loader

किस आधार पर पश्चिम बंगाल जीतने का दावा कर रहे हैं अमित शाह?

भारतीय जनता पार्टी की चुनावी मशीनरी के चाणक्य कहे जाने वाले देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कोलकाता के शहीद मैदान में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौती देते हुए विधानसभा के लिए पार्टी के चुनाव प्रचार का बिगुल फूँक दिया है। शाह ने दावा किया है कि प्रदेश में अगली सरकार भाजपा की ही बनने वाली है। लेकिन लोकसभा चुनावों को छोड़ दें तो पिछले कई सालों में अमित शाह के मार्गदर्शन में पार्टी ने जितने भी चुनाव लड़े हैं या तो उसे अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली है या हार का सामना करना पड़ता है। हाल ही में दिल्ली में हुआ चुनाव इस बात का ताज़ा -ताज़ा उदाहरण है। महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक इस बात का प्रमाण हैं।

ताज़ा ख़बरें

दरअसल, अमित शाह और बीजेपी के नेताओं ने चुनाव-प्रचार का एक जुमला बना लिया है। जिस किसी प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने होते हैं अमित शाह और बीजेपी के नेता एक ऐसा आँकड़ा चुनावी सभाओं और मीडिया के माध्यम से उछालते हैं कि 'उनकी ऐतिहासिक जीत होने वाली है और दो-तिहाई बहुमत उनकी पार्टी को मिलेगा। महाराष्ट्र में वे 180 सीटों का दावा करते रहे, नतीजा 105 पर ही अटक गया। झारखंड में 50 पार, हरियाणा में 50 पार, दिल्ली में 48 सीटें जीतने का दावा करते रहे। उनकी छत्रछाया में परजीवी की तरह पलने वाला मीडिया इसी सुर में सुर मिलाता है और एक कृत्रिम हवा बनाने की कवायद भी करता है। अब सवाल यह है कि अमित शाह का बंगाल जीतने का दावा भी अन्य राज्यों की तरह फिसड्डी साबित होगा या उसमें वाकई कुछ दम है?

बीजेपी को बंगाल में 2014 के लोकसभा चुनाव में में 87 लाख वोट मिले थे और  2019 में यह बढ़कर 2.3 करोड़ हो गए। इसी बढ़े हुए वोट के आधार पर शाह ने आगामी विधानसभा चुनाव में दो-तिहाई बहुमत मिलने का दावा किया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली इस सफलता का बहुत से लोगों ने विश्लेषण किया था। एक बात की ओर अधिकाँश लोगों का इशारा था कि सीपीएम (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के कार्यकर्ताओं और वोटर्स का आधार बड़े पैमाने पर भाजपा के खेमे में चला गया। यह उसी तरह से हुआ जैसा त्रिपुरा में कांग्रेस का कार्यकर्ता और संगठन टूटकर भाजपा में चला गया। बंगाल में सीपीएम के कार्यकर्ताओं को ज़मीनी स्तर पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रताड़ित किये जाने की जो ख़बरें आती रहती हैं यह उसी के परिणाम की ओर इशारा करता है। 

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में तीनों ही प्रमुख पार्टियाँ तकरीबन सेक्युलर विचारधारा के आधार पर ही राजनीति करती रही हैं। पहली बार बीजेपी ने धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण किया।

पार्टी के तमाम नेता पिछले कई सालों से बंगाल में इस ध्रुवीकरण की ज़मीन बनाने में जुटे हुए हैं। ख़ुद अमित शाह बार-बार ऐसी रैलियाँ निकालते रहे हैं जिसमें धार्मिक तनाव की स्थिति निर्माण हुई है। पिछले लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान बंगाल में जो हुआ वह किसी से छुपा नहीं रहा। ममता बनर्जी ने भी बड़े जोश के साथ बीजेपी की नीतियों को टक्कर दी। लेकिन सेक्युलर वोटों में कांग्रेस और सीपीएम कितना हिस्सा हासिल करती हैं वह भाजपा के सफल होने का समीकरण बनाएगा। 2014 से ही बंगाल पर भाजपा की नज़र है और 2019 के बाद कांग्रेस ने भी शायद यहाँ अपनी जड़ें फिर से जमाने के उद्देश्य से अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसी बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। सीपीएम भी अपने वोट बैंक को वापस हासिल करने के लिए कुछ हलचल कर रही है। ये तीनों ही दल नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर का विरोध कर रहे हैं जबकि भाजपा इनकी मदद से हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण बड़े पैमाने पर कर रही है। शाह ने इन मुद्दों पर ममता बनर्जी को अपनी चुनावी सभा में घेरा भी और कहा कि जब विपक्ष में थी तो उन्होंने ख़ुद शरणार्थियों के नागरिकता का मुद्दा उठाया था।

विचार से ख़ास
वैसे शाह ने "बंगाल पर 3.75 लाख करोड़ रुपये के क़र्ज़ होने की बात की और उसकी तुलना वामदल की सरकार के दौर के क़र्ज़ (1.92 लाख करोड़ रुपये) से की। उन्होंने कहा कि राज्य में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश दो प्रतिशत से भी नीचे है। लेकिन यह सिर्फ़ एक चुनावी भाषण के रूप में ही बोली गयी बात है, क्योंकि यदि भाजपा शासित गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों के आँकड़े की तुलना की जाए तो क़र्ज़ का यह दलदल हर प्रदेश में फैल रहा है। इस मुद्दे पर शाह को केंद्र सरकार की आर्थिक विफलता का ज़िक्र कर ममता घेर सकती हैं। ममता के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वह धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने की है। भाजपा नेता आने वाले दिनों में किस तरह का प्रचार कर सकते हैं इस बात का अंदाज़ा दिल्ली जैसे एक छोटे से राज्य के चुनाव प्रचार में देखने को मिला है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें