loader

मोदी के गुजरात मॉडल के मुक़ाबले कहाँ टिकेगा केजरीवाल का दिल्ली मॉडल?

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर एक उभरता नाम है। उनके पास मोदी जैसा चमत्कारिक नारा भी हो सकता है। 2014 के चुनावों में मोदी ने एक सपना दिखाया था- विकास का गुजरात मॉडल। हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी के क़रीब 6 साल के शासन में यह दिवास्वप्न ही साबित हुआ। लेकिन अरविंद केजरीवाल अब विकास का दिल्ली मॉडल लेकर देश भर में घूम सकते हैं।
शैलेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बन सकते हैं? दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद यह सवाल तेज़ी से उठने लगा है। यह पहला मौक़ा नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प पर चर्चा हो रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले भी यह सवाल उठा था। तब कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गाँधी मोदी के स्वाभाविक विकल्प के रूप में उभर कर सामने आए थे। लेकिन चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार के बाद राहुल ने ख़ुद को हासिए पर रख दिया। यानी राहुल को अब मोदी का विकल्प नहीं कहा जा सकता। तो क्या राहुल के बगैर कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का विकल्प माना जा सकता है?

कांग्रेस अब भी देश की दूसरी बड़ी पार्टी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भले ही महज 52 सीटें मिलीं लेकिन उसे कुल मिलाकर 12 करोड़ वोट मिले। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में कांग्रेस की अपनी सरकार है। महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस साझा सरकार में शामिल है। इस हिसाब से बीजेपी का स्वाभाविक विकल्प कांग्रेस ही दिखायी देती है। लेकिन क्या कांग्रेस 2024 के चुनावों में बीजेपी को चुनौती दे पाएगी? 

ताज़ा ख़बरें

कांग्रेस नेतृत्व पर नज़र डालें तो कांग्रेस के लिए यह काम बेहद मुश्किल लगता है। सबसे बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस अब भी राहुल गाँधी की तरफ़ मुँह ताकती नज़र आती है। राहुल भले ही पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं लेकिन कांग्रेस किसी और नेता पर भरोसा करने के लिए तैयार दिखायी नहीं देते हैं। ले-देकर राहुल की बहन प्रियंका गाँधी का नाम उछाला जाता है। प्रियंका में एक सम्मोहन है। वह अपनी दादी इंदिरा गाँधी की तरह लोगों को अपनी तरफ़ खींचती हैं। लेकिन गाँधी परिवार प्रियंका के नाम पर ख़ुद ही उलझा हुआ दिखायी देता है। दिल्ली चुनावों में न तो राहुल गाँधी ने पूरा दम लगाया और न ही प्रियंका को कमान दी गई। नतीजा यह निकला कि दिल्ली में कांग्रेस के 62 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए और कांग्रेस का वोट 2015 के विधानसभा चुनावों में 9 फ़ीसदी से घट कर क़रीब 4 प्रतिशत ही रह गया।

अरविंद केजरीवाल ने साबित किया कि उनमें बीजेपी से लड़ने का जज्बा भी है और हुनर भी। अरविंद ने बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति का जवाब भी दिया और विकास का परचम भी लहराया। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि आम आदमी पार्टी अकेली क्षेत्रीय पार्टी है जिसका जनाधार एक राज्य यानी दिल्ली से बाहर भी है। आम आदमी पार्टी पंजाब में मुख्य विपक्षी पार्टी है। गोवा, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड में भी उसके समर्थक मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी पार्टी के विस्तार की संभावनाएँ मौजूद हैं। 

लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में क्या आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल मौक़े का फ़ायदा उठाने के लिए तैयार हैं?

बीजेपी के बाहर नज़र डालें तो बंगाल की ममता बनर्जी भी एक जुझारू नेता हैं। लेकिन उन्होंने अपने आप को महज बंगाल तक समेट लिया है। कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मोदी के ख़िलाफ़ खड़ा करने की पहल भी हुई थी लेकिन वह ख़ुद बीजेपी के तंबू में समा गए। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की एक राष्ट्रीय पहचान है लेकिन वह ख़ुद लखनऊ से बाहर क़दम नहीं रखतीं। राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए कुछ राज्यों में सांकेतिक चुनाव लड़ने से आगे वह भी नहीं गईं। 

विचार से ख़ास

केजरीवाल की ताक़त

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर एक उभरता नाम है। उनके पास मोदी जैसा चमत्कारिक नारा भी हो सकता है। 2014 के चुनावों में मोदी ने एक सपना दिखाया था- विकास का गुजरात मॉडल। हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी के क़रीब 6 साल के शासन में यह दिवास्वप्न ही साबित हुआ। लेकिन अरविंद केजरीवाल अब विकास का दिल्ली मॉडल लेकर देश भर में घूम सकते हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिल्ली सरकार के काम को पूरी दुनिया में मान्यता मिल चुकी है। मुफ़्त बिजली और पानी भी सबको आकर्षित कर सकते हैं। केंद्र सरकार का इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और सीबीआई भी अरविंद और उनकी सरकार से भ्रष्टाचार खोज नहीं पाए। इसके उलट अरविंद ने अपने मंत्री और विधायक के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके एक मॉडल खड़ा किया। अरविंद अब इस स्थिति में हैं कि वह पूरे देश को दिल्ली मॉडल के पक्ष में खड़ा कर सकें। 

अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरे देश में हवा बहा सकती है। लेकिन समस्या यह है कि अरविंद अपने मुट्ठी भर समर्थकों के साथ देश भर में किसी क्रांति का बीज नहीं बो सकते हैं।

अन्ना हजारे के आंदोलन के ज़रिए देश के अनेक हिस्सों में आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ने वाले प्रतिष्ठित लोग अब पार्टी से दूर जा चुके हैं। कुछ ख़ुद चले गए। कुछ को निकाल दिया गया। उसका एक बड़ा कारण यह दिखायी दिया कि अरविंद अपने विरोधियों को साथ लेकर चलने के लिए तैयार रहीं थे। लेकिन पाँच साल की सत्ता ने अरविंद को ज़्यादा संजीदा बना दिया है, इसमें कोई शक नहीं। दिल्ली के चुनाव अभियान के दौरान अरविंद की यह परिपक्वता साफ़-साफ़ सामने आयी। काम के बूते पर या विकास के बूते पर चुनाव जीतना आसान नहीं होता जहाँ चुनाव को धर्म, सम्प्रदाय, जाति और क्षेत्रीयता सब कुछ प्रभावित करता है। जहाँ आम मतदाता इतिहास के पन्नों से चिपका हुआ दिखायी देता है वहाँ भविष्य का सपना और सपने का भविष्य एकमात्र कारक नहीं हो सकता। हिंदू-मुसलमान विवाद इतिहास है लेकिन इतिहास के पन्नों में तलवार की झंकार आज भी एक वर्ग के लिए बड़ा मुद्दा है। मोदी के लिए चुनौती बनने से पहले अरविंद केजरीवाल को अपने डर से बाहर आना होगा। अपने ही साथियों से ऐसा डर जो उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शैलेश

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें