भारत की जनता को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि देश के सभी राजनीतिक दल कोरोना वायरस के विरुद्ध एकजुट हो गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे अपने पत्र में कुछ रचनात्मक सुझाव दिए हैं। केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और दिल्ली के ग़ैर-भाजपाई मुख्यमंत्री लोग भाजपाई मुख्यमंत्रियों की तरह डटकर काम कर रहे हैं।
ग़ैर-राजनीतिक समाजसेवी लोग तो गजब की सेवा कर रहे हैं। यह भी गौर करने लायक बात है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य संगठनों ने तब्लीग़ी जमात के मामले का सांप्रदायिकीकरण करने का विरोध किया है। लेकिन हमारे कुछ टीवी चैनल इसी मुद्दे को अपनी टीआरपी की खातिर पीटे चले जा रहे हैं।
संतोष की बात यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत से कोरोना की दवाई भिजवाने का अनुरोध किया है। इस दवाई का परीक्षण करके भारत में ही इसका जमकर प्रयोग क्यों नहीं किया जाए? भारत हमारे पड़ोसी देशों को यह दवाई बड़े पैमाने पर आगे होकर भेंट क्यों न करे?
जहां तक सोनिया गांधी के पांच प्रस्तावों का प्रश्न है, सबसे अच्छी बात तो यह है कि उन्होंने मोदी की इस घोषणा का स्वागत किया है कि सांसदों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती और सांसद-निधि स्थगित की जाएगी। मैं सोचता हूं कि हर सांसद को स्वेच्छा से कम से कम पांच-पांच लाख रुपये कोरोना राहत-कोष में दे देने चाहिए। चुनावों में वे करोड़ों का इंतजाम करते हैं या नहीं?
‘‘पीएम केयर्स फंड’’ नाम क्यों?
इस कोष के साथ किसी प्रधानमंत्री या व्यक्ति या पद का नाम जोड़ना हास्यास्पद है और यह कहना तो अत्यंत विचित्र है कि ‘‘पीएम केयर्स फंड’’। क्या देश की चिंता सिर्फ एक ही व्यक्ति को है? क्या बाकी सब लोग ‘केयरलेस’ (लापरवाह) हैं? यह सुझाव भी ठीक है कि कुछ सरकारी ख़र्चों में भी 30 प्रतिशत की कटौती की जाए। सरकारी ख़र्चे पर विदेश यात्राएं बंद हों। 20 हजार करोड़ रुपये के ‘सेंट्रल विस्टा’ के निर्माण-कार्य को बंद किया जाए।
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