबंधी था। इधर कांग्रेस ने सिंधिया और उनके समर्थकों को चिढ़ाना आरंभ कर दिया है। कांग्रेसी कह रहे हैं, ‘महाराजा को अपनी हैसियत का अंदाज़ा कराना बीजेपी ने शुरू कर दिया है।’
तोमर के बयान और कांग्रेस के व्यवहार से सिंधिया समर्थक बेचैन हैं। भले ही तोमर ने मज़ाक़ में कहा, लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया बड़ा चेहरा हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।
प्रेक्षकों की नज़र फ़िलहाल शिवराज कैबिनेट के विस्तार पर है। कितने और सिंधिया समर्थक काबीना में जगह हासिल कर पाते हैं, उन्हें क्या विभाग मिलते हैं, यह सब देखने वाली बात होगी। माना जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार भी मध्य प्रदेश में सिंधिया की बीजेपी में आगे की राजनीति की दशा और दिशा तय करेगा।
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